कार्यान्वयन की चुनौतियां

'कार्ययोजना के अभाव में रणनीति जीत की ओर कदम सुस्त कर देती है। रणनीति के अभाव में कार्ययोजना हार से पहले का इशारा करती है।' मौजूदा नोटबंदी को लेकर मची हाराकिरी में हमें 'द आर्ट ऑफ वार' के इन शब्दों का भान होता है। इस बात पर सर्वानुमति है कि इसका कार्यान्वयन बहुत बड़ी नाकामी साबित हो रहा है। कार्यान्वयन हमेशा से भारत की सबसे बड़ी कमजोरी रही है और नीति निर्माता काफी अरसे से हमारी जटिलता और विविधता से खुद को दिलासा देते आए हैं। 

भारत और कार्यान्वयन की चुनौतियां

कार्यान्वयन की पहेली केवल भारत में हीं नहीं बल्कि सभी जगह पर है। जहां 10 में से 9 कंपनियां अपनी रणनीति सिरे चढ़ाने में नाकाम रहती हैं, वहीं भारत में हमारा शोध यही दर्शाता है कि भारत में अभी तक कोई भी सरकार अपने 'बेहतरीन तरीके से गढ़े' चुनावी घोषणापत्र को पूरी तरह लागू नहीं कर पाई। यह देखते हुए कि हमारे प्रधानमंत्री के पास भारत को दुनिया की महाशक्ति बनाने का सपना और दृष्टिïकोण है लेकिन यहां केवल उस दृष्टिकोण को अमल में लाने का सवाल ही आड़े आ जाता है। असल में हमें काम को कुछ अलग ढंग से अंजाम देने की दरकार है, जिसमें विभिन्न मंत्रालय, विभाग और अफसरशाह सुसंगत तरीके से सामंजस्य बिठाकर काम कर सकें। 

  • मिसाल के तौर पर 'मेक इन इंडिया', 'कौशल भारत' और 'स्टार्टअप इंडिया' सभी सरकार के लिए खास योजनाएं हैं लेकिन कितने लोग उन्हें वास्तविक वृद्घि का सशक्त संवाहक मानते हैं? इनमें से प्रत्येक का जिम्मा अलग-अलग मंत्रालय के मातहत आता है। क्या उनके बीच कोई कड़ी है और कौन इसका जिम्मेदार है? प्रबंधन परिप्रेक्ष्य की दृष्टिï से यह मूल्य वर्धन शृंखला का भाग है, जो देश के लिए ऊंची वृद्घि का सबब बन सकता है।
  • रणनीतिक एजेंडा, मापकों, लक्ष्यों, संबद्घ कवायदों और उचित नजरियों के संतुलन के अभाव में प्रधानमंत्री के शीर्ष 16 महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य मंजिल से दूर ही रह जाएंगे।
  • सरकार निजी क्षेत्र की साझेदारी के साथ कौशल भारत पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है लेकिन इसका कोई आकलन नहीं किया जा रहा है कि प्रत्येक मंत्रालय के तहत आने वाले सार्वजनिक उपक्रमों के तहत ही कितने रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं और उनके लिए किस तरह के कौशल की दरकार होगी। जहां कौशल विकास से जुड़ी फर्म सरकारी कोष के 50 फीसदी मार्जिन पर काम कर रही हैं, ऐसे में यहां अगले बड़े घोटाले की सुगबुगाहट सुनाई पड़ रही है। 
  • नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के समक्ष अभी हाल में एक प्रस्तुतिकरण दिया गया कि सरकार तंत्र में एकरूपता और शासन के स्तर को सुधारने के लिए कैसे कदम उठा सकती है। यह हमारी लक्ष्य-केंद्रित प्रशासन के गैर-लाभकारी मिशन का एक हिस्सा है। इस दौरान उन्होंने पूरी प्रस्तुति को बहुत ध्यान से सुना। कोई एनजीओ मैकिंजी के माफिक काम कर रहा है, ऐसा सुनना खुद अपने 'कानों को सुकून' देने वाला होना चाहिए। बहरहाल, हमने जो सुझाव दिए वे सरकारी, निजी और गैर-लाभकारी क्षेत्रों में कार्यान्वयन को बढ़ावा देने वाले सबसे प्रभावी होंगे। प्रधानमंत्री के दृष्टिïकोण को मूर्त रूप देने के लिए यह न केवल जरूरी बल्कि अपरिहार्य है।
  • किसी भी सरकार की भूमिका सामाजिक और आर्थिक मूल्यों के सृजन की होती है। ये मूल्य नेतृत्व, लोगों एवं कौशल, नवाचारी प्रक्रिया, सूचना पूंजी एवं संस्कृति जैसी अचल परिसंपत्तियों से सृजित होते हैं। जिन देशों के पास तेल या अन्य खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं, उन देशों में प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अपेक्षाकृत कम संपन्न देशों से प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कम होने के साथ ही नागरिकों के लिए सामाजिक मूल्यों का भी कम ही विकास हुआ। सऊदी अरब, वेनेजुएला और नाइजीरिया लचर मूल्य सृजन की मिसाल हैं। इनकी तुलना में चल परिसंपत्तियों के मोर्चे पर अभावग्रस्त दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, इजरायल और हॉन्ग कॉन्ग जैसे देशों ने प्रति व्यक्ति जीडीपी के साथ-साथ अपने नागरिकों लिए जबरदस्त मूल्यों का सृजन किया। कंपनियों के पैमाने पर भी यही प्रारूप नजर आता है, जहां 80 फीसदी बाजार पूंजीकरण जमीन और मशीनरी के बजाय ब्रांड, प्रक्रियाओं और लोगों के जरिये हासिल होता है! 

Comparative analysis world over

हाल के दौर में दुनियाभर में सरकारों ने अनुकरणीय कार्यान्वयन की अद्भुत मिसालें पेश की हैं। इसमें अमेरिका शीर्ष पर नजर आता है, जहां व्हाइट हाउस और एफबीआई कार्यान्वयन के लिए संतुलित एजेंडे को अपनाते हैं, वहीं फिलीपींस और सिंगापुर जैसे देश भी इस पैमाने पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। बार्सिलोना, अबु धाबी और ब्रिस्बेन जैसे तमाम शहर चमकने में सफल रहे हैं लेकिन भारत में अभी तक इसका इंतजार है, जिसके लिए सशक्त नेतृत्व की दरकार है। 

What is required for good desired results:

  • कार्यान्वयन के लिए नीति निर्माताओं को कई स्तरों पर समझ की जरूरत होती है। अमूमन किसी भी नीतिगत संतुलन में विरोधाभासी ताकतें समाहित होती हैं। जैसे कौशल विकास में निवेश सब्सिडी जैसी कल्याणकारी योजनाओं के खर्च में कटौती की कीमत पर होता है। सरकार को दीर्घावधिक प्रतिबद्घता दर्शानी चाहिए लेकिन उसे तात्कालिक राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक भी कदम उठाने होते हैं। संतुलित कार्यान्वयन के लिए लघु अवधि और दीर्घ अवधि, चल एवं अचल, वृद्घि एवं समावेशन के बीच संतुलन की आवश्यकता है। 
  • मूल्य खास प्रक्रियाओं के जरिये ही सृजित होते हैं। अगर सरकार अपने वादे के मुताबिक नतीजे चाहती है तो उसे सही प्रक्रियाओं का चयन करना होगा।
  • रणनीतिक एजेंडे में साथ ही साथ परस्पर पूरक प्रसंग शामिल होते हैं। प्रक्रियाओं के प्रत्येक पहलू अलग-अलग समय और बिंदुओं पर लाभ प्रदान करता है, जैसे सब्सिडी खत्म करना तात्कालिक बचत का सबब बनता है लेकिन खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना उस लाभ को बराबर कर सकता है। अपराधों में कमी और रोजगार सृजन के लिए प्रक्रियाओं की जरूरत होगी, जो मध्यम अवधि में नतीजे हासिल कर सकें। स्टार्टअप इंडिया जैसी पहल के नतीजे कुछ समय के बाद ही देखने को मिलेंगे। इन सभी को एक के बाद एक नहीं बल्कि एक साथ ही सिरे चढ़ाना होगा। इनमें से तमाम लक्ष्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और अपेक्षित नतीजों के लिए उनकी निगरानी की जानी चाहिए। 
  •  नीतिगत एकरूपता अचल परिसंपत्तियों की हैसियत को निर्धारित करती है। नेतृत्व के साथ मिलकर कर्मचारियों का कौशल, प्रतिभा, ज्ञान, तकनीक और नेटवर्क अवसंरचना वास्तविक मूल्य वर्धन को गति देती है। अगर उचित सूचना प्रौद्योगिकी के बीच सरकारी कर्मचारियों को कौशल सिखाने में निवेश किया जाए तो सक्षमता कुंद होगी। मिसाल के तौर पर डेटा विश्लेषण की उचित तकनीक के बिना उच्च प्रशिक्षित आयकर अधिकारी भी कुछ नहीं कर पाएगा। 

संतुलित कार्यान्वयन एजेंडे को लागू करने में सरकार की राह में मुश्किलें आएंगी। जवाबदेही बढ़ाने और स्पष्टï दृष्टिïकोण के लिए निजीकरण, रणनीतिक एजेंडे और कुछ प्रदर्शन पैमानों की बढ़ती जरूरत पर उसे अवश्य ही ध्यान देना चाहिए। सफलता तभी हासिल हो पाएगी, जब विभिन्न मंत्रालयों और क्षेत्राधिकारों के बीच एकीकरण होगा, विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन स्थापित होगा, सभी अंशभागियों को साथ लेकर कर्मचारियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। 

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