अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ईरान दौरा अहम क्यों?

- भारत और ईरान दो प्राचीन सभ्यताओं वाले देश हैं और दोनों का संबंध हज़ारों वर्ष पुराना है। आज़ादी से पहले ईरान भारत का पड़ोसी था, लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद भारत और ईरान के बीच थोड़ा सा फासला आ गया।

- भारत और ईरान के संबंधों को नई ऊर्जा देने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दौरा बहुत अहम साबित हुआ है। प्रधानमंत्री का ये दौरा ऐसे वक्त में हुआ है, जब ईरान पर परमाणु कार्यक्रम की वजह से लगा प्रतिबंध हट चुका है और अब ईरान का बाज़ार पूरी दुनिया के लिए खुला हुआ है। 

=>भारत और ईरान के बीच 12 समझौतों पर दस्तखत

-भारत ईरान के चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी करीब 3400 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। 
-चाबहार और ज़ाहेडान शहर के बीच रेलवे लाइन बिछाने के लिए भी एक समझौता हुआ है।
-चाबहार पोर्ट पर कार्गो हैंडलिंग के लिए 10 वर्षों तक दो टर्मिनल्स विकसित किए जाएंगे।
-चाबहार पोर्ट पर स्टील आयात करने के लिए भारत का EXIM Bank ईरान के सेंट्रल बैंक को 3000 करोड़ रुपये का कर्ज देगा। 
-दोनों देशों के बीच अर्थव्यवस्था, व्यापार, परिवहन, संस्कृति, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्रों में समझौते हुए हैं।

 

=>अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ये दौरा क्यों अहम है? 

  • परमाणु हथियारों की वजह से ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाया गया था जो जनवरी 2016 में हटा दिया गया। प्रतिबंध हटने के बाद ईरान का बाज़ार इस वक्त खुला हुआ है और दुनिया के तमाम देश इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। आपको बता दें कि ईरान में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा नेचुरल गैस रिजर्व है। और ईरान, भारत को तेल बेचने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।

 

  • इस बीच चीन, जापान और कई यूरोपीय देश पहले से ही ईरान से बेहतर संबंधों की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी की यात्रा की टाइमिंग बहुत सटीक है। जब से ईरान पर से प्रतिबंध हटा है तब से भारत ने ईरान से तेल का आयात तीन गुना कर दिया है। ऐसी परिस्थितियों में ईरान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने वाला प्रधानमंत्री का ये दौरा एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

=>अब आपको भारत और ईरान के बीच हुए उस समझौते के बारे में बताते हैं, जिसने पाकिस्तान और चीन की नींद उड़ा दी है। ये क़दम उस रणनीति का हिस्सा है, जिसने पाकिस्तान और चीन के गुरूर को तोड़ दिया है।

- भारत ने ईरान से चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए समझौता किया है। इस पोर्ट के बनने के बाद भारत सीधे मध्य एशिया में व्यापार कर पाएगा। पाकिस्तान को घेरने की कूटनीति के मुताबिक अफगानिस्तान भारत के लिए हमेशा बहुत महत्वपूर्ण देश रहा है। लेकिन अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए भारत को पाकिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल करना पड़ता है और पाकिस्तान भारत को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देता। ऐसे में चाबहार पोर्ट से भारत के लिए अफगानिस्तान सहित पूरे मध्य एशिया का प्रवेश द्वार खुल जाएगा। 

  • अफगानिस्तान की कोई भी सीमा समुद्र से लगी हुई नहीं है, इसलिए उसे अपने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए पाकिस्तान के बंदरगाहों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए भारत ने अफगानिस्तान को ईरान के रास्ते जोड़ने की इच्छा जाहिर की थी। 2003 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। जिसके तहत ये तय हुआ था कि ईरान चाबहार से अफगानिस्तान बॉर्डर तक एक हाईवे बनाएगा। 
  •  भारत अफगानिस्तान के सीमावर्ती शहर डेलारम से अफगानिस्तान के निमुर्ज़ प्रांत की राजधानी ज़रान्ज तक सड़क बनाएगा। 200 किलोमीटर की इस सड़क का निर्माण भारत के बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन ने किया था, इसे बनाने में 600 करोड़ रुपये की लागत आई थी। 

 

  • 2005 में इस सड़क का निर्माण शुरू हुआ और 2009 में इसे आम लोगों के लिए खोल दिया गया। इस हाईवे के निर्माण के दौरान तालिबान ने करीब 130 मज़दूरों की हत्या की, जिसमें 4 बीआरओ के भी थे। इस हाईवे से भारत न सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि एशिया के बाकी देशों तक अपनी पहुंच बनाना चाहता है। अब ये सड़क तो बनकर तैयार हो गई है, लेकिन चाबहार पोर्ट पूरी तरह से विकसित नहीं है। लेकिन आज के समझौते के बाद अब जल्द ही ये पोर्ट भी विकसित हो जाएगा। 

 

- 1947 तक भारत और ईरान की सीमाएं एक दूसरे से मिलती थीं। दोनों देश एक-दूसरे से अपनी संस्कृति और भाषा भी साझा करते थे।  लेकिन पाकिस्तान बनने से दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ गईं। आज़ादी के बाद के रिश्तों की बात करें तो भारत और ईरान के बीच राजनय़िक रिश्ते 15 मार्च 1950 को स्थापित हुए थे। 

-तेहरान में भारतीय दूतावास के अलावा बदर अब्बास और ज़ाहेदान में भारत के दो दूतावास भी हैं। 
-2014-15 में भारत और ईरान के बीच 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानी करीब 88 हज़ार करोड़ रुपये का व्यापार था। 
-भारत में इस वक्त 8 हज़ार ईरानी छात्र पढ़ रहे हैं। ईरानी छात्रों को भारत हर साल 67 स्कॉलरशिप देता है। 
-हर साल करीब 27 हज़ार ईरानी नागरिक भारत यात्रा करते हैं। 
-जबकि भारत के करीब 100 परिवार ईरान की राजधानी तेहरान में रहते हैं। 
-समझौतों से उम्मीद है कि भारत और ईरान के बीच अब दोस्ती और आगे बढ़ेगी और कूटनीति की दुनिया में भारत का कद और बढ़ जाएगा।

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