केंद्र सरकार ने महानगरों में निजी वाहनों के पंजीकरण के लिए पार्किंग की उपलब्धता को अनिवार्य करने का इरादा जताया है।
यह निर्णय क्यों
- बढाती जनसंख्या और शरो पर बढ़ते दबाव के कारण न केवल महानगरों, बल्कि अन्य शहरों और बस्तियों में भी अवैध पार्किंग विकराल समस्या की शक्ल अख्तियार करती जा रही है।
- बस्तियों, बाजारों और दफ्तरों के आसपास लोगबाग कहीं भी बेतरतीब ढंग से अपनी गाड़ियां खड़ी कर देते हैं, सड़कें घिरती हैं और तमाम जगहों पर तो लगातार जाम की स्थिति बनी रहती है।
- दुर्घटनाएं भी होती हैं। मुहल्लों-कॉलोनियों में तो हालत यह हो गई है कि सड़कों के दोनों तरफ कारों की टेढ़ी-मेढ़ी कतारें लगी रहती हैं, जो कई बार कहासुनी और मारपीट का सबब बन जाती है।
- पार्किंग को लेतकर झगड़े और रोडरेज की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। इन स्थितियों को देखते हुए अगर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने पार्किंग की उपल्बधता होने पर ही वाहनों के पंजीकरण का प्रस्ताव किया है, तो यह स्वागत-योग्य है।
दिल्ली का उदाहरण
सिर्फ दिल्ली में करीब 91 लाख वाहन पंजीकृत हैं, जिनमें करीब तीस प्रतिशत कारें, साठ प्रतिशत मोटर साइकिलें और दो प्रतिशट आटो रिक्शा और टैक्सियां हैं। इसके अलावा हर साल करीब चार-पांच लाख वाहन दिल्ली की सड़कों पर और उतर जाते हैं।
एक सराहनीय कदम
- अगर सरकार अपने इरादे को अमल में लाती है तो गाड़ियों की अनाप-शनाप खरीद-फरोख्त पर भी रोक लगेगी।
- गाड़ियों का बढ़ता काफिला पर्यावरण के लिहाज से भी खतरनाक है। पर्यावरणविद तो बहुत पहले से और अब तो न्यायालय वाहनों को सीमित करने में ही भलाई देख रहे हैं।
- अभी तक हिमाचल ही ऐसा राज्य है, जहां वाहनों की खरीद के लिए पार्किंग की जगह होना अनिवार्य बनाया गया है। हालांकि यह राज्य सरकार के निर्णय के बजाय उच्च न्यायालय के दखल से हुआ। उच्च न्यायालय ने 2015 में अवैध पार्किंग की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए यह आदेश दिया था। इसके बाद राज्य सरकार को इस दिशा में नियमावली तैयार करनी पड़ी। आदेश के मुताबिक वाहन का पंजीकरण करने से पहले संबंधित थाने से पार्किंग उपलब्धता का प्रमाणपत्र लेना पड़ता है, इसके बाद ही वाहन का पंजीकरण होता है।