रेल परिवहन के मॉडल में सुधार आवश्यक

#Business_Standard_Editorial

बदलते हुए परिप्रेक्ष्य में रेल परिवहन को बदलने की आवश्यकता

रेलवे ने हमेशा खुद को देश की आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ बताते हुए गर्व अनुभव किया है। एक वक्त था जब रेलवे की हड़ताल एक क्षण में अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर सकती थी और खाद्यान्न, डीजल तथा अन्य अनिवार्य वस्तुओं की कमी हो सकती थी। आज परिवहन जगत की तस्वीर नाटकीय ढंग से बदल चुकी है। अब उसका कारोबारी मॉडल भंग हो चुका है। उसे नए ढंग से परिभाषित करने के लिए नई सोच की जरूरत होगी। इस काम में ढेर सारी धनराशि और समय भी लगेगा। इन तीनों की पर्याप्त उपलब्धता आसान नहीं। 

रेलवे का सिकुड़ता क्षेत्र

  • प्रतिद्वंद्वियों ने रेलवे की बाजार हिस्सेदारी छीन ली। रेलवे माल परिवहन और यात्रियों की संख्या में काफी गिरावट आई है।
  •  इन दिनों सड़क के जरिये होने वाली माल ढुलाई रेलवे की तुलना में दोगुनी है।
  • इस समय 40 और 50 टन ढुलाई क्षमता वाले ट्रक बाजार में हैं जबकि पहले केवल 10 टन क्षमता वाले ट्रक ही हुआ करते थे।
  •  पेट्रोलियम उत्पादों की ढुलाई के मामले में रेलवे पहले ही अपनी हिस्सेदारी पाइपलाइन के हाथों गंवा चुका है। जबकि नए बिजली संयंत्रों या इस्पात संयंत्रों में से अधिकांश कच्चे माल के स्रोत के करीब स्थित हैं और इसलिए कोयला ढुलाई, लौह अयस्क आदि के लिए भी बहुत अधिक मांग नहीं हो रही।
  • कम माल वाले कारोबारी वैसे भी रेलवे का रुख नहीं करते। उनको ऐसा करने के लिए मनाने में भी काफी कवायद लगेगी क्योंकि माल ढोने वाले ट्रेनों की औसत गति बमुश्किल 25 किलोमीटर प्रति घंटा है। 
  • यात्रियों की बात करें तो लंबी दूरी के मामलों में विमान यात्राओं ने तेजी से रेलवे के यात्रियों को अपनी ओर खींचा है जबकि छोटी दूरी में डीलक्स बसें खासी सस्ती पड़ रही हैं।
  • किराए की गणित : देश में कारों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। दिल्ली से जयपुर के बीच कार से चार लोगों का सफर शताब्दी एक्सप्रेस के चार टिकटों की तुलना में सस्ता पड़ेगा। इससे स्थानीय सफर भी किया जा सकेगा। इस वर्ष भारतीय रेल के यात्रियों का आवागमन करीब एक फीसदी बढ़ा जबकि पिछले लगातार तीन साल इसमें गिरावट आई थी। इसके विपरीत यात्री विमानन परिवहन जनवरी से अक्टूबर महीने के बीच 23 फीसदी बढ़ा। इससे किराये के गणित को समझा जा सकता है। हालांकि टिकट बुक करने का समय बहुत मायने रखता है लेकिन भारत में हवाई किराया दुनिया में सबसे कम है। इंडिगो जैसी सस्ती विमान सेवा में यह अक्सर 3.10 रुपये प्रति किमी तक है लेकिन अगर आपने अपनी यात्रा सावधानीपूर्वक बनाई है तो यह दो रुपये प्रति किमी तक भी हो सकता है। रेल किराये में भी अंतर आ सकता है लेकिन यह अंतर श्रेणी का है। इसके अलावा लंबी दूरी के किराये भी प्रति किमी काफी कम होते हैं। लेकिन हवाई यात्रा में जो समय बचता है उसका कोई जवाब नहीं। रेल यात्रा का अनुभव यही बताता है कि उसके समय पर पहुंचने की संभावना कम ही है। भले ही आप प्रीमियम ट्रेन सेवा का इस्तेमाल करें। इस समय हर रोज ढाई लाख से अधिक लोग विमान यात्रा कर रहे हैं। यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। यात्रियों की संख्या में यह तेजी रेलवे की उच्च श्रेणी यात्रा करने वालों को पीछे छोड़ चुकी है। 
  • छोटी दूरी की बात करें तो बसों से बहुत तगड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। दिल्ली-जयपुर मार्ग पर डीलक्स बस की एक सीट शताब्दी एक्सप्रेस की तुलना में 25 फीसदी तक सस्ती है। विमानन सेवा और बस सेवा दोनों मुनाफे में हैं जबकि रेलवे को यात्री किराये के मोर्चे पर जबरदस्त नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। गति के मामले में रेलवे बसों पर बढ़त हासिल कर सकता है लेकिन माल ढुलाई करने वाली ट्रेन उन्हीं पटरियों पर बहुत धीमी गति से चलती हैं। यही वजह है सुपर फास्ट ट्रेन भी 70 किमी प्रति घंटे से अधिक तेज नहीं चल पातीं। अगर माल ढुलाई का अधिकांश काम नए फ्रेट कॉरिडोर में स्थानांतरित हो जाए तो यात्री ट्रेन 100 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार या उससे भी तेजी से चल सकती हैं। तब बसों के लिए उसे पकडऩा मुश्किल हो जाएगा। 

 आवश्यकता किस बात की

अगर तेल कीमतें एक बार फिर बहुत ऊंची नहीं हो जातीं तो रेलवे के लिए अकेले लागत पर टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में वह गति के मामले में ही बढ़त हासिल कर सकता है। इसके लिए उसे माल वहन को यात्री मार्ग से अलग करना होगा, यात्रियों के यात्रा अनुभव को सुधारना होगा। इसमें साफ-सफाई, टर्मिनल सेवाएं और आधुनिक कोच आदि शामिल हैं। उसे उच्च मूल्य के माल परिवहन के लिए लचीले विकल्प पेश करने चाहिए। सरकार का कहना है कि यह सारा काम प्रगति पर है। इस दिशा में प्रगति नजर आए तभी उस पर विश्वास किया जा सकता है।

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