वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर रिपोर्ट:- खतरा सिर्फ वन्यजीवन पर नहीं, हम सब पर मंडरा रहा है

सन्दर्भ :-2020 तक वन्यजीवों की आबादी 50 साल पहले के मुकाबले एक तिहाई ही रह जाएगी. इंडियन एक्सप्रेस की संपादकीय टिप्पणी

 

चर्चित संगठन वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की एक ताजा रिपोर्ट उन आशंकाओं को आंकड़ों में सामने रखती है जो पर्यावरणविद लंबे समय से जताते रहे हैं. लिविंग प्लानेट रिपोर्ट 2016 के मुताबिक 1970 से 2012 के दौरान दुनिया में वन्यजीवों की 58 फीसदी आबादी खत्म हो गई.

Highlights from Report:

  • रिपोर्ट में यह आशंका भी जताई गई है कि 2020 तक यह आबादी 50 साल पहले के मुकाबले एक तिहाई रह जाएगी.
  • WWF के मुताबिक जो प्राणी खत्म हो रहे हैं उनमें हाथी, गोरिल्ला और गिद्द जैसी खतरे में पड़ी चर्चित प्रजातियां तो हैं ही, सैलमैंडर्स, हिम तेंदुआ और मूंगा चट्टानें जैसे वे नाम भी शामिल हैं जिनके बारे में हम ज्यादा नहीं जानते. यह रिपोर्ट 3700 से भी ज्यादा कशेरुकी (रीढ़ की हड्डी वाली) प्रजातियों से जुड़े वैज्ञानिक डेटा पर आधारित है.

=>जैव विविधता क्षरण के कारण:-

  • वन्यजीवों की आबादी में गिरावट तब आती है जब उनके पर्यावास संकट में होते हैं. लेकिन उनके पर्यावास का विनाश सिर्फ उनके लिए संकट का सबब नहीं होता.
  •  हवा और पानी का संरक्षण और शोधन, जलवायु, परागण, बीजों के फैलाव और कीड़े-मकोड़ों और बीमारियों से बचाव जैसी चीजों के लिए हम भी स्वस्थ और विविधता वाली प्राकृतिक व्यवस्थाओं पर निर्भर होते हैं.
  • आज यह साबित हो चुका है कि दलदली भूमि या वेटलैंड्स के विनाश के चलते बाढ़ और तूफानों के खिलाफ हमारी प्रतिरोधक क्षमता काफी घटी है. पहाड़ों पर खत्म होते जंगलों के चलते भूस्खलन और भूकंप जैसे खतरों से हमें होने वाला नुकसान बढ़ा है.
  • इन खतरों से निपटने के लिए विश्वव्यापी कदम उठाना हमारे लिए अब तक की सबसे बड़ी चुनौती होगा. उदाहरण के लिए वन्यजीवों की घटती संख्या का एक बड़ा कारण यह है कि खेती के विस्तार के लिए जंगल काटे जा रहे हैं.

A look on how fast we destroying Biodiversity

  • डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि उपभोग की जो मौजूदा दर है उसके हिसाब मनुष्यों और पशुओं की आबादी के लिए हमें धरती के क्षेत्रफल से 1.6 गुना ज्यादा जमीन चाहिए. लेकिन अगर हम खाने की बर्बादी से जुड़े आंकड़े देखें तो एक दूसरी ही तसवीर उभरती है.
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन की बीते साल आई एक रिपोर्ट बताती है कि 2014 में दुनिया में 1.3 अरब टन खाना बर्बाद हुआ. इसे दूसरी तरह से ऐसे समझा जा सकता है कि दुनिया में जितनी जमीन पर खेती होती है, उसके 30 फीसदी हिस्से में हुआ उत्पादन बर्बाद हो गया.

Reason for Loss

  • विकासशील देशों में यह बर्बादी भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण होती है. विकसित देशों में यह बर्बादी खाने के स्तर पर होती है. जब विकासशील देशों में लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हों तो यह स्थिति और भी विडंबना भरी हो जाती है.
  • इंसानी आबादी के पर्यावरण पर दबाव के क्या नतीजे हो रहे हैं यह अब सबको पता है. लेकिन इनका सामना करने के लिए हम सामाजिक रूप से एक ऐसी व्यवस्था नहीं बना सके हैं जिसमें पारिस्थिकी और अर्थव्यवस्था जैसे पहलू शामिल हों.

2020 से अमल में आने वाली पेरिस संधि के तहत पर्यावरण को लेकर किए गए वादे ऐसी पहली प्रतिक्रिया हो सकते हैं. हालांकि तब भी यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वे उस नुकसान को टाल देंगे जिसकी आशंका डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट में जताई गई है.

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