निजता को मौलिक अधिकार मानने तथा विशिष्ट पहचान पत्र (Aadhar) से इस अधिकार का हनन होने का दावा करने वाली याचिका पर भले सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आना अभी बाकी हो, केंद्र सरकार ‘आधार’ की धार और तेज करती जा रही है। अंतिम फैसला जब भी आए, न्यायालय कई अंतरिम फैसले दे चुका है। पिछले चार महीनों में सर्वोच्च अदालत के दो फैसले आए, और दोनों से सरकार को झटका लगा।
Ø मार्च में अदालत ने कहा था कि सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य नहीं बना सकती। यह अलग बात है कि एक के बाद एक कल्याणकारी कार्यक्रमों में भी आधार अनिवार्य जैसा ही हो गया है।
Ø पिछले दिनों अदालत का एक और अंतरिम फैसला आया, जिसके तहत उसने पैन कार्ड के आबंटन और आय कर रिटर्न दाखिल करने के लिए आधार नंबर अनिवार्य करने संबंधी आय कर कानून के प्रावधानों के अमल पर रोक लगा दी।
Ø अलबत्ता अदालत ने यह भी कहा था कि उसके फैसले से आय कर कानून में हुए संशोधन की संवैधानिक वैधता पर कोई आंच नहीं आती; संशोधन के तौर पर जोड़ी गई आय कर कानून की धारा 139 एए वैध है, इस पर फिलहाल आंशिक रोक ही रहेगी। लेकिन इन अंतरिम फैसलों से सरकार के उत्साह पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। वह एक के बाद एक आधार का दायरा बढ़ाती जा रही है।
Recent decision by Government
पिछले हफ्ते एक आदेश जारी कर सरकार ने बैंक खाता खोलने और पचास हजार रुपए या उससे ज्यादा के लेन-देन के लिए आधार नंबर अनिवार्य कर दिया। साथ ही, सभी वर्तमान बैंक खाताधारकों को इस साल के अंत तक आधार नंबर जमा कराने को कहा गया है। इस निर्धारित अवधि में जो अपना आधार नंबर बैंक को नहीं देंगे, उनके खातों के संचालन पर रोक लगा दी जाएगी। लब्बोलुआब यह कि जिस-जिस वित्तीय काम में पहले केवल पैन नंबर देना पर्याप्त था, वहां-वहां अब आधार नंबर भी जरूरी बना दिया गया है। इसके पीछे सरकार का अपना तर्क है, वह यह कि पैन कार्ड नकली भी बन जाते हैं, कर-चोरी या अनियमितता के इरादे से एक व्यक्ति के पास कई-कई पैन कार्ड होने के ढेर मामले पकड़े जा चुके हैं। पैन कार्ड बनवाने में बहुत सारी गड़बड़ियां उजागर हुई हैं। करीब दस लाख पैन कार्ड रद््द हो चुके हैं। जबकि आधार कार्ड में संबंधित व्यक्ति का बायोमीट्रिक ब्योरा आ जाने के कारण उसके लिए दूसरा आधार कार्ड बनवाना संभव नहीं होता।
Debate to be resolved:
पारदर्शिता के तकाजे से आधार नंबर की मांग के औचित्य से इनकार नहीं किया जा सकता। पर जब आधार की संवैधानिकता को ही सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई हो और इस पर संविधान पीठ का फैसला आना बाकी हो, तो थोड़े-थोड़े अंतराल पर आधार की अनिवार्यता का दायरा बढ़ाते जाने के फरमान सरकार की उतावली को ही दर्शाते हैं। विडंबना यह है कि सबके लिए सब जगह आधार अनिवार्य करती जा रही सरकार ने चुनावी चंदे से संबंधित जो नया प्रावधान किया है वह पारदर्शिता के तकाजे से कतई मेल नहीं खाता। नए प्रावधान के मुताबिक राजनीतिक दल कंपनियों से असीमित राशि का चंदा ले सकेंगे, और कंपनियों के लिए इसका हिसाब रखना जरूरी नहीं होगा। यह भी कम विचित्र नहीं है कि आधार के लिए गजब का जोश एक ऐसी पार्टी दिखा रही है जिसने विपक्ष में रहते हुए इसका विरोध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी