बारिश ने हमारे उन शहरों की कमर तोड़ दी है, जिन पर हम इतराते फिरते हैं और जिन्हें पैरिस या शंघाई बनाने का सपना देखते हैं। पिछले तीन-चार दिनों में हुई बरसात से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई, हाइटेक सिटी के नाम से मशहूर बेंगलुरूऔर मिलेनियम सिटी कहलाने वाले गुरुग्राम (गुड़गांव) में जनजीवन ठप हो गया।
★बेंगलुरू में एक झील ओवरफ्लो करने लगी जिससे पानी सड़कों पर आ गया। लोग सड़कों पर नाव चलाते और मछली पकड़ते देखे गए। लेकिन सबसे बुरा हाल गुड़गांव का हुआ, जहां 18 घंटे से भी ज्यादा का ट्रैफिक जाम लग गया। बेंगलुरू में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है, लेकिन गुड़गांव में 40 से 50 मिमी के बीच वर्षा हुई है जो कि मॉनसून के दिनों के लिए आम बात है। इतने में ही शहर में हाहाकार मच गया।
★जाहिर है, यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, यह मानवीय आपदा है। डिवेलपमेंट के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें, फ्लाइओवर्स और हाईवे बना दिए गए मगर पारंपरिक निकासी व्यवस्था की कमर तोड़ दी गई। नदी-नाले पाट दिए गए। गुड़गांव में ऐसी नदियां नहीं हैं, जिनमें सालों भर लगातार पानी बहता हो। वहां नदी का पानी नालों से होकर निकलता है। बादशाहपुर नाला उनमें प्रमुख है जिसके ऊपर हाईवे बना दिया गया और इसका स्वाभाविक प्रवाह रोक दिया गया। इस कारण बारिश का पानी भरते ही वह शहर में जमा होने लगा जिससे जयपुर हाईवे ब्लॉक हो गया। उस पर छह फुट तक पानी भर गया जिसमें कई गाड़ियां डूब गईं।
★यह कहानी अकेले गुड़गांव की नहीं है। सभी शहरों में ऐसा ही हो रहा है। विकास प्रक्रिया में शहर की भौगोलिक संरचना, पारिस्थितिकी और बढ़ती जनसंख्या का ध्यान नहीं रखा जा रहा, सिर्फ एक छोटे से वर्ग के हितों का ख्याल रखा जाता है।
★भू- माफियाओं, बिल्डरों और राजनेताओं की जेबें तो भर रही हैं, लेकिन शहर खोखले होते जा रहे हैं। पिछले साल चेन्नै का यही हाल हुआ था। करोड़ों की आबादी वाले शहर में निकासी तंत्र केवल 6,50,000 की आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया था। कूवम और अडयार नदियों पर अतिक्रमण भी बढ़ता गया। शहर में आधी से अधिक नम भूमि विकास की भेंट चढ़ चुकी हैं। शहर में जलाशयों की संख्या भी 150 से घटकर 27 रह गई है। देश के ज्यादातर शहर इसी हाल में हैं और ऐसे ही संकट के कगार पर खड़े हैं।
★अब इस विडंबना को क्या कहेंगे कि जिस गुड़गांव में दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की इकाइयां हैं, वहां के निवासियों को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। आए दिन उन्हें पेयजल के लिए सड़क जाम करना पड़ता है। यह कैसा विकास है? अगर यही हाल रहा तो धीरे-धीरे इन शहरों से भी लोगों का पलायन शुरू हो जाएगा। गुड़गांव की घटना को सबक की तरह लेते हुए हमें शहरों के लिए एक संतुलित नीति बनानी होगी।