आपराधिक मानहानि का कानून नहीं बदलेगा: सुप्रीम कोर्ट

  • कोर्ट ने  आपराधिक मानहानि से संबंधित आईपीसी की धारा 499, 500 और सीआरपीसी की धारा 199 को संवैधानिक ठहराया है। 
  • कोर्ट ने तर्क दिया की अनुच्छेद 21 के तहत मिले जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों में सम्मान का अधिकार शामिल है।
  •  पीठ ने धाराओं को कानून की किताब में बनाए रखने का आदेश देते हुए कहा कि बोलने की आजादी के नाम पर किसी के सम्मान को धूलधूसरित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। बोलने की आजादी असीम नहीं है और इस पर अनुच्छेद 19(2) के तहत मुनासिब प्रतिबंध लगाया जाना संवैधानिक है।
  • कानून अस्पष्ट नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून अस्पष्ट और मनमाना नहीं है। कोर्ट किसी कानून को सिर्फ इसलिए निरस्त नहीं कर सकता क्योंकि उसे वह अनावश्यक या अवांछित लग रहा है। साथ ही मानहानि के मुकदमे में समन जारी करते समय मजिस्ट्रेटों को अति सावधानी बरतने की नसीहत दी है
  • जस्टिस मिश्रा ने कहा की बिरादरी का आधार यह है कि  आपसी सम्मान गरिमा का आश्वासन हो  । इसका मतलब यह नहीं है कि वहाँ असहमति नहीं हो सकती । ऐसा नहीं है कोरस में शामिल होने या एक ही गीत गाना चाहिए।  भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सबको है पर इसका आशय  यह भी है कि बिरादरी के विचार को बनाए रखने के लिए आवश्यक है  व्यक्ति की गरिमा का आश्वासन दिया जाए
  • व्यक्ति की प्रतिष्ठा और मुक्त भाषण  समान रूप से महत्वपूर्ण  है और  एक ही आसन पर तुलनीय है ।
  • कोर्ट ने कहा की  जानबूझकर एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर  चोट न केवल नुकसान के लिए बस एक दीवानी मामला लायक  है अपितु या  प्राइवेट गलत भी  है, ।
  • हालांकि मुक्त भाषण एक " अत्यधिक मूल्यवान और पोषित अधिकार है”, कारावास अपमानजनक टिप्पणी के लिए आनुपातिक सजा है।
  • अभिव्यक्ति के कृत्यों में शामिल लोगों का  हित न केवल वक्ता के perspective  से जिस मंच पर वह बोलता है बल्कि  जगह जन्हा वो भाषण देता है, परिदृश्य , दर्शकों , प्रकाशन की प्रतिक्रिया , भाषण का उद्देश्य के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए|


 


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