जुर्म और जवाबदेही

#Editorial_Jansatta

सन्दर्भ

बलात्कार और स्त्री के प्रति अन्य अपराधों की जो सालाना तस्वीर दिल्ली पुलिस ने पेश की है, वह न सिर्फ चिंताजनक है, बल्कि रोंगटे खड़े करने वाली है। हालत का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दिल्ली के सर्वाधिक सतर्कता जोन होने के बावजूद पिछले साल हर घंटे पर किसी न किसी महिला के साथ आपराधिक घटना हुई। औसतन हर चार घंटे में एक बलात्कार हुआ। साल भर में बलात्कार के 2,155 और छेड़खानी के 4,165 मामले सामने आए।  यह आंकड़ा तब है, जब बलात्कार भारत में न्यूनीकृत अपराधों में शामिल है, मतलब यह है कि बहुत सारे मामले या तो दबा दिए जाते हैं या पुलिस उन्हें दर्ज ही नहीं करती।

 चौंकाऊ तथ्य

  • बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का दूसरा पहलू और भी चौंकाऊ और ज्यादा भयावह है। सत्तानबे फीसद मामलों में अपराधी पीड़िता के सगे-संबंधी यानी चाचा, चचेरे भाई, भतीजे, पड़ोसी या परिचित रहे हैं, यहां तक कि किसी-किसी मामले में पिता तक।
  • सिर्फ तीन फीसद मामले ऐसे रहे, जहां अपरिचितों ने यह अपराध किया।

समाज पर एक तमाचा

आखिर हम किस तरह के समय या समाज में रह रहे हैं? हमारे संबंधों का ताना-बाना आखिर किस बुनियाद पर टिका है?

बलात्कार का मामला हमारे देश में लंबे समय से संजीदा विषय बना हुआ है। निर्भया कांड के बाद तो इस पर कठोरतम कानून भी बनाया गया और दिल्ली जैसी जगह में फिर भी अगर इस अपराध का ग्राफ वैसा ही है, तो जाहिर है सरकार के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं और समाज को भी इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

पुलिस की नाकामी

  • पुलिस की नाकामी का इससे बड़ा कोई सबूत नहीं हो सकता कि इसमें से एक लाख तिरपन हजार से ज्यादा मामले अनसुलझे ही रह गए।
  • पांच सौ अट्ठाईस लोगों की हत्या हुई, जिनमें उन्नीस वरिष्ठ नागरिक भी शामिल थे। अड़तीस हजार से ज्यादा वाहनों की चोरी हुई।
  •  दिल्ली पुलिस के गले की हड्डी बन चुके दो मामलों- कांग्रेसी सांसद शशि थरूर की पत्नी सुनंदा की हत्या और जेएनयू के छात्र नजीब की गुमशुदगी- का पर्दाफाश अब तक नहीं हो पाया है।
  • साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए कोई सार्थक पहल दिखाई नहीं दे रही। बहुत-से छिटपुट अपराधों की तो रिपोर्ट भी दर्ज नहीं होती, वरना आंकड़े और ज्यादा आते।
  • सैकड़ों घटनाएं हर दिन मोबाइल चोरी और जेबकतरी की होती हैं, जिनका कोई हिसाब-किताब ही नहीं रहता।

कामयाबी

अगर दिल्ली पुलिस की कामयाबी का हवाला देना चाहें तो नाभा जेल से फरार आतंकियों की गिरफ्तारी, आइएसआइएस के आपरेशन यूनिट तथा आनलाइन कैसीनों और स्नूकर जैसे अपराधों के पर्दाफाश का नाम लिया जा सकता है। जैसा कि होता है, दिल्ली पुलिस ने आंकड़े जारी करते समय रस्मी तौर पर अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की है और 2015 के आंकड़ों की कतरब्योंत करके 2016 में कई अपराधों में घटोतरी दिखाई है।

अपराधों को प्रतिशत में नहीं नापा जा सकता। इस मामले में हमें वह मशहूर किस्सा याद रखना होगा कि एक बार किसी अधिकारी ने जब एक गांव में जाकर यह दावा किया कि उसने यहां ‘इतने-उतने’ फीसद लोगों की रक्षा की है, तब एक बुढ़िया का जवाब था-‘मेरा बेटा सद-फी-सद मरा है।’ इसलिए अपराधों में कमी दिखाने की तरकीब निकालने के बजाय यह सोचना होगा कि अपराध को कैसे शून्य-स्तर पर लाया जाए।

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