म्यांमार के राष्ट्रपति यू हयुतिन क्याव 27 से 30 अगस्त 2016 तक भारत के दौरे पर आए. मार्च 2016 में कार्यभार संभालने के बाद उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को पहली बार मिलने का मौका मिला है.
★यह क्याव की पहली विदेश यात्रा है और भारत-म्यांमार संबंधों की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है.
★गौरतलब है कि राष्ट्रपति क्याव प्रभावशाली नेता आंग सान सू की के वफादार साथी रहे हैं. इनकी नियुक्ति इसलिए की गई थी क्योंकि नियमानुसार सू की, संवैधानिक बाध्यता के चलते राष्ट्रपति का पद ग्रहण नहीं कर सकती थीं. संविधान अनुसार, जिन लोगों के जीवन साथी या बच्चे विदेशी नागरिक हों, उन्हें इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता.
- चूंकि सू की के बेटे ब्रिटिश नागरिक हैं, वह स्वयं राष्ट्रपति नहीं बन सकती थी. इसलिए उन्होंने अपने समर्पित साथी को इस पद की जिम्मेदारी दी.
=>वार्ता के मुख्य बिंदु
★यात्रा से दोनों देशों के बीच आपसी विषयों पर परस्पर और व्यापक वार्ता के रास्ते खुले हैं. राष्ट्रपति क्याव को सबसे महत्वपूर्ण संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला, जिन्होंने कहा ‘हर कदम पर सवा सौ करोड़ भारतीय आपके साथ खड़े होंगे. हम दोनो साथी हैं और दोस्त हैं.’
द्विपक्षीय संबंधों के साथ ही यह संदेश इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है कि म्यांमार में चीन के बढ़ते प्रभाव से म्यांमारवासी और राजनेता परेशान हैं. म्यांमार ने हाल ही सुषमा स्वराज के नेपीडो दौरे के दौरान भारत को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त किया था. राष्ट्रपति क्याव ने स्वराज को भरोसा दिलाया कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं करने देगा. हाल ही में अपने भारत दौरे में भी क्याव ने अपना यह वादा दोहराया.
★म्यांमार भारत के पूर्वोत्तर और आसियान देशों के बीच एक ऐसी कड़ी है, जिसका इस्तेमाल मध्य स्थल के तौर पर किया जा सकता है. इसलिए यह न केवल पूर्वोत्तर की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है बल्कि आर्थिक विकास में भी इसकी अहम भूमिका है. इस प्रकार म्यांमार ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का केंद्र है, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवम्बर 2014 में नेपीडो में लांच की थी.
★दोनों देशों के बीच आर्थिक और वाणिज्यिक सहयोग के अलावा कृषि, बैंकिंग, विद्युत और ऊर्जा व दालों के व्यापार पर आपसी सहयोग को सुदृढ़ करने पर सहमति बनी. दोनों देश भारतीय कम्पनियों द्वारा तेल उत्खनन और हाइड्रोकार्बन पाइपलाइन के निर्माण पर सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए.
★भारत ने एक मजबूत और जवाबदेह लोकतंत्र के लिए विभिन्न मोर्चों पर अपने अनुभव साझा करने का प्रस्ताव रखा. इसके अलावा केंद्र-राज्यों और क्षेत्रों के बीच संबंधों और साथ ही जातीय व अल्पसंख्यक मसलों पर अपने अनुभव साझा करने की बात भी कही.
- भारत ने आंगलौंग सम्मेलन के तहत म्यांमार के राष्ट्रीय एकीकरण और शांति प्रक्रिया के प्रति समर्थन जताया है. यह भी तय किया गया कि विकासात्मक सहयोग के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे. इसके तहत म्यांमार में क्षमता निर्धारण के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य व आधारभूत ढांचा मजबूत करने, सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने और अकादमिक सहयोग पर जोर रहेगा.
=>सू की का चीन दौरा :-
- राष्ट्रपति क्याव के दौरे पर आए सकारात्मक नतीजों पर संतोष जताने के साथ ही यह नहीं भूलना चाहिए कि राजकीय काउन्सलर, वित्त मंत्री और म्यांमार की वास्तविक नेता ने पद ग्रहण करने के बाद पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना.
-जब सू की नजरबंद थीं तो उस वक्त वे सैन्य शासन को चीन से मिल रहे समर्थन के सख्त खिलाफ थीं. पद ग्रहण करने के बाद सू की ने राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने की जरूरत महसूस की ताकि घरेलू मोर्चे पर अपने ऐजेंडे में सफल हो सकें.
- दोनों देशों के संबंध उस वक्त से खराब होने लग गए थे, जब चीन द्वारा 3.6 अरब अमेरिकी डॉलर के फंड से बनाए जा रहे माइटीस्टोन बांध का निर्माण रद्द कर दिया गया था. यह मुद्दा दोनों देशो के बीच संबंध सुधार में बड़ी बाधा बना हुआ है. सू की ने माइटीस्टोन व अन्य हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक आयोग की नियुक्ति की. बीजिंग में भी उन्होंने यह मामला उठाया.
=>भारत-म्यांमार संबंध
★ सू की के सत्ता संभालने के बाद भारत ने उन तक पहुंचने में काफी देर कर दी. स्वराज नेपीडो पहुंचने वाली पहली भारतीय नेता रहीं, जो सू की के शपथ ग्रहण के साढ़े चार महीने बाद 22 अगस्त को एक दिवसीय यात्रा पर वहां गई थीं. इस देरी की बात को अगर छोड़ भी दिया जाए तो भारत इतना सक्षम है कि वह इस बीते समय की खानापूर्ति आसानी से कर सकता है. दोनों देश धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक और पारम्परिक विरासत साझा करते हैं.
★सू की अक्टूबर में ब्रिक्स-बिम्सटेक सम्मेलन में भाग लेने भारत आएंगी. इस दौरान वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दुनिया के अन्य नेताओं से भी मिलेंगी.
=>म्यांमार को क्या मिला?
★भारत के साथ संबंध मजबूत होने से म्यांमार को चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक संतुलन बनाने में मदद मिलेगी. साथ ही भारतीय निवेश, विशेषज्ञता एवं क्षमता से इसे आर्थिक विकास में भी मदद मिलेगी. म्यांमार में सत्ता परिवर्तन से भारत को रणनीतिक गुंजाइश मिली है.