#Editorial_The Hindu http://www.thehindu.com/opinion/editorial/Solar-power-breaks-a-price-barrier/article17292695.ece
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मध्य प्रदेश में रीवा सौर पार्क के लिए 2.97 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली बेचने की बोली लगाई गई है. 750 मेगावॉट क्षमता की इस परियोजना के लिए आई निविदाओं में लगाई गई इस दर में अगर सालाना थोड़ी सी बढ़ोतरी को भी जोड़ दें तो भी 25 साल की अवधि के दौरान यह 3.29 रु तक ही जाएगी. यह दर उस दर के आधे से भी कम है जिस पर हाल के कुछ वर्षों तक कुछ राज्य सरकारों ने समझौते किए हैं. इससे साफ पता चलता है कि स्वच्छ ऊर्जा का भविष्य क्या है.
अब नीति में विशेष प्रोत्साहन उपाय शामिल कर स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में की गई इस प्रगति का काम और तेज होना चाहिए. इसके कई कारण हैं.
- सबसे अहम तो यही है कि अब भी देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनकी बिजली तक पहुंच नहीं है.
- सौर ऊर्जा उनके जीवन को रोशन कर सकती है. सौर ऊर्जा के संयंत्र स्थापित करने के काम में तेजी लाना उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी जरूरी है जिसके तहत हमने 2022 तक 100 गीगावाट्स बिजली इसी माध्यम से पैदा करने की बात कही है.
- इस लक्ष्य पर दुनिया की भी नजर है क्योंकि जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते में भी हमने यह वचन दिया है.
- यह हमारे पर्यावरण पर भी बड़ा असर डालेगा क्योंकि इससे कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है.
- 2010 में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन के साथ जो काम शुरू हुआ है उसकी प्रगति में तेजी में फायदा ही फायदा है
हालांकि इसके बावजूद अभी तक हमारा प्रदर्शन हमारे दावों से मेल नहीं खा रहा है और 2016-17 में सौर ऊर्जा से 12 गीगावाट्स बिजली पैदा करने के लिए लक्ष्य से हम मीलों दूर हैं. बीते दिसंबर तक हम मुश्किल से दो गीगावाट्स तक पहुंचे थे.
Fault in our policies:
स्वच्छ ऊर्जा के लिए बनी राष्ट्रीय नीति में सबसे बड़ी कमी यह है कि यह इस क्षेत्र में मध्य वर्ग के निवेश की संभावनाओं को भुनाने में नाकाम रही है.
- अभी तक सबसे ज्यादा ध्यान ग्रिड से जुड़े बड़े स्तर के संयंत्रों पर ही दिया जाता रहा है जबकि छतों पर लगने वाले सौर ऊर्जा पैनलों के मामले में प्रगति बहुत धीमी है.
- यह साफ है कि अगल छह साल में अगर हमें सालाना 10 गीगावाट्स से ज्यादा का लक्ष्य हासिल करना है तो इसमें आवासीय और व्यावसायिक, दोनों तरह के निर्माण क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी और निवेश की जरूरत होगी.
What can be done:
- यह प्रक्रिया नागरिकों की सामूहिक भागीदारी के साथ शुरू की जा सकती है.
- राज्य बिजली बोर्डों को कहा जाए कि वे एक तय समय के भीतर नेट मीटरिंग की व्यवस्था लागू करें
- . इसमें टैरिफ की व्यवस्था ऐसी हो कि आम उपभोक्ता सौर पैनलों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हो.
- इस मामले में जर्मनी से सीखा जा सकता है जहां कई साल से सौर ऊर्जा का मजबूती से विस्तार हो रहा है. वहां नीति इस तरह से बनाई गई है कि आम उपभोक्ता के छत पर सोलर पैनल लगाने पर बिजली के बिल में 20 साल तक फायदा मिलता रहेगा.
- सौर उपकरणों की कीमत समय के साथ और भी गिरने का अनुमान है और बड़े और छोटे संयंत्रों द्वारा पैदा की जा रही बिजली की दर की समय-समय पर समीक्षा भी करनी होगी
एक वक्त ऐसा भी आएगा जब इस क्षेत्र में जा रही रियायतों की कोई जरूरत नहीं रहेगी. हालांकि यह अभी भविष्य की बात है. अभी भारत को स्वच्छ ऊर्जा की कहीं ज्यादा जरूरत है. सौर ऊर्जा अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए एक प्रदूषण मुक्त विकल्प है. इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार की संख्या भी बढ़ेगी. इस लिहाज से अभी सूरज की रोशनी का बड़ा हिस्सा बेकार जा रहा है