साइबर सुरक्षा और निजता के अधिकार का मसला देश में एक गंभीर मुद्दा बनकर उभरा है। अब तो सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंच गया है। जाहिर है, इसकी पृष्ठभूमि में आधार कार्ड के डाटा लीक होने की खबर से लेकर तमाम तरह के एप्स से पैदा होने वाले खतरों की चिंताएं शामिल हैं।
- सबसे ताजा विवाद तो सऊदी अरब के जैनुल आबेदीन द्वारा विकसित एप ‘सराहाह’ को लेकर खड़ा हुआ है। बताया जा रहा है कि इसके जरिये एप यूजर्स किसी को भी मैसेज भेज सकते हैं, मगर मैसेज रिसीव करने वाला नहीं जान पाएगा कि संदेश किसने भेजा है? इस एप के जरिये अगर किसी को कोई धमकी दे, तो फिर क्या होगा?
- यूजर्स की पहचान उजागर न होने की सूरत में आतंक फैलाने के लिए इसका दुरुपयोग हो सकता है
Origin of Privacy debate
- अगर हम निजता के अधिकार को देखें, तो इस अधिकार का विकास पश्चिमी देशों से आरंभ हुआ। अमेरिका और यूरोप में इस अधिकार का बहुत ज्यादा विकास हुआ, लेकिन हमने देखा कि 9/11 को वर्ल्ड टे्रड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद निजता के इस अधिकार को कम किया जाने लगा।
- इससे जुड़े नए-नए कानून आए, जिनमें सरकारों को यह हक मिला कि वे लोगों की निगरानी कर सकती हैं। उनकी चौकसी कर सकती हैं। पर यह उन राष्ट्रों के परिवेश व परिस्थितियों के आलोक में बने कानून थे।
India & Right to privacy concept in Society
- भारत की स्थिति अन्य देशों की तुलना में विशिष्ट और अनूठी है। हम एक संयुक्त परिवार की जड़ से पैदा हुए समाज हैं। इसलिए भारत के लोगों को शेयर करना एक स्वाभाविक वैकल्पिक व्यवहार लगता है।
- हम लोग निजता के बारे में ज्यादा नहीं बात कर पाए और इस अधिकार का ज्यादा विकास हमारे देश में नहीं हुआ।
- पिछले करीब एक-डेढ़़ दशक से भारत के लोगों में एक नई जागरूकता आई है और उनमें एक नया विश्वास जगा है कि उनका जो ‘पर्सनल स्पेस’ है, उसका संरक्षण होना चाहिए।
- चाहे शिक्षित भारतीय हों या अशिक्षित, वे चाहते हैं कि जो उनके निजी दायरे में आने वाली चीजें हैं, उनमें कोई ताक-झांक न सरकार की तरफ से हो और न ही किसी अन्य एजेंसी द्वारा।
- यह अपेक्षा न सिर्फ मोबाइल को लेकर की जा रही है, बल्कि इंटरनेट पर अपनी गतिविधियों को लेकर भी।
Need to have data Security
- भारत में निजता के अधिकार के संदर्भ में पहले तो हमें यह मानना पड़ेगा कि यहां पर इस अधिकार को लेकर कोई स्पष्ट कानून नहीं है। न ही भारत में कोई डाटा संरक्षण कानून है, जो डाटा की गोपनीयता की हिफाजत कर सके। अलबत्ता, उच्चतम न्यायालय ने अपने विभिन्न फैसलों में जीवन जीने के हमारे मौलिक अधिकार की व्याख्या करते हुए उसके दायरे को बढ़ाया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद- 21 में जीवन जीने का जो मौलिक अधिकार मिला है, वह इतना व्यापक है कि उसके अंतर्गत निजता का अधिकार भी आ जाता है। ऐसे में, अगर सरकार इसका किसी तरह से हनन करती है, तो आप अदालत की शरण ले सकते हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने तो यह तक कहा है कि जीने के अधिकार के तहत ही सम्मान के साथ मानवीय जीवन जीने का अधिकार आता है।
अब आधार के संदर्भ में यह विवाद फिर से उच्चतम न्यायालय में आया है। निजता हमारे मूलभूत अधिकारों और जीवन जीने के मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है और सरकार बिना किसी कानूनी प्रकरण के हमें इससे वंचित नहीं कर सकती।
आज हमें यह भी देखना होगा कि आधार के मामले में लोगों के निजता के अधिकार का लगातार हनन हो रहा है। आधार की शुरुआत एक स्वैच्छिक प्रयोग के तौर पर हुई थी। मार्च 2016 में जब हमने आधार कानून को पारित किया था, तब भी यह स्वैच्छिक था, लेकिन कुछ महीनों के बाद सरकार ने इसे अनिवार्य बनाना शुरू कर दिया। अब यह लगभग हर चीज से जुड़ता जा रहा है। ऐसे में, आपकी हर गतिविधि सरकार मॉनिटर कर सकती है।
Cyber space & Privacy
आज के हालात में निजता के अधिकार का अभिन्न संबंध साइबर सुरक्षा से है। हम सुरक्षा पर कितना ज्यादा ध्यान देते हैं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपनी कितनी निजता संरक्षित रख पाते हैं।
दुर्योग से ज्यादातर भारतीय मानते हैं कि उनके डिवाइस, नेटवर्क और डाटा की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार और सर्विस प्रोवाइडर यानी सेवा देने वाली कंपनी की है। अगर उपभोक्ता डिवाइस की साइट पर सुरक्षा नहीं ढूंढ़ता और अंधाधुंध मोबाइल एप्लिकेशन डाउनलोड करता जाता है, बिना उनकी सेवा-शर्तों को पढ़े हुए, तो कहीं न कहीं उनकी निजता का हनन होगा ही, क्योंकि ये तमाम मोबाइल एप्लिकेशन अपनी शर्तों में कहते हैं कि हम आपके डाटा की कॉपी करेंगे, उनकी निगरानी व इस्तेमाल करेंगे।
Need to take preventive steps
जब हम ये सारे अधिकार खुद उन्हें दे देते हैं, तो फिर बाद में शोर मचाने का बहुत औचित्य नहीं रह जाता।
इसलिए लोगों में जागरूकता लाने की जरूरत है। आज हम अपनी निजता को संरक्षित रखने के जितने कदम उठा सकेंगे, उतनी ही वह सुरक्षित होगी। निस्संदेह, सरकारों का भी दायित्व है कि वे अपने नागरिकों की निजता के अधिकार का संरक्षण करें। लेकिन आज सरकारें इस तरफ जाना नहीं चाहतीं, क्योंकि साइबर अपराध और आतंकवाद के लिए इंटरनेट का इतना ज्यादा दुरुपयोग हो रहा है कि सरकारें ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं इकट्ठा करना चाहती हैं, ताकि कानून-व्यवस्था बरकरार रहे और उनके राष्ट्र की संप्रभुता पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। लेकिन इस मामले में एक नियंत्रण-रेखा तो होनी ही चाहिए। कानून मानने वाले नागरिक की निजता का संरक्षण होना चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट लोगों के अधिकार और सरकार की जरूरतों के बीच कैसे समन्वय बिठाता है, यह तो उसके फैसले से ही साफ होगा
(Use: UPSC Gs Paper III Internal Security, paper II Polity)