चीन का भारत विरोध और सौदेबाजी

# Editorial Jansatta

NSG and South Asia and Pacific Politics:

वर्षों से भारत कोशिश कर रहा है कि वह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी)में दाखिल हो जाए। अड़तालीस देशों के इस समूह में दाखिल होने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लॉबिंग कर रहा है और कई देशों का समर्थन जुटा चुका है। लेकिन अब तक दो बार चीन के विरोध के कारण भारत को सदस्यता मिलने से रह गई। यह मुद्दा ऐसा है, जो न सिर्फ भारत और चीन के संबंधों की पेच बन रहा है, बल्कि दक्षिण एशिया और प्रशांत क्षेत्र की राजनीति को भी प्रभावित कर रहा है। अमेरिका, जापान, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, विएतनाम जैसे देशों के साथ भारत की कूटनीतिक प्रगाढ़ता से चीन को परेशानी हो रही है। दक्षिण चीन सागर का मुद्दा चीन के लिए अहम है और इसी मुद््दे पर चीन का विरोध कर रहे देशों का भारत को साथ मिल रहा है।

A change seen at world over with respect to India

  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर समीकरण बदल रहे हैं। परमाणु ताकत बनने में भारत की कवायद रोकने में जो देश अग्रणी भूमिका निभा रहे थे, वे अब साथ खड़े हैं।
  • Why NSG formed: मई 1974 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया और उसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप परमाणु आपूतिकर्ता समूह का गठन किया गया। उद्देश्य था भारत को इसकी तकनीक हासिल करने से रोकना। परमाणु क्षमता संपन्न पांच देश- अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, चीन और रूस- इस समूह के अग्रणी देश हैं। बाकी तैंतालीस वे हैं, जो परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत कर चुके हैं।
  • Change can be reflected in 2008 :Signing of Nuclear deal भारत ने इस पर दस्तखत नहीं किए हैं, लेकिन अमेरिका के साथ 2008 के बहुचर्चित परमाणु समझौते से सदस्यता की राह तैयार हुई।

Promise of India to world community:

  • भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वादा कर रखा है कि वह अपने असैन्य और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों में घालमेल नहीं करेगा।
  • अपने यहां विकसित तकनीक किसी अन्य देश को नहीं सौंपेगा।
  • इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजंसी (आईएईए) के प्रोटोकॉल का भारत पालन कर रहा है।
  • जिन रिएक्टरों का इस्तेमाल नागरिकोंउद्देश्यों के लिए किया जा रहा है, उनमें पारदर्शिता की गारंटी दी गई है।
  • अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां इन रिएक्टरों का निरीक्षण कर सकती हैं।

Benefit of NSG membership:

एनएसजी में शामिल देश परमाणु आयुध निर्माण में इस्तेमाल होने वाली धातु, उपकरण और तकनीक को नियंत्रित करते हैं। इस समूह में शामिल होने पर भारत को कुछ लाभ होंगे।

  •  जीवनरक्षक दवाओं समेत परमाणु बिजलीघर बनाने तक में इस्तेमाल होने वाली अत्याधुनिक तकनीक तक भारत की पहुंच बन जाएगी।
  • ऊर्जा के फॉसिल स्रोतों का इस्तेमाल घटा कर चालीस फीसद तक लाने की योजना तभी पूरी होगी, जब परमाणु बिजली का उत्पादन बढ़े। 2008 में अमेरिका के साथ करार के बाद भारत को एनएसजी में छूट मिल गई। इस कारण दुनिया में कहीं से रिएक्टर खरीदने की छूट है। तकनीक लेने के लिए भारत को एनएसजी का सदस्य बनना पड़ेगा।
  • परिष्कृत उत्पादन :एनएसजी की सदस्यता मिलने पर परमाणु बिजलीघर उपकरणों का उत्पादन भारत बढ़ा सकता है। इससे भारत में ही उन्नत और परिष्कृत उत्पादन संभव होगा। उदाहरण के लिए, हाल में भारत ने श्रीलंका के साथ नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग समझौता किया है। इसके तहत परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल- मसलन, रेडियो आइसोटोप्स, परमाणु सुरक्षा एवं संरक्षा, विकिरण सुरक्षा, रेडियोधर्मी कचरा प्रबंधन, और परमाणु एवं रेडियोधर्मी आपदा प्रबंधन में भारत प्रशिक्षित करेगा। भारत अपना फास्ट ब्रीडर रिएक्टर विकसित कर रहा है, जिसे वह श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे देशों को बेचेगा। जब तक भारत से सस्ता रिएक्टर नहीं मिलता, काम चलाने के लिए बांग्लादेश रूस से रिएक्टर खरीदना चाहता है और इसके लिए बातचीत चल रही है
  • खुद के रिएक्टर तैयार करने का मतलब है कि भारत भी परमाणु रिएक्टर और इसकी तकनीक के बाजार का खिलाड़ी हो जाएगा। भारत भी परमाणु रिएक्टर और इसकी तकनीक के बाजार का खिलाड़ी हो जाएगा।
  • NSG का सदस्य होने पर वह पाकिस्तान की राह रोक सकता है। पाकिस्तान भी एनएसजी की सदस्यता पाने की कोशिश में है।

Dilemma in front of India to sign NTP or not:

  • NPT पर दस्तखत करना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन तब अपने परमाणु आयुधों की घोषणा करनी होगी। भारत के सामने अपने अस्थिर और कभी भी कुछ भी कर बैठने वाले पड़ोसी मुल्क की चुनौती है, जिस कारण एनपीटी आत्मघाती हो सकता है।
  • इसके बाद व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर दस्तखत करना होगा। तब परमाणु परीक्षणों पर पूरी तरह प्रतिबंध लग जाएगा।

Why china morally wrong in opposing India’s membership

परमाणु अप्रसार संधि) का तर्क देकर चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है और भारत का विरोध। जबकि परमाणु अप्रसार और अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करने के मामले में भारत का रिकॉर्ड साफ-सुथरा है और पाकिस्तान-चीन की गतिविधियों पर सवाल उठते रहे हैं। दरअसल, मौजूदा दौर में विश्व राजनय और युद्धक्षेत्र, दोनों ही में बदलाव आया है। आमने-सामने की लड़ाई की जगह मनोवैज्ञानिक युद्ध और प्रक्षेपास्त्रों के प्रयोग पर ज्यादा जोर है।

  • चीन मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) की सदस्यता की पुरजोर कोशिश में है, जबकि भारत को इसकी सदस्यता मिल चुकी है।
  •  परमाणु अप्रसार को लेकर चीन का रिकॉर्ड साफ-सुथरा न होने के चलते उसकी 2004 की सदस्यता की अर्जी खारिज की जा चुकी है।
  • उत्तर कोरिया को बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक बेचने को लेकर चीन की कवायद और परमाणु तकनीक उपलब्ध कराने के मामले में पाकिस्तान की कवायद को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय उंगलियां उठा चुका है।
  • एमटीसीआर सदस्यों की चिंता है कि चीन-पाकिस्तान की गतिविधियों के चलते उत्तर कोरिया द्वारा प्रक्षेपणास्त्रों के जरिए रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों का खतरा बढ़ गया है।
  • एनएसजी में चीन को 2004 में सदस्यता मिली। तब रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स- दोनों ही ने विरोध किया था, लेकिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने चीन का समर्थन किया था। चीन तब एनपीटी पर दस्तखत कर चुका था। हालांकि इसके कुछ ही महीनों बाद अमेरिका ने चीन की आठ कंपनियों पर मिसाइल तकनीक बेचने के आरोप में प्रतिबंध लगा दिया। तब से चीन की एमटीसीआर सदस्यता पर रोक है और अब एनएसजी में भारत का विरोध कर चीन मोलभाव कर रहा है। दक्षिण चीन सागर विवाद का भी वह इसके लिए इस्तेमाल कर रहा है।


What could be reason for china’s opposition for India:

  • चीन और पाकिस्तान, दोनों को लगता है कि एनएसजी की सदस्यता पाने के बाद भारत उन मुद्दों को उठाएगा, जिनसे लीबिया, उत्तर कोरिया, ईरान आदि देशों को परमाणु तकनीक पहुंचाने में दोनों की संलिप्तता के सबूत हैं।
  •  एशिया में परमाणु ऊर्जा ताकत बनने की होड़ भी है। चीन को यह भी लगता है कि एनएसजी के देश दक्षिण-चीन सागर विवाद में उसके विरोध में हैं। हेग के स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में फिलीपींस ने चीन के खिलाफ मुकदमा दायर कर रखा है। संयुक्त राष्ट्र चीन से नाराजगी जता चुका है और कह चुका है कि वह समुद्री जलसीमा को लेकर संयुक्त राष्ट्र संधि का पालन नहीं कर रहा है। दूसरी ओर अमेरिका, रूस, जापान के साथ ही भारत ने फिलीपींस और विएतनाम जैसे देशों के साथ सैन्य सहयोग की संधियां की हैं। हाल में विएतनाम को आकाशमिसाइल बेचने को लेकर भारत के साथ हुए सौदे पर चीन ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। भारत की इस तरह की कवायद को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को जवाब देने के नजरिए से देखा जा रहा है।
  • अर्थव्यवस्था के लिहाज से भारत में विनिर्माण क्षेत्र में बढ़ोतरी का प्रतिकूल असर चीन के निर्यात पर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में चीन अभी भारत को अपने प्रमुख कारोबारी-भागीदार का दर्जा याद दिला रहा है।

 हाल में चीन ने एशिया-प्रशांत सुरक्षा पर एक नीति-दस्तावेज जारी कर भारत के साथ अपने संबंधों की अच्छी तस्वीर पेश करते हुए कहा है कि दोनों देशों के बीच भागीदारी गहरी हुई है। लेकिन एनएसजी और आतंकवाद जैसे मुद्दो पर चुप्पी से भारतीय कूटनीतिकों को चीन के इरादे नेक नहीं लगते।

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