जानलेवा प्रदूषण

अमेरिका के प्रतिष्ठित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत के वायु प्रदूषण को लेकर बड़ी खतरनाक तस्वीर पेश की है।

  • उसका कहना है कि हवा में पीएम 2.5 कणों की हद से ज्यादा मौजूदगी के चलते सन 2015 में भारत में 11 लाख समय-पूर्व मौतें हुईं, जो इसी वजह से चीन में हुई मौतों के ठीक बराबर है।
  • पूरी दुनिया में इस साल 42 लाख लोगों की अकाल मृत्यु इस कारण से हुई थी, जिसमें आधी से ज्यादा - 22 लाख-मौतें सिर्फ भारत और चीन में हुई थीं।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन के शहरी वातावरण में पीएम 2.5 कणों की मौजूदगी घटाने के लिए ठोस प्रयास शुरू हो चुके हैं, लेकिन भारत में वायु प्रदूषण कोई बड़ी समस्या नहीं माना जाता है।
  • ऐसे में भारत जल्द ही वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के मामले में चीन को काफी पीछे छोड़ देगा और इस मामले में दुनिया का कोई भी देश उसके आस-पास भी नजर नहीं आएगा।
  • प्रदूषण को लेकर हमारी सरकारों का आम रवैया यही रहा है कि इसे विकसित देश बनाम विकासशील देश के भाषणबाजी वाले मुद्दे की तरह ही लिया जाना चाहिए।
  • यहां तक कि मौजूदा केंद्र सरकार ने जब स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की, तो भी इसका दायरा ठोस कचरे की सफाई तक ही सीमित रखा। यह और बात है कि यह अभियान भी व्यवहार में दिखावा ही साबित हुआ।
  • जल प्रदूषण का मामला ‘नमामि गंगे’ जैसे फोकट फंड के अर्ध-धार्मिक अभियान तक सीमित है, जबकि वायु प्रदूषण पर तो अभी तक कुछ भी करना जरूरी नहीं समझा गया है।
  • हमारे यहां पलूशन कंट्रोल के नाम पर बनाए गए दफ्तरों में आपको फील्ड विजिट करने वाले अफसर तो क्या, शिकायत दर्ज करने वाले बाबू तक नजर नहीं आते। फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ जाने वाला एक भी कदम उठाने से पहले हमारी सरकारों के हाथ-पैर फूल जाते हैं।
  • भयानक स्मॉग वाले जाड़े के 15-20 दिनों को छोड़कर हमारे शहरी नागरिकों के लिए भी वायु प्रदूषण कोई मुद्दा नहीं रहता। ऐसे में क्या सांस की बीमारियों के महामारी का रूप ले लेने के बाद ही हम इस बारे में कोई ठोस कदम उठाएंगे?

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