जीन एडिटिंग से जुड़ी यह बहस

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वैज्ञानिक मानव भ्रूण से बीमारियां पैदा करने वाले जीन हटाने में कामयाब हुए हैं. इससे उम्मीद बढ़ गई है कि जीन एडिटिंग नाम की यह तकनीक एक दिन प्रयोगशाला के बाहर भी उपलब्ध होगी.

  • इस प्रयोग के नतीजे इसी हफ्ते चर्चित विज्ञान पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुए हैं.
  •  इसमें वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जीन को हटाने में सफलता पाई जो हृदय की मांसपेशी की मोटाई बढ़ा देता है.
  • हाइपरट्रॉपिक कार्डियोमायोपैथी के नाम से जानी जाने वाली इस बीमारी के चलते खिलाड़ियों की अचानक मौत हो जाती है. देखा जाए तो हर 500 में से एक व्यक्ति को यह बीमारी प्रभावित करती है. यह एक खास जीन में होने वाले बदलाव के चलते होती है और अगर मां-बाप में बदले हुए इस जीन की एक कॉपी भी बच्चे में आ जाए तो उसे यह बीमारी होती ही होती है. इस बदलाव को सुधारने से न सिर्फ बच्चा स्वस्थ होगा बल्कि इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि जीन में हुआ यह बदलाव आगे की पीढ़ियों में न जाए

What scientist has done

इस जीन से बदलाव वाले हिस्से को निकालने के लिए वैज्ञानिकों ने हाइपरट्रॉपिक कार्डियोमायोपैथी के शिकार एक व्यक्ति के शुक्राणुओं और सीआरआईएसपीआर-सीएएस9 (Crispar-Cas9) नाम के एक जीन एडिटिंग टूल, जो डीएनए को उस जगह के नजदीक ही काटता है जहां जीन में बदलाव हुआ हो, का एक साथ अंडाणु से मेल कराया. इस मेल से पैदा हुए 58 में से 42 भ्रूणों में बीमारी पैदा करने वाला वह जीन नहीं था.

Significance of this research

यह शोध भ्रूणों के जीन की एडिटिंग की दिशा में मील का पत्थर है. लेकिन प्रयोगशालाओं से निकलकर आम जिंदगी में आने में अभी इसे लंबा वक्त लगना है. उदाहरण के लिए अमेरिका, जहां यह शोध हुआ, में भ्रूणों पर शोध करने के लिए सरकारी फंडिंग की इजाजत नहीं है.

  • एक तरफ जहां माना जा रहा है कि इस तकनीक का इस्तेमाल कर एक दिन कैंसर जैसी बीमारियां भी रोकी जा सकेंगी वहीं दूसरी ओर इसने ‘डिजाइनर बेबीज’ जैसी आशंकाओं को भी फिर जिंदा कर दिया है.
  • वैसे अतीत को देखें तो आईवीएफ से लेकर तीन व्यक्तियों से हुई संतान तक प्रजनन से जुड़ी कोई भी नई तकनीक विवादों में घिरने के बाद आखिरकार बनी रही. इसी तरह जब यह साबित हो जाए कि जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल सुरक्षित है और इससे कई वंशानुगत बीमारियां रोकी जा सकती हैं, खासकर वे जिनके लिए दूसरा कोई इलाज नहीं है, तो इसकी इजाजत दे दी जानी चाहिए.

इसी साल फरवरी में यूएस नेशनल एकेडमीज ऑफ साइंसेज और मेडिसिन ने वैज्ञनिकों को इस तकनीक के इस्तेमाल की इजाजत दी थी और कहा था कि एक दिन यह इलाज के लिए स्वीकार्य होगी. लेकिन इसके लिए पहले गहन शोध जरूरी है जो कई जगहों पर हो ताकि सुरक्षा और नैतिकता से जुड़ी हर बहस पर विराम लग जाए. पहला कदम वैज्ञानिकों ने बढ़ा ही दिया है. इस बीच, इस मुद्दे पर दार्शनिक और नैतिक बहस तो गर्म रहेगी ही

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