पंचायती राज व्यवस्था स्थानीय स्वशासन का एक विशिष्ट स्वरूप है। हमारे यहां पंच-परमेश्वर की अवधारणा रही है और हमारी संस्कृति में इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। औपनिवेशिक शासन ने हालांकि इस पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम 1992 के लागू होने से ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से सामाजिक-आर्थिक विकास की जमीन तैयार हुई। 24 अप्रैल को यह ऐतिहासिक संविधान संशोधन लागू हुआ था, उसी के उपलक्ष्य में यह दिन राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि सहभागी स्थानीय स्वशासन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को मजबूती दी जा सके।
Contributions of PRI
Ø सरकार की सकारात्मक सोच और पहल के नतीजों को आज हम ऐसी पंचायतों की बढ़ती हुई संख्या के रूप में देख रहे हैं, जो जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, ई-सक्षमता, डिजिटल साक्षरता, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, अन्य नागरिक सुविधाओं, महिला सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर जन-कल्याण हेतु अपना योगदान दे रही हैं।
Ø प्रभावी काम-काज के लिए पंचायतों के बीच जागरूकता पैदा करने और उनके क्षमता-निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। शैक्षणिक संस्थानों व अन्य हितधारकों के साथ साझेदारी में पंचायत स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों को उन्मुख करने के लिए माड्यूल और तंत्र में गुणात्मक सुधार की प्रक्रिया शुरू की गई है, ताकि उन्हें अच्छे प्रशासन के प्रति सक्षम बनाया जा सके। इसे और व्यापक रूप देने और परिणाम मूलक बनाने के लिए आठ राज्यों के करीब एक हजार सरपंचों और पंचायत सचिवों के साथ हाल ही में एक अभिनव क्षमता निर्माण कार्यक्रम किया गया, जिसके आशातीत नतीजे दिखाई दिए हैं। बड़ी संख्या में जन-प्रतिनिधियों व पंचायत स्तरीय अधिकारियों तक पहुंच बढ़ाने के लिए नई तकनीक की सहायता ली जा रही है।
Government schemes &Programme to strengthen PRIs
Ø सोशल मीडिया पर सूचनाओं के तेज प्रसार के लिए तत्काल मैसेजिंग एप्स के जरिये पंचायत प्रतिनिधियों को जानकारी देने की योजना है। यह ग्रामीण इलाकों में हो रहे महत्वपूर्ण बदलावों के बारे में पंचायत प्रतिनिधियों को ही नहीं, समाज के सभी वर्गों और क्षेत्रों को भी सटीक जानकारी उपलब्ध कराने का साधन बन सकेगा।
Ø जागरूकता सृजन कार्य के विस्तार के लिए शुरू की जा रही पत्रिका की सामग्री क्यूआर कोड के जरिये किसी भी मोबाइल फोन पर देखी जा सकेगी।
Ø पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के बीच प्रतिस्पद्र्धा और नवाचारों को प्रोत्साहन देने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाली पंचायतों को पुरस्कृत और सम्मानित करने की भी कई योजनाएं बनाई गई हैं। पीआरआई की ई-सक्षमता को प्रोत्साहित करने का परिणाम यह हुआ है कि अब राज्यों के बीच इस पुरस्कार के लिए परस्पर प्रतिस्पद्र्धा देखी जा रही है। स्वाभाविक रूप से इसके परिणाम भी अनुकूल होंगे।
Ø ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (जीपीडीपी) की तैयारी और क्रियान्वयन पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
Ø ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों को व्यापक प्रशिक्षण देकर उन्हें स्थानीय विकास एजेंडे की ऐसी योजनाएं बनाने में सक्षम किया गया है।
Ø 14वें वित्त आयोग के अनुदान अब सीधे ग्राम पंचायतों को जारी किए जा रहे हैं। अब इस अनुदान के तहत संसाधन आवंटन को 13वें वित्त आयोग की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा कर दिया गया है।
पंचायतों को सशक्त बनाने की कोशिश में प्रौद्योगिकी के अधिकतम इस्तेमाल, और उनमें जागरूकता पैदा करने व ग्रामोदय के संदर्भ में प्रधानमंत्री के आह्वान का खासा असर पड़ा है। अगर विगत वर्षों में ग्रामीण स्थानीय प्रशासन में कोई सार्थक बदलाव नहीं हुआ, तो अब यह मान लेना चाहिए कि ऐसे विकास के लिए प्रयोजन की स्पष्टता के साथ ईमानदार प्रतिबद्धता की भी जरूरत पड़ती है। सकारात्मक नतीजों के साथ ग्रामीण भारत को नया भारत बनते देखना तभी संभव है।