# Business standard Editorial
हाल की घटना
हाल के दिनों में देश के खेल जगत से जुड़ी दो घटनाओं ने देश के तेजी से विकसित होते खेल उद्योग के नियमन के लिए कानून की आवश्यकता पर बल दिया है।
- पहली घटना जब सर्वोच्च न्यायालय ने अनुराग ठाकुर और तमाम अन्य लोगों को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से हटा दिया। ऐसा इनके द्वारा सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर बने एक पैनल की अनुशंसाएं न मानने के चलते किया गया। इस घटना ने देश में खेल प्रशासन की अस्पष्टï प्रकृति को उजागर कर दिया है। देश में खेल प्रशासन निजी उद्यमिता और राष्ट्र हित के बीच में विचरते दिखते हैं।
- दूसरा इसके तहत भारतीय ओलिंपिक महासंघ (आईओए) ने पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और अभय सिंह चौटाला को आजीवन अध्यक्ष बना दिया। गौरतलब है कि इन दोनों को पूर्व में भ्रष्टïचार के आरोपों के चलते पद छोडऩा पड़ा था।
आखिरकार अदालतों या सरकार को किसी खेल संस्थान के संचालन में दखल क्यों देना चाहिए?
- बीसीसीआई की बात करें तो क्या ऐसा कोई खतरा है कि अदालत सर्वोच्च प्रशासक बन जाएगी?
- मोटे तौर पर ये आपत्तियां सही हो सकती हैं लेकिन हकीकत में ये संस्थान एक दुविधा में हैं।
- ये स्वैच्छिक स्वायत्त संस्थान हैं परंतु ये राष्ट्रीय स्तर पर एकाधिकार भी चाहते हैं।
- अधिकांश अंतरराष्ट्रीय खेल संस्थानों मसलन फीफा और ओलिंपिक आंदोलन की बात करें तो भावना यही है कि राष्ट्रीय खेल संस्थानों को सरकारी नियंत्रण से परे होना चाहिए। हालांकि उनको लॉजिस्टिक्स, सुरक्षा और कई बार वित्तीय मदद के मोर्चे पर सरकारी सहायता लेनी पड़ती है।
एक विरोधाभास जिसे हल करना होगा।
यह विरोधाभास है सरकार से सहायता और क्या फिर भी इन संस्थाओं को सरकार से परे होना चाहिए | यह काम सरकार ही कर सकती है। इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि सरकार को खेल संगठनों के प्रशासन में हस्तक्षेप करना चाहिए।
- मौजूदा अस्पष्ट कर मुक्त न्यास और गैर लाभकारी कानूनों की जगह थोड़ी बहुत विधायी जवाबदेही जरूरी है।
- कानून के तहत कम से कम न्यूनतम जिम्मेदारी और वित्तीय खुलासों की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए।
- इसके अलावा उनकी आचार संहिता निर्धारित की जानी चाहिए और खिलाडिय़ों और कर्मचारियों के लिए अनुबंध अधिकारों की व्यवस्था होनी चाहिए।
- इनके लिए व्यापक अर्हता तय की जानी चाहिए। स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इन पर विफल होने की स्थिति में सरकार अपना समर्थन या मान्यता खत्म कर सकती है।
- ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश एमेच्योर, संघीय और अंतरराष्ट्रीय विभिन्न स्तरों पर संचालन के लिए नियम बनाते हैं। भले ही इसमें गहन कानूनी हस्तक्षेप न हो। इससे एक स्तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता तय होती है। अगर हम ऐसे विविधतापूर्ण खेल उद्योग वाले देशों का अनुकरण करेंगे तो देश के उभरते खेल उद्योग की मदद ही होगी।