Why decision of paper audit trial
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के खिलाफ अतिवादी और अतार्किक शिकायतों का अंबार लग गया है. शायद यही वजह थी कि चुनाव आयोग के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा कि वह पेपर ऑडिट ट्रेल के जरिये इन मशीनों के ठीक से काम करने की पुष्टि का इंतजाम करे| चुनाव आयोग के लिए उत्तर प्रदेश और पंजाब में हार का सामना करने वाली बसपा और आप की शिकायतों को खारिज करना मुमकिन था. लेकिन साफ है कि इस सूची में जुड़ती बाकी पार्टियों के शोर के चलते उसके लिए ऐसा करना मुश्किल होता गया. इनमें से कुछ पार्टियां तो बैलट पेपर वाली पुरानी व्यवस्था की ही मांग कर रही हैं.
- कानून मंत्रालय से 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) के लिए फंड जारी करने के आयोग अनुरोध को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. तब करीब 16 लाख वीवीपीएटी मशीनों की जरूरत होगी और 2019 के चुनाव के लिए समय रहते यह काम हो जाए इसके लिए फौरन फंड जारी करना होगा.
Previous steps to make secure EVMs
चुनाव आयोग ने वोटरों को बार-बार आश्वस्त किया है कि इस तरह के पर्याप्त प्रक्रियागत और तकनीकी उपाय हैं जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि ईवीएम्स में धांधली न हो|
- 2006 के बाद से चुनावों में अपग्रेडेड ईवीएम का इस्तेमाल हो रहा है. इनमें बैलेट यूनिट के अहम कोडों की डायनेमिक कोडिंग और कंट्रोल यूनिट में उनके ट्रांसफर को एनक्रिप्टेड मैसेज यानी कूट संदेश में भेजे जाने जैसे कई सुरक्षा फीचर हैं|
- ईवीएम कंप्यूटर से जुड़ी इकाई नहीं होती यानी उसे किसी रिमोट डिवाइस से हैक नहीं किया जा सकता|
- 2013 के बाद आई मशीनों में तो टैंपर डिटेक्शन यानी छेड़छाड़ का पता लगाने वाले जैसे अतिरिक्त सुरक्षा फीचर भी मौजूद हैं.
- इसके अलावा चुनाव आयोग ने चुनाव से पहले और इसके बाद ईवीएम्स को लॉक करने और उन्हें रखने के बारे में भी स्पष्ट नियम बना रखे हैं
- समय-समय पर उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने जांचा भी जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में वीवीपीएटी मशीन को जोड़ने का मकसद यह है कि पेपर ऑडिट के जरिये भी नतीजों की पुष्टि हो सके. यानी यह देश में निर्मित (ईवीएम का सिर्फ माइक्रोचिप ही देश से बाहर बनता है) इन मशीनों में जवाबदेही की एक और परत के जुड़ने जैसा है.
Conclusion:
ईवीएम के आने के बाद से चुनावी धोखाधड़ी में भारी कमी आई है और वोटरों की भागीदारी बढ़ी है. बैलट पेपर वाली व्यवस्था की तरफ जाना पीछे लौटने जैसा होगा इसलिए राजनीतिक पार्टियों के विरोध को देखते हुए एकमात्र विकल्प यह है कि पेपर ट्रेल के तौर पर एक बैक-अप रखा जाए. उम्मीद है इससे यह विवाद शांत हो जाएगा.
ईवीएम की पृष्ठभूमि
मतपत्रों के उपयोग से जुड़ी कुछ विशेष समस्याओं से निजात पाने और प्रौद्योगिकी के विकास से लाभ उठाने के उद्देश्य से आयोग ने दिसंबर, 1977 में ईवीएम का विचार सामने रखा था, ताकि मतदाता बगैर किसी संशय के सही ढंग से अपने वोट डाल सकें और अवैध वोटों की संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म किया जा सके। संसद द्वारा दिसंबर 1988 में इस कानून को संशोधित किया गया था और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में एक नई धारा 61ए को जोड़ा गया था जिसके तहत वोटिंग मशीनों के उपयोग के लिए आयोग को अधिकार दिया गया था। संशोधित प्रावधान 15 मार्च, 1989 से प्रभावी हुआ।
केन्द्र सरकार ने जनवरी 1990 में चुनाव सुधार समिति का गठन किया था जिसमें अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। चुनाव सुधार समिति ने बाद में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का आकलन करने के उद्देश्य से एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एक सुरक्षित प्रणाली है। अत: विशेषज्ञ समिति ने और समय बर्बाद किये बगैर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किये जाने के बारे में अप्रैल 1990 में सर्वसम्मति से सिफारिश की।
- वर्ष 2000 के बाद ईवीएम का उपयोग राज्य विधानसभाओं के लिए हुए 107 चुनावों और वर्ष 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा के लिए हुए 3 चुनावों में किया जा चुका है
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