- केंद्र सरकार ने जल्लीकट्टू त्यौहार पर से प्रतिबंध हटाते हुए इसके लिए अधिसूचना जारी कर की है।
- 2000 साल पुराना ये त्योहार संकट में था।
०-० गौरतलब है कि जल्लीकट्टू में पशुओं के प्रति क्रुरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसके आयोजन पर रोक लगा दी थी।
- अदालत ने फैसले में उल्लेख किया कि मानवीय संवेदना के साथ लोगों को पशुओं की संवेदना को समझना चाहिए। लोग सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए पशुओं के साथ हिंसक व्यवहार नहीं कर सकते हैं।
=>जानिए क्या है जल्लीकट्टू प्रथा
- तमिलनाडु में मकर संक्रांति का पर्व पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस खास बैल दौड़ का आयोजन पोंगल के मौके पर किया जाता है। बैलों की लड़ाई के खेल को जल्लीकट्टू के नाम से जाना जाता है।
- भले ही विदेशों में बुल फाइट का आयोजन एक प्रतिस्पर्धा के तौर किया जाता है, लेकिन हमारे देश में यह धार्मिक परंपरा का एक रूप है।
- पोंगल के त्योहार में मुख्य रूप से बैल की पूजा की जाती है क्योंकि बैल के माध्यम से किसान अपनी जमीन जोतता है। इसी के चलते बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है।
०-० इस मौके पर बैलगाड़ी दौड़ होती है। दौड़ के दौरान जीत हासिल करने के लिए आयोजक बैलों के संवेदनशील अंगों पर मिर्च का पाउडर लगाते हैं ताकि वो उग्र हो सकें और तेज दौड़े।
- लेकिन इस प्रक्रिया में हिंसक बैल लोगों पर भी हमला कर देते हैं।
- चेन्नई के दक्षिण में 575 किमी दूर पालामेडू में पोंगल के मौके पर ऐसा ही खेल खेला गया। इस समारोह को जल्लीकट्टू प्रथा नाम से जानते हैं।