नकदी रहित लेनदेन को लोकप्रिय बनाने के लिए क्या आवश्यक

#Editorial of business standard

कैशलेस के लिए अबाध संयोजकता यानी कनेक्टिविटी की आवश्यकता है जो हमारे पास नहीं है। बिना उसके इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। कनेक्टिविटी सुविधा के लिए प्रभावी और किफायती संचार संपर्क की आवश्यकता है वह भी उचित दरों पर। इसके लिए ऐसे लक्ष्य तय करने होंगे जो हकीकत के करीब हों और साथ ही ठोस ढंग से क्रियान्वयन भी करना होगा। केवल काल्पनिक योजनाएं बनाने और जल्दबाजी में आंकड़े जुटाने मात्र से काम नहीं चलेगा। इंटरनेट आधारित लेनदेन के लिए सुरक्षा और गोपनीयता का भी पूरा ध्यान रखना होगा।

क्या है जरूरत?

  • इसके लिए फाइबर आधारित टिकाऊ इंटरनेट कनेक्टिविटी की आवश्यकता है। इस कनेक्टिविटी  को समेकित नेटवर्क के जरिये बेतार ढंग से उपभोक्ताओं तक पहुंचाना होगा।
  • इन नेटवर्क की स्थापना की संभावना बढ़ जाएगी अगर राजनीतिक दल और सरकारी एजेंसियां इस दिशा में मिलकर काम करें। ऐसा करना दो वजहों से आवश्यक है:
  • हमारी वर्तमान नेटवर्क विकास और स्पेक्ट्रम नीति ऐसी नहीं है कि सभी तक ब्रॉडबैंड सुविधा पहुंचाई जा सके। खासतौर पर शहरी इलाकों से उलट उन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां वाणिज्यिक संभावनाएं कम हैं।
  •  गहन प्रतिद्वंद्विता के बीच नेटवर्क विकास और स्पेक्ट्रम का प्रबंधन करना। वह भी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद।

सामंजस्य भरा रुख अपनाने की आवश्यकता

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के पास स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल की अनुशंसा का उत्तरदायित्व है। लाइसेंस देने का उत्तरदायित्व दूरसंचार विभाग/संचार मंत्रालय के पास है। सरकारी सेवा प्रदाताओं का जिम्मा भी उसके ही पास है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पास भी कुछ स्पेक्ट्रम बैंड है। अन्य बैंड रक्षा मंत्रालय और सरकारी एजेंसियों के पास हैं। इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ब्रॉडबैंड की उपलब्धता के लिए जिम्मेदार है। इसलिए सामंजस्य भरा रुख अपनाने की आवश्यकता है।

क्या करना होगा?

  • network pooling : व्यापक कनेक्टिविटी  के लिए नेटवर्क को साझा करने और उसकी पूलिंग करने जैसे बड़े बदलाव लाना आवश्यक है। ऐसे बदलाव आपसी अविश्वास और विवाद की स्थिति में नहीं आ सकते। इसके लिए सहयोग और भरोसा जरूरी है। सेवा प्रदाताओं को नेटवर्क और स्पेक्ट्रम खरीद में भारी निवेश करना पड़ता है। वे भी उपकरण साझेदारी की दिशा में काम कर सकते हैं। यह सबके लिए हितकर होगा।
  • नकदीरहित या अन्य अवास्तविक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करने की जगह हम कैशलेस के संकट से निजात पाने की कोशिश करें। कैशलेस पर जोर देने के बजाय कोशिश होनी चाहिए कि ऐसा सार्वभौमिक संचार ढांचा मुहैया कराया जाए जहां कैशलेस ही नहीं हर तरह की गतिविधि को अंजाम दिया जा सके।
  • इसके अलावा इसे अधिक सुरक्षित, सुव्यवस्थित बनाया जाना चाहिए। नेटवर्क बुनियादी ढांचे को साझा करने के नीतिगत निर्णय से इस दिशा में शुरुआत हो सकती है।
  •  हम विरासत में मिली संचार नीतियों के कारण उपजे इस गतिरोध को तोड़ सकते हैं। इसके स्पेक्ट्रम की उच्च नीलामी दर का मोह छोडऩा होगा जबकि सस्ती सेवाओं की चाह भी छोडऩी होगी।
  •  एक बार नेतृत्व के स्तर पर सहयोग हो जाने के बाद देखने को मिलेगा कि संचार सेवाओं की आपूर्ति काफी सुधरी है। तालमेल और साझेदारी इसमें अहम भूमिका निभाएगी। इससे अन्य पक्षकारों, निजी क्षेत्र के सेवा प्रदाता, नागरिक और न्यायपालिका भी यह मानेंगे कि साझा पहुंच के जरिये संचार सेवाओं की आपूर्ति में हर किसी का लाभ है। इससे अधिक तार्किक और इस्तेमाल करो- भुगतान करो नीति को स्वीकार करने में मदद मिलेगी। ठीक राजमार्ग, मेट्रो रेल, तेल पाइपलाइन इस्तेमाल के तर्ज पर।


सरकार और अन्य पक्षकार साथ मिलकर ऐसे उपाय निकाल सकते हैं जो व्यावहारिक भी हों और निष्पक्ष भी। उदाहरण के लिए सेवा प्रदाताओं के एक या अधिक ऐसे समूह बनाए जा सकते हैं जो सरकार के साथ सहनिवेशक बनें। उनके पास नेटवर्क का साझा स्वामित्व होगा। ऐसे में सेवाओं की किफायती और प्रभावी आपूर्ति की दिशा में काम किया जा सकता है। स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल से होने वाली आय को सरकार तब ले सकती है जब एकबार नेटवर्क व्यावसायिक दृष्टि से व्यवहार्य हो जाए। ऐसे संग्रह राजस्व साझेदारी और लाइसेंस शुल्क के अलावा नीलामी शुल्क से भी अधिक हो सकते हैं। 

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