भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम को लचकीला करते संशोधन

भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम में जो संशोधन सुझाए गए हैं उन पर बहुत अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इन संशोधनों को तमाम राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल है लेकिन यह भी सच है कि इनको अपनाए जाने के बाद इस कानून का प्रभाव कमोबेश खत्म हो जाएगा।

क्या है  यह (Prevention of corruption act):

 कानून भ्रष्ट लोक सेवकों पर अभियोग की इजाजत देता है। यह क़ानून १९८८ में आया था | मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक कानून में लोकसेवकों पर अभियोग चलाने के तीन तरीके हैं। पहला

  • यह साबित करना कि उन्होंने आय से अधिक संपत्ति भारी मात्रा में एकत्रित की है।
  • रिश्वत को साबित करना।
  • इसके अलावा यह  दिखाना कि अधिकारियों ने  अपने कार्यालय की शक्ति का प्रयोग अन्य स्थानों पर अवैध लाभ हासिल करने के लिए किया है। 

 

अंतिम जो प्रावधान है वो सबसे ताकतवर है और साथ ही सबसे अधिक विवादास्पद भी। मौजूदा कानून के मुताबिक यह कहा जा सकता है कि किसी लोकसेवक का ऐसा कोई भी कदम जो किसी अन्य पक्ष को लाभ पहुंचाए वह भ्रष्टाचार है। जाहिर सी बात है यह प्रावधान नौकरशाहों को बाजार समर्थक सुधारों या नियमों पर काम करते समय रोकता है। बहरहाल, इस समस्या को बहुत आसानी से हल किया जा सकता है। बस यह सुनिश्चित करना होगा कि नया कानून पद और सत्ता के दुरुपयोग पर जोर देता है।

क्या है चिन्तां का विषय नए संशोधनों  में

  • बदलाव के मसौदे में  इस  अंतिम भाग को पूरी तरह हटाने की बात शामिल है। इससे बड़े दोषियों पर कार्रवाई करने की कोशिश को तगड़ा झटका लगेगा।
  • आधुनिक समय में भ्रष्टाचार के दौरान नकदी से भरे सूटकेस का लेनदेन नहीं होता। किसी चीज के बदले कुछ देने में अक्सर वक्त लिया जाता है। ऐसे में पद का दुरुपयोग साबित करने में वक्त लगता है। कानून का निर्माण इस बात के इर्दगिर्द किया जाना चाहिए बजाय कि उसे शिथिल बनाने के।
  • कानून के अन्य पहलू भी चिंता जगाते हैं। रिश्वत का अभियोग इस बात पर निर्भर करता है कि रिश्वत देने वाला सामने आए और लेकिन संबंधित विधेयक में ऐसे कदम उठाने पर मिलने वाले संरक्षण को भी कमजोर कर दिया गया है।
  •  इस बीच आय से अधिक संपत्ति की जांच करना और कठिन हो गया है। संशोधन के बाद नए प्रावधान में भ्रष्टअधिकारियों को यह रियायत दी जा सकती है कि वे पुरानी तिथि से आय के विभिन्न स्रोतों पर दावा पेश कर सकें। ऐसा करके वे अभियोग से बच सकते हैं। इस कमी को सन 1980 में दूर किया गया था लेकिन अब दोबारा खोला जा रहा है। 

आज जरूरत इस बात की है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून को उन्नत बनाया जाए ताकि यह आधुनिक और जटिल अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार के नए मामलों से निपटने में काम आ सके। दुर्भाग्यवश सरकार और कानून बनाने वाले इसे कमजोर बनाते दिख रहे हैं। इसका प्रस्तावित स्वरूप इसके उद्देश्य को नाकाम बनाने का काम करेगा। सरकार के ऐसा करने के इरादे पर प्रश्न उठाना तो बनता है।

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