प्राइवेसी नागरिकों का मौलिक अधिकार?

#Dainik_Bhaskar

संसद और सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अनुच्छेद 21 के हिस्से के रूप में निजता यानी प्राइवेसी के अधिकार को हटाने के लिए संविधान संशोधन का सुझाव दिया। इस अनुच्छेद के तहत देश के सभी नागरिकों को जीवन का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में दिया गया है।

  • अब संसद प्राइवेसी के अधिकार को ‘पात्रता’ आधारित मौलिक अधिकार बनाना चाहती है।
  • इसका मतलब है कि इसे प्रकरण-दर-प्रकरण के आधार पर मूलभूत अधिकार की तरह लिया जाएगा।
  • निजता का अधिकार उन अधिकारों में से एक है, जिसका हवाला अनुच्छेद 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध मानने के खिलाफ दायर याचिका में दिया गया था। इस याचिका में दलील दी गई थी कि आपस में सहमत दो वयस्कों के बीच उनकी निजता के दौरान जो भी होता है, उससे शासन व्यवस्था को कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए। इस प्रकार निजता का अधिकार होना अथवा प्रकरण के मुताबिक उसका दर्जा तय किए जाने से उक्त वर्ग के लोगों के लिए खतरे की बात है।
  • मूलभूत अधिकारों में से निजता के अधिकार को हटाना महिला के लिए खतरनाक है, क्योंकि यह महिलाओं की सुरक्षा में बड़ा जोखिम पैदा कर देगा।
  • नारीवादी टिप्पणीकारों के मुताबिक निजता के अधिकार को मूल अधिकार मानने से दिल्ली में निर्भया दुष्कर्म मामले के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए गए प्रावधान उपाय बेअसर हो जाएंगे।
  • मसलन, स्टाकिंग यानी पीछा किए जाने या रिवेंज पॉर्न सहित कोई भी आक्रामक व्यवहार, जो महिला की निजता सुरक्षा के लिए नुकसानदायक है, उसे प्रकरण-दर-प्रकरण देखा जाएगा।
  •  इस तरह गरिमापूर्ण जीवन जीने के महिलाओं के अधिकार की व्याख्या अदालतें करेंगी।
  • इससे महिला के लिए बड़ी विचित्र स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
  • सबसे बड़ी बात यह है कि निजता के अधिकार को मूल अधिकार से हटाना सभी नागरिकों के लिए खतरे की बात है, क्योंकि सुनिश्चित संवैधानिक संरक्षण के अभाव में व्यक्ति को कई तरह के व्यवहार का निशाना बनने का जोखिम होगा और वह गरिमापूर्ण जीवन जीने से वंचित होगा

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