पिछले दो-तान सालों की रिकॉर्डतोड़ गर्मी के बाद इस साल पूरे दुनिया में सर्दी अपना असर दिखाएगी. इसकी वजह प्रशान्त महासागर में ला-नीना की हलचल है जिसके और ज्यादा फैलने की आशंका बढ़ रही है.
What is La nina
अल नीनो जिसका सम्बंध भारत में सूखे, बाढ़ और गर्मी से है और इसी के उलट ला-नीना है. प्रशान्त महासागर में बनने वाला अल नीनो और ला-नीना पूरे विश्व के तापमान को प्रभावित करता है।
★भारत में साल 2013 लेकर 2015 तक लगातार मौसम गर्म रहा है. इसकी प्रमुख वजह प्रशान्त महासागर में लगातार अल नीनो का बनना था. भारत में अल- नीनो का सम्बंध ऐतिहासिक रूप से मानसून के दौरान भारी बारिश से है और इससे भारत के पूर्वी तट पर भारी चक्रवाती तूफान आते हैं और इसका खतरा बढ़ जाता है.
★हाल में आया अल नीनो सबसे ज्यादा गर्मी लिए रहा है जिसका खात्मा जून 2016 में मानसून की बारिश आने से हुआ. पिछले साल रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ी थी और उच्चतम तापमान रिकॉर्ड किया गया था.
=>अल-नीनो का असर क्या होता है?
अल नीनो के असर से औसतन दिसम्बर तक पेरू और इक्वाडोर के समुद्र का पानी गर्म रहता है. इसका नतीजा यह होता है कि समुद्र की सतह का पानी गर्म हो जाता है और इससे पूरे अमरीका में चलने वाली हवाओं का तापमान भी बढ़ा रहता है जिसे दक्षिणी जेट स्ट्रीम के रूप में जाना जाता है. गर्म हवाओं के ऊपर उठने से सेन्ट्रल यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमरीका में सूखे के हालात उत्पन्न हुए थे.
लेकिन यही अल नीनो भारत में मानसून को प्रभावित करता है. भारतीय समुद्री सतह का तापमान और हवा गर्म हो जाती है. वहीं इसके उलट ला नीना भारी मानसून की वजह बनता है.
भारतीय मौसन विभाग ने साल 2016 के मध्य में ही मानसून के ज्यादा समय तक रहने और 106 फीसदी तक बारिश होने की उम्मीद जता दी थी लेकिन ला नीना पहुंच नहीं सका था. इस वजह से मानसून सामान्य से 97 फीसदी ही रह गया.
अल नीनो से कुछ सालों के दौरान न सिर्फ सर्दी कम पड़ी है बल्कि उसकी अवधि भी कम हुई है. भारतीय मौसम विज्ञानियों को उम्मीद थी कि अल नीनो के बाद ला-नीना की स्थिति आएगी और जिससे इस साल मानसून बेहतर हो सकता है.
=>>ला-नीना पर उम्मीदें
★ प्रशान्त महासागर के एनओएए के टेम्परेचर इंडैक्स में ला-नीना के मार्ग से भटकने की उम्मीद है. यह भी कहा गया है कि लम्बे समय में तापमान 0.05 डिग्री सेंटिग्रेड से भी नीचे रह सकता है. यह इंडेक्स दो 'ओवरलैपिंग सीजन' जुलाई-सितम्बर और अगस्त-अक्टूबर में 0.08 सेंटिग्रेड रहा था. इससे ला नीना उत्पन्न होने की सम्भावना 55 फीसदी तक है और यह लगातार तीन 'ओवरलैपिंग सीजन' तक जारी रहेगा. इस दौरान ला नीना का असर पूरी तरह दिखाई देगा और सर्दी अपना असर दिखाएगी.
★एक बार ला नीना अपने स्थान पर केन्द्रित हो जाता है तो उसका असर पांच-छह माह तक रहता है. इस वजह से अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि अगले साल मानसून सामान्य रहेगा या सामान्य से ज्यादा. इतना तो तय है कि अगले साल सूखा नहीं पड़ेगा.
★ला नीना की वजह से बंगाल के खाड़ी की समुद्री सतह गर्म हो जाती है. इस कारण मानसून का कम दबाव बनता है और समुद्री चक्रावात आते हैं. इसी के चलते आंध्र प्रदेश और ओडिशा में भारी बारिश देखने को मिलती है.
★अगर ला नीना अपना असर दिखाने में विफल रहता है तो क्या होगा. ऐसे में भारतीय मौसम विभाग का अनुमान है कि उत्तर-पूर्व में मानसून सामान्य रहेगा. उतना ही जितना, पिछले अक्टूबर से दिसम्बर तक था. हालांकि हाल में ला नीना की जो पुष्टि की गई है, उसके आधार पर मौसम की भविष्यवाणी करने की दिशा में फिर से काम किया जाएगा.