प्रस्तावना
इसे विडंबना कह सकते हैं कि भारत में जिन सड़कों पर आपकी जान को कम खतरा होता है वो भीड़-भाड़ और ट्रैफिक वाली सड़कें ही होती हैं। ये ऐसी सड़कें हैं जहां आपकी जान भले ही सुरक्षित हो लेकिन इन सड़कों पर यात्रा करते हुए आप कहीं भी वक्त पर नहीं पहुंच सकते जबकि भारत में जिन सड़कों पर आप रफ्तार के साथ सफर कर सकते हैं वो इतनी असुरक्षित हैं कि वहां कभी भी, किसी के भी साथ आपराधिक वारदात हो सकती है। अगर वाहन चलाने वाला अपराधियों से बच भी जाए तो वो दुर्घटना का शिकार हो जाता है। यानी भारत के लोगों को सड़क पर सुरक्षित रूप से चलने का स्वराज आज़ादी के लगभग 69 वर्षों के बाद भी नहीं मिल पाया।
क्या मूलभूत कारण है हादसों का
भारत की सड़कों पर अक्सर ट्रैफिक रेंगता है लेकिन फिर भी भारत में पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं इसका कारण ये है कि भारत में सड़क हादसे सिर्फ रफ्तार की वजह से ही नहीं होते बल्कि टूटी-फूटी सड़कें और गड्ढे भी सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार हैं।
एक नजर आंकड़ो पर
वर्ष 2015 में भारत में खराब सड़कों की वजह से हुई दुर्घटनाओं में 10 हज़ार 727 लोगों की जान गई थी जबकि सड़कों पर गड्ढों की वजह हुई दुर्घटनाओं में 3 हज़ार 416 लोगों ने अपनी जान गंवाईं। आपको जानकर हैरानी होगी कि 2015 में टूटी-फूटी सड़कों की वजह से 10 हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए जबकि 2011 से लेकर 2016 के बीच यानी 5 वर्षों में भारत में आतंकवादी घटनाओं में 4 हज़ार 945 लोगों की मौत हुई है। आप कह सकते हैं कि भारत की सड़कें आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक हैं।
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दिल्ली के वसंतकुंज इलाके में मोटरसाइकिल पर सवार एक व्यक्ति पानी से भरे गड्डे में अपनी मोटरसाइकिल सहित गिर गया था और इससे पहले कि आसपास के लोग उसे बाहर निकाल पाते। उसके ऊपर से पानी ले जाने वाला ट्रक गुज़र गया और उस व्यक्ति की मौत हो गई। उस व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष थी। उसका भी एक हंसता खेलता परिवार रहा होगा। उसकी भी कुछ उम्मीदें रही होंगी लेकिन सड़क के एक गड्ढे और लापरवाही से चल रहे एक ट्रक ने उस व्यक्ति की हर उम्मीद और हर खुशी को कुचल दिया।
ज़रा सोचिए कि आज़ादी के लगभग 7 दशक के बाद एक व्यक्ति को सड़क पर सुरक्षित रहने का स्वराज भी अब तक नहीं मिला है। आज भी एक गड्ढा सड़क पर चल रहे किसी आम नागरिक की जान ले सकता है। ये अपने आप में राष्ट्रीय शर्म और राष्ट्रीय शोक का विषय है। अब वो समय आ गया है जब भारत को ट्रैफिक वाले इस टॉर्चर से आज़ादी चाहिए।
-भारत की सड़कें ना सिर्फ टूटी फूटी हैं बल्कि दुनिया की सबसे सुस्त सड़कों में शामिल है। जहां लोगों को घर से दफ्तर पहुंचने में घंटों लग जाते हैं।
-ट्रैफिक जाम और वाहनों की धीमी रफ्तार के लिए बदनाम दुनिया के 10 शहरों में से 4 अकेले भारत में हैं।
-ट्रैफिक से जुड़े डाटा का विश्लेषण करने वाली संस्था Numb-eo के मुताबिक पूरी दुनिया में कोलकाता के लोगों को घर से दफ्तर तक पहुंचने में सबसे ज्यादा वक्त लगता है।
-इस ट्रैफिक इंडेक्स के मुताबिक कोलकाता के लोगों को ऑफिस पहुंचने में औसतन 72 मिनट लगते हैं।
-दूसरे नंबर पर मुंबई है जहां लोगों को दफ्तर पहुंचने के लिए औसतन 69 मिनट का सफर तय करना पड़ता है।
-7वें नंबर पर गुरुग्राम और 8वें नंबर पर देश की राजधानी दिल्ली है ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम गुरुग्राम में लोग औसतन 59 मिनट तक वाहन चलाकर अपने ऑफिस पहुंचते हैं।
-जबकि दिल्ली में घर से ऑफिस जाने के लिए लोगों को औसतन 57 मिनट खर्च करने पड़ते हैं।
-ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम 10 शहरों में, ढाका, नैरोबी, मनीला, इस्तांबुल, काहिरा और तेहरान जैसे शहर भी शामिल हैं।
2015 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक भारत के शहरों की सड़कों पर ट्रैफिक की औसत रफ्तार 19 किलोमीटर प्रति घंटा है। भारत के शहरों में आप वाहनों को रात 3 बजे से लेकर से सुबह 5 बजे के बीच ही तेज़ गति से चला सकते हैं। इस दौरान भारत में वाहनों की औसत रफ्तार 33 किलोमीटर प्रति घंटे दर्ज की गई है। भारत में सबसे तेज़ सड़कें दिल्ली और पुणे में हैं जहां वाहन पीक आवर्स में औसतन 23 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ते हैं।
लेकिन अगर आप कोलकाता और बैंगलुरु में वाहन चलाते हैं तो इस बात की पूरी संभावना है कि आपके वाहन का Speedo Meter 17 औऱ 18 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से ऊपर जा ही ना पाए।