मुंबई का संकट

#Navbharat_Times

मुंबई में हुई जोरदार बारिश और समुद्री ज्वार ने मिलकर जिस तरह वहां जनजीवन को पूरी तरह ठप कर दिया उससे फिर साफ हुआ कि हमारे महानगर प्रकृति की मार के आगे किस कदर असहाय हैं।

Repeating the past mistakes

 मुंबई ने 2005 में बाढ़ का भयानक संकट झेला है। उस साल एक घंटे में 944 मिलीमीटर तक बारिश हुई और लगभग पूरी मुंबई डूब गई थी। लगता है, उससे कोई सबक नहीं लिया गया और भीषण बारिश में शहर को संभालने के ठोस इंतजाम नहीं किए गए। उस तबाही के बाद मुंबई के ढांचे को नए सिरे से दुरुस्त करने के वादे किए गए थे लेकिन इस दावे की असलियत मंगलवार को सामने आ गई।

 

मुंबई महानगर पालिका ने पहले से तैयारी की होती तो लोगों को इतनी ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। उसे अच्छी तरह पता है कि बरसात के मौसम में हालात कभी भी गड़बड़ा सकते हैं। ऐसे संकट से निपटने के लिए जो ढांचागत इंतजाम जरूरी हैं उन्हें हमेशा आगे के लिए टाल दिया जाता है।

  • जैसे, बारिश के पानी को निकालने के लिए जो ड्रेनेज सिस्टम है, वह 25 मिलीमीटर प्रति घंटे की बारिश झेल सकता है। इसकी क्षमता बढ़ाकर 50 मिलीमीटर किए जाने पर काम शुरू हो चुका है मगर केंद्र सरकार से 1600 करोड़ रुपये का फंड आने के बाद भी यह परियोजना सिर्फ 40 फीसद पूरी हो सकी है।
  • जमा हुए पानी को बाहर निकालने के लिए मुंबई में छह पंपिंग स्टेशन हैं। पिछले दो-तीन सालों में इन पर 12 सौ करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं फिर भी ये जाम पड़े हैं। इसी तरह सीवर और नालों की सफाई में भी ढीलापन दिखता है। सच्चाई यह है कि शहर का निकासी तंत्र बेहद कमजोर है।
  • शहर के बीच से बहने वाली मीठी नदी एक नाला बनकर रह गई है।
  • कुछ और नदियां कचरे और अतिक्रमण के कारण करीब-करीब नष्ट हो चुकी हैं। 2005 के हादसे के बाद कई सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मुंबई में चल रहे अवैध निर्माण पर सवाल उठाया था लेकिन सरकारों ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।

 वक्त आ गया है जब इन गड़बड़ियों पर कोई सख्त निर्णय लिया जाए। मुंबई को एक सक्षम ड्रेनेज सिस्टम की जरूरत है। इसकी लाइफलाइन लोकल ट्रेनों को बारिश के मद्देनजर एक नया रूप देने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी, उन्हें रोका नहीं जा सकता लेकिन उनसे बचने के लिए तैयारी तो की जा सकती है। यह बात मुंबई के लिए ही नहीं, अन्य शहरों के लिए भी सच है। तेजी से बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए सभी शहरों के ड्रेनेज सिस्टम और कचरा प्रबंधन को नए धरातल पर ले जाने की जरूरत है।

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