- भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में चीन की बढ़त कम होने का नाम नहीं ले रही है। बीते दो साल में तमाम प्रयासों के बावजूद चीन के साथ व्यापार घाटे को कम करने में सरकार को सफलता नहीं मिल रही है।
- साल 2016 में द्विपक्षीय व्यापार चीन के पक्ष में रहा और भारत के लिए व्यापार घाटा 46.56 अरब डॉलर रहा।
भारत के लिए चिंता का विषय
- चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में उसका हावी रहना भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। बीते दो-तीन साल से इसे कम करने के लगातार प्रयास हो रहे हैं।
- चीन को होने वाले भारतीय निर्यात को बढ़ाने के उपाय किये जा रहे हैं। लेकिन दोनों देशों के बीच होने वाले कारोबार की प्रकृति इस तरह की है जिसके चलते यह चीन के पक्ष में ही बना हुआ है।
- साल 2015 में भारत और चीन के बीच होने वाले कारोबार में व्यापार घाटा 45 अरब डॉलर का था। दोनों देशों के द्विपक्षीय कारोबार में चीन की इस बढ़त को लेकर कई स्तरों पर चिंता व्यक्त की गई और देश के कई बाजारों में चीनी उत्पादों के बहिष्कार को लेकर भी अभियान चले।
लेकिन इसके बावजूद 2016 में न तो चीन को होने वाले भारतीय निर्यात की रफ्तार को तेज किया जा सका और न ही वहां से होने वाले आयात में कोई कास कमी आई।
- भारतीय उत्पादों को चीन में लोकप्रिय बनाने के मजबूत प्रयास किये जा रहे हैं। इसके बावजूद चीन को होने वाले भारतीय निर्यात में गिरावट का क्रम बना हुआ है। साल 2016 में इसमें पिछले साल के मुकाबले 12 फीसद की कमी दर्ज की गई।
विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि दोनों देशों के ज्यादातर उत्पाद आपस में प्रतिस्पर्धा की स्थिति में हैं। ऐसे में चीन के उत्पाद अपने अत्याधुनिक औद्योगिक माहौल के चलते भारतीय उत्पादों से बेहतर होते हैं। इसके चलते घरेलू बाजार में चीनी उत्पादों की मांग अधिक रहती है।
- जबकि चीन के बाजार में भारतीय उत्पाद अपनी जगह नहीं बना पाते हैं। मोबाइल हैंडसेट और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। एक और उदाहरण से इसे समझें तो साल 2015-16 में हुए वाहन और कारों के कलपुर्जों के निर्यात से समझा जा सकता है।
- इस वर्ष भारत ने 14.35 अरब डॉलर के वाहनों और कलपुर्जों का निर्यात किया। लेकिन इसमें से केवल 46 करोड़ डॉलर का निर्यात ही चीन को हो सका। सरकार ने केवल चीन को निर्यात बढ़ाने के उपाय ही नहीं किये हैं। बल्कि चीन से होने वाले गैर जरूरी आयात को नियंत्रित करने के भी प्रयास बीते दो साल में हुए। एंटी डंपिंग ड्यूटी के जरिये चीन से आने वाले गैर जरूरी स्टील, रसायन आदि के आयात को काबू में करने के काफी प्रयास हुए।