ऊर्जा परतंत्रता से चाहिए आजादी

India is not energy surplus and this needs to be imported. Require innovative solution to become completely Independent.

#Dainik_Tribune

देश को स्वतंत्र हुए 70 साल हो गए परन्तु हम परतंत्र होते जा रहे है।

  • फास्फेट फर्टिलाइजर, ईंधन तेल, कोयले और यूरेनियम के आयात पर हम निर्भर हो गए हैं। इनकी सप्लाई बंद हो जाए तो हमें एक सप्ताह में ही विदेशी ताकतों के सामने घुटने टेक देने होंगे।
  • ऊर्जा की परतंत्रता सबसे ज्यादा विकट है। देश की ऊर्जा की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं

 हमारे स्रोत सीमित हैं (Resources Limited)

  • थर्मल बिजली के उत्पादन को कोयला चाहिए। हमारे कोयले के भंडार लगभग 150 साल के लिए ही पर्याप्त हैं। वर्तमान में ही हम कोयले का आयात कर रहे हैं।
  • देश में तेल कम ही उपलब्ध है। 80 प्रतिशत तेल का हम आयात कर रहे हैं।
  • न्यूक्लीयर ऊर्जा के लिए अपने देश मे यूरेनियम कम ही उपलब्ध है। इसके आयात के लिए हम निरंतर न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।
  • थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्जा में एक और समस्या पीकिंग पावर की है।

Problem of thermal & Nuclear Energy

  • देश में ऊर्जा की डिमांड सुबह एवं शाम 6 से 10 बजे सर्वाधिक रहती है। लेकिन थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्जा को समयानुसार शुरू तथा बंद नही किया जा सकता।
  • थर्मल तथा न्यूक्लीयर ऊर्जा 24×7 बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए उपयुक्त होती है।

Problem of Oil Energy

  • तेल से बनी ऊर्जा को तुलना में जल्द शुरू एवं बंद किया जा सकता है परन्तु यह सबसे महंगा पड़ता है। इसलिए धाबोल जैसी तेल आधारित परियोजनाओं को हमें बंद करना पड़ा है

सोलर तथा हाइड्रो स्रोत (Solar & Hydro Energy)

  • सोलर ऊर्जा का उत्पादन केवल दिन के समय होता है। पीकिंग पावर की जरूरत पूरा करने में यह स्रोत पूरी तरह नाकाम है।

हाइड्रो पावर (Hydro Power)

  • हाइड्रो पावर से पीकिंग पावर को बखूबी बनाया जा सकता है।
  • हाइड्रोपावर का उत्पादन नदी के पानी को डैम के पीछे रोक कर किया जाता है।
  • टर्बाइन को मनचाहे समय शुरू और बंद किया जा सकता है।

लेकिन

  • हाइड्रोपावर के पर्यावरणीय एवं सामाजिक दुष्प्रभाव भयंकर हैं।
  • टिहरी, भाखड़ा और सरदार सरोवर जैसे बांधों में नदी द्वारा लाई गई गाद जमा हो रही है।अध्ययनों में पाया गया है कि टिहरी की झील 140 से 170 वर्षों में पूरी तरह गाद से भर जाएगी।टिहरी डैम का मूल लाभ है कि मानसून के पानी को एकत्रित करके जाड़े एवं गर्मी में उपयोग किया जाता है। झील में गाद के भर जाने के बाद ऐसा नहीं हो सकेगा। झील में गाद जमा होने से नदी द्वारा गाद कम मात्रा में लाई जाती है और समुद्र द्वारा अपनी भूख को मिटाने के लिए तटों का भक्षण किया जाता है। वर्तमान में गंगासागर द्वीप का समुद्र द्वारा भक्षण इसी प्रकार किया जा रहा है।
  • Small Hydropower: छोटी हाइड्रोपावर योजनाओं में डैम के पीछे बड़ी झील नहीं बनाई जाती। 24 घंटे में जितना पानी पीछे से आता है, उतना ही बिजली बनाकर आगे छोड़ दिया जाता है। परन्तु इन योजनाओं से मछली के आने-जाने के रास्ते बंद हो जाते हैं। मछली के कमजोर होने से नदी के पानी की गुणवत्ता भी कमजोर होती है।
    हाइड्रोपावर योजनाओं में विस्थापन की सामाजिक समस्या भी रहती है। कोटलीमेल परियोजना के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का आर्थिक मूल्यांकन किया तो पाया कि हाइड्रोपावर की वास्तविक उत्पादन लागत 15-20 रुपए प्रति यूनिट है।

ऊर्जा स्वतंत्रता (Energy Independence) की समस्या विकट है। थर्मल तथा न्यूक्लीयर के लिए हम आयातों पर निर्भर हो जाते हैं और पीकिंग पावर भी नहीं बना सकते। तेल महंगा पड़ता है। सोलर का उत्पादन दिन में होता है जबकि जरूरत सुबह-शाम ज्यादा होती है।

Solution:

इस समस्या का हल सोलर तथा पम्प स्टोरेज के जोड़ से निकल सकता है। पम्प स्टोरेज योजना में दो झीलें बनाई जाती हैं। एक ऊपर तथा एक नीचे। जिस समय सोलर, थर्मल अथवा न्यूक्लीयर बिजली की सप्लाई अधिक एवं डिमांड कम रहती है और बाजार में बिजली का दाम लगभग 2 रुपए रहता है, उस समय नीचे की झील को झील के पानी को पम्प से ऊपर की झील में डाल दिया जाता है। इसके बाद जब बिजली की डिमांड ज्यादा होती है और बिजली का दाम 8-12 रुपए प्रति यूनिट रहता है तो ऊपर की झील से पानी छोड़ बिजली को बनाया जाता है। हमारे पास कोयला है, यूरेनियम है, तेल है। नदियां पूजनीय हैं लेकिन हमारे पास धूप और पहाड़ हैं। इनका जोड़ बना दें तो हम अपने संसाधनों से ही सुबह-शाम की पीकिंग बिजली 6-7 रुपए के सस्ते दाम पर बना सकते हैं

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