निजता की सुरक्षा का सवाल

Dainik_Jagaran

हाल में जियो के आगमन ने यह संभावना जगा दी है कि इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन अब आम आदमी की आसान पहुंच में होगा। अगले कुछ वर्षो में हमारी इंटरनेट पहुंच और गहराने के आसार दिख रहे हैं जो वर्तमान में केवल 28 फीसद ही है।

वित्तीय समावेश के क्षेत्र में भी कुछ इसी तरह की पहुंच पिछले कुछ वर्षो में देखने को मिली है। विशिष्ट पहचान संख्या अर्थात आधार के आने से तो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेश में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है। आधार नेअपने ग्राहक को जानेके तौर-तरीकों में अभूतपूर्व बदलाव किया है।

हर दस्तावेज की तीन-तीन प्रतियों के बजाय -केवाइसी के इस्तेमाल ने बैंकिंग क्षेत्र में तमाम बदलाव कर दिए हैं। -केवाइसी ने केवल कई बाधाओं को कम किया है, बल्कि उसके कारण कई ऐसे लोगों को भी कर्ज सुविधा सुलभ हो पाई है जो पहले उससे वंचित थे। यह भी साफ है कि पिछले कुछ वर्षो में ऑनलाइन भागीदारी और डिजिटल लेनदेन में भी खासी बढ़ोतरी हुई है, खासकर नोटबंदी के फैसले के बाद। भारत नेट, डिजी-लॉकर और डिजिटल इंडिया प्लेटफार्म की पहल ने सरकार की मौजूदा नीतियों के निष्पादन को पारदर्शी बनाया है।

  • एक तरफ तो अपात्र लाभार्थियों की पहचान करके उन्हें हटाया जा है वहीं दूसरी तरफ जन कल्याणकारी योजनाओं में हो रहे भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाई जा रही है।
  •  इस सबके बीच समाज के कुछ तबके अभी तक आधार को पूरी तरह स्वीकार नहीं कर पाए हैं। उनमें से कुछ की ओर से यह चिंता जताई गई है कि आधार द्वारा एकत्रित की गई जानकारी कहीं किसी अवांछनीय व्यक्ति अथवा संगठन के में पड़ने का खतरा तो नहीं है? ऐसे लोग हैकिंग का भी खतरा जता रहे हैं, क्योंकि डाटा चोरी की खबरें रही हैं। डाटा के इस्तेमाल के मामले में एक-दूसरे के विपरीत विचार हैं।

Debate on Aadhar

  • कई लोगों का यह मानना है कि आधार को सरकार द्वारा जबरन थोपा जा है ताकि वह उन पर नजर रख सके।
  • ऐसे लोगों का यह भी तर्क रहता है कि आधार होने से आम लोगों को कोई फायदा नहीं है।
  • इसके विपरीत अन्य लोग आधार की वजह से हो रहे क्रांतिकारी बदलाव के गुण गाते दिख जाएंगे।
  • इस सबके बीच इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि आधार की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार में कमी आई है और रसोई गैस यानी एलपीजी सब्सिडी के सीधे बैंक खाते में जाने से भी अच्छी-खासी बचत हुई है। इससे यही साबित होता है कि आधार में कुछ भी गलत नहीं है।

Apprehension on Data theft

  • जब दुनिया भर से डाटा चोरी की खबरें आने लगी हैं तब हमें यह देखना चाहिए कि हमारे वर्तमान कानून मौजूदा स्थिति में हमारी निजी जानकारियों की किस प्रकार रक्षा करने में सक्षम हैं?
  •  भारतीय परिवेश इस क्षेत्र में जटिल विधान से ग्रस्त है। वह केवल पुराना, बल्कि अस्पष्ट भी है। इस संदर्भ में तीन अलग-अलग कानून हैं। ये हैं-
  • इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट 1898
  • इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 एवं
  •  इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2007
  • आज वाट्सएप्प संदेश पहले दो कानूनों के तहत सिल किए जा सकते हैं। ये कानून तब बनाए गए थे जब इस तरह का कोई प्लेटफार्म बनाने के बारे में सोचा भी नहीं गया था।
  • आज डाटा सुरक्षा चिंता का विषय है। चूंकि आधार की जानकारी निजी कंपनियों द्वारा एकत्र की जाती है इसलिए उसके चोरी होने या उसका दुरुपयोग होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में निजी कंपनियां अपनी जिम्मेदारी से आसानी से पल्ला झाड़ सकती है, लेकिन चिंता महज आधार की जानकारी सार्वजनिक होने या उसके गलत थों में पड़ने तक ही सीमित नहीं है।

Data colonization by MNC’s

  • हमारी ऑनलाइन गतिविधियां जैसे गूगल पर की गई कोई खोज या फेसबुक पर की गई कोई पोस्ट कई कंपनियों की निगाह में रहती है ताकि वे हमें हमारी पसंद की सेवाएं उपलब्ध करा सकें अथवा यह बता सकें कि हमें क्या खरीदना चाहिए?
  • वे हमारी पसंद की चीजों, लेखों आदि पर हमारा ध्यान आकर्षित करने का भी काम करती हैं। इसके लिए हमारा डाटा कंपनियों द्वारा साझा किया जाता है।
  •  यदि इस पर रोक लगाई जाए तो हम आधुनिक अर्थव्यवस्था से ही वंचित हो जाएंगे।

What is the need:

दरअसल आज जरूरत इस बात की है कि डाटा की सुरक्षा के लिए कुछ बुनियादी सुरक्षा उपाय किए जाएं ताकि निजी कंपनियां बिना सहमति डाटा साझा कर सकें और उसके चोरी होने पर वे डाटा धारक को सूचित करने को बाध्य हों। आधार की जानकारी निजी एवं संवेदनशील होने के कारण उसका उचित रखरखाव आवश्यक है।

Not data opposition but data protection is the need

  • डिजिटल क्षेत्र में हो रही प्रगति को देखते हुए डाटा की बढ़ती आवश्यकता का विरोध करना भी बेवकूफी होगी।
  • डिजिटाइजेशन के जरिये बेहतर शासन कोई खतरनाक साजिश नहीं है। यह तो हमारी मौजूदा विकास की राह का एक पड़ाव मात्र है, लेकिन इसके साथ ही डिजिटल होते नागरिक के निजता के अधिकारों की रक्षा और डाटा की सुरक्षा समय की मांग है।
  •  एक डाटा संरक्षण अथॉरिटी के गठन की सिफारिश: जिसमें न्यायिक और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल होंगे। यह अथॉरिटी ही इस विधेयक के सभी प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करेगी। लांकि यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है और ऐतिसिक रूप से देखें तो ऐसे विधेयक विरले ही पारित होते हैं। इसके बावजूद हमारे देश में जिस तरह की जनभागीदारी वाली लोकतांत्रिक प्रणाली है और आज जिस तरह इस मुद्दे पर पूरे देश में जन विमर्श छिड़ा हुआ है उसे देखते हुए मुङो उम्मीद है कि सरकार हमारी चिंताओं को समङोगी और हमारे डाटा और निजता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी

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