नीतियों में स्पष्टता जरूरी तभी बनेंगे निवेश की धुरी

# Business Standard Editorial

वर्ष 2012 के बाद से भारत में भी कारोबारी चक्र में मंदी देखने को मिली है। भारत में मंदी कम निवेश और कम कारोबारी मुनाफे के मिलेजुले रूप में नजर आती है। एक अतिरिक्त विशेषता जिसने अर्थव्यवस्था पर इस बार नकारात्मक असर डाला है वह है बैलेंस शीट का संकट। मोटेतौर पर देखा जाए तो कारोबारी बैलेंस शीट वर्ष 2016 में दबाव में रही। इन फर्म की बात की जाए तो ये ब्याज चुकाने लायक परिचालन मुनाफा भी नहीं कमा पा रही थीं। 

  • बैंकिंग क्षेत्र की बैलेंस शीट का तीन चौथाई हिस्सा दबाव में रहा और 20 साल में दूसरे बड़े बैंकिंग संकट का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 2016 के आखिरी दिनों में हालात ऐसे ही उदासीन रहे। नोटबंदी ने तीन झटके दिए। मांग संबंधी झटका क्योंकि लोगों ने खरीदना कम कर दिया।
  • उसके पश्चात अनिश्चितता का झटका और नीतिगत जोखिम में इजाफा। इन बातों ने निवेश पर बुरा असर डाला और मांग के झटके को बढ़ावा दिया।
  •  अनुबंधों और कंपनियों के काम के बाधित होने का असर उत्पादकता पर भी पड़ा है। बैंकों ने नोट की गिनती में व्यस्त रहते हुए बैंकिंग का मूलभूत काम स्थगित रखा। 

 

 

इन परिदृश्यों में बदलाव के लिए कठिन नीतिगत प्रयासों की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को इस परिस्थिति से किस प्रकार निपटना चाहिए?

  • राजकोषीय नीति की बात करें तो देश में ऋण की स्थिरता के लिए जीडीपी में तेज वृद्घि की आवश्यकता है। जब जीडीपी वृद्घि नाकाम होती है तो राजकोषीय दबाव पैदा होता है। जीडीपी में धीमी वृद्घि कर राजस्व पर असर डालेगी। लाभांश वितरण कर और कॉर्पोरेट आय कर से कर राजस्व का 35 फीसदी तक हिस्सा बनता है। मंदी के दिनों में कर राजस्व खासतौर पर कमजोर होता है। नोटबंदी के चलते वर्ष 2016-17 में कारोबारी मुनाफे में कमी आने की संभावना है। वर्ष 2015-16 में सरकार ने घाटे के विस्तार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। एक बार फिर वही बहस होगी। 
  • मौद्रिक नीति की बात करें तो प्राय: मांग को लगा बड़ा झटका मुद्रास्फीति में कमी लाता है और आज भी यही देखने को मिल रहा है। अगर किसानों की कृषि  संबंधी कच्चे माल की जरूरत पर नोटबंदी का बुरा असर पड़ा तो इससे खाद्य महंगाई उत्पन्न होगी। हमें आशावादी रुख अपनाए रहना चाहिए और उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा नहीं होगा। ऐसे में मुख्य मुद्रास्फीति के चार फीसदी के तय लक्ष्य से नीचे जाने की आशंका है। 
  • ऐसी स्थिति में मौद्रिक नीति समिति को कम दरों के पक्ष में जाना चाहिए। समस्या यह है कि ऐसा आकलन सामान्य समय के लिए है। फिलहाल मौद्रिक नीति व्यवस्था बाधित है। बैंकों को नोट गिनने के काम से फुरसत निकालकर नकदी की स्थिति बहाल करनी होगी। इस बीच दरों में कटौती करना भी बहुत अधिक प्रभाव नहीं छोड़ेगा। इसके अलावा मौद्रिक नीति में बदलाव का असर लंबे समय के दौरान देखने को मिलेगा। एक से दो साल में ऐसा हो सकता है। आज 200 आधार अंकों की कमी वर्ष 2017 वर्ष के दौरान खास प्रभाव नहीं छोड़ेगी। वृहद आर्थिक नीति के मानक उपाय अब उपलब्ध नहीं। ऐसे में क्या किया जाए? सबसे अहम बात यह निजी निवेश पर ध्यान केंद्रित करना। निजी कारोबारी निवेश की मदद से ही कारोबारी निवेश चक्र में सुधार लाया जा सकता है। अतीत में हमने इसे जीडीपी के 16 फीसदी से सात फीसदी के बीच विचरण करते देखा है। 

Focus should be on Policy making

मौजूदा दौर में निजी स्तर पर लोग निवेश करने से बच रहे हैं। सीएमआईई की ओर से निजी परियोजनाओं की टै्रकिंग की जाती है। ये परियोजनाएं क्रियान्वयन के अधीन होती हैं। इसमें वर्ष 2012 में 52 लाख करोड़ रुपये से गिरकर आज 43 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान जताया गया है। अगर हम मुद्रास्फीति को समायोजित करें या जीडीपी से अंतर निकालें तो यह गिरावट और बुरी लगेगी। यानी हमें कार्यक्रमों पर नहीं नीतियों पर जोर देना होगा। कार्यक्रमों की मदद से उठाए जाने वाले सीधे सरकारी कदम मामूली बदलाव ला सकते हैं। अप्रत्यक्ष सरकारी कदम जो नीतियों की मदद से उठाए जाएं, वे निजी स्तर पर लोगों के लिए प्रोत्साहन ला सकते हैं। 

 सुधार के लिए लंबित सूची

  • न्यायिक सुधार
  • आपराधिक न्याय सुधार
  • कर नीति सुधार
  •  कर प्रशासन सुधार
  •  वित्तीय सुधार
  • श्रम सुधार
  • एनपीएस निर्माण, ईपीएफओ में एनपीएस का प्रवर्तन,
  •  कंपनी अधिनियम में नीति एवं प्रशासन
  • दिवालिया कानून सुधार
  • खनन एवं बुनियादी विकास में संस्थागत प्रबंधन
  • सड़क सुरक्षा और प्रदूषण नियमन आदि

सरकार ने जीएसटी और दिवालिया कानून सुधार की दिशा में काम शुरू किया है। इन क्षेत्रों में एक मजबूत तकनीकी टीम की आवश्यकता है जो इस काम को स्थायित्व प्रदान कर सके और मूलभूत विचारों पर टिकी रहकर क्रियान्वयन कर सके। देश के भविष्य के बारे में जो भी चिंताएं हैं उनमें निजी निवेश की कमजोरी की अहम भूमिका है। अगर निजी क्षेत्र इन मुद्दों से निपटने की नीति बनाता है और टीम बनाकर क्रियान्वयन करता है तो इससे देश में भरोसा बहाल होगा। वर्ष 2017 में हमें इसी बात को लक्ष्य बनाकर काम करना चाहिए। 

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