पिछले कुछ वर्षो तक बाढ़ को ग्रामीण समस्या के रूप में ही देखा जाता था और हमेशा बाढ़ से ग्रस्त रहने वाले इलाकों के लोगों, जो मुख्यत: किसान होते थे, की मान्यता थी कि बाढ़ आती है और चली जाती है। ऐसा विरले ही होता कि कभी ढाई दिन से ज्यादा टिकी हो। लेकिन हमारे बाढ़-नियंत्रण के प्रयासों ने अब गांवों की कौन कहे, शहरी क्षेत्रों को भी अपने में समेट लिया है और ये ढाई दिन की बाढ़ ढाई हफ्तों, बल्कि कहीं-कहीं तो ढाई महीने की भी हो गई है। पानी आता है, मगर जाता नहीं है। पानी की निकासी के मुहानों का या तो दम घुट गया है या फिर वे बंद हो चुके हैं।
भारत में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र
- गंगा के अलावा शारदा, राप्ती, गंडक और घाघरा की वजह से पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ आती है। यमुना की वजह से हरियाणा, दिल्ली प्रभावित होता है।
- बढ़ी, बागमती, गंडक और कमला अन्य छोटी नदियों के साथ मिल कर हर साल बिहार में बाढ़ का खौफनाक मंजर पेश करती हैं।
- बंगाल की तबाही के लिए महानंदा, भागीरथी, दामोदर और अजय जैसी नदियां जिम्मेदार हैं।
- ब्रह्मपुत्र और बराक घाटियों में पानी की अधिक मात्रा होने से इन नदियों के आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आती है। ये अपनी सहायक नदियों के साथ पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों- असम और सिक्किम को प्रभावित करती हैं।
- मध्य भारत और दक्षिण नदी बेसिन ओड़ीशा में महानदी, वैतरणी और ब्राह्मणी बाढ़ का संकट पैदा करती हैं। इन तीनों की वजह से बना डेल्टा क्षेत्र बेहद घनी आबादी का है। इस कारण अधिक तबाही होती है।
- दक्षिण और मध्य भारत में नर्मदा, गोदावरी, ताप्ती, कृष्णा और महानदी में भारी बारिश के कारण बाढ़ आती है। गोदावरी, महानदी और कृष्णा नदी के डेल्टा क्षेत्र में चक्रवाती तूफानों के कारण आंध्र प्रदेश, ओड़ीशा और तमिलनाडु में कभी-कभी बाढ़ आ जाती है।
क्या यह बाढ़े बाढ़-नियंत्रण के क्षेत्र में failure की सूचक है
बाढ़-नियंत्रण के क्षेत्र में किया गया निवेश फायदे की जगह नुकसान पहुंचा रहा है। जाहिर है, पिछले कई दशकों में किए गए कामों और उनके नतीजों से कोई सबक नहीं लिया गया।
पहले राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के कुछ observation
देश में पहले राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की स्थापना 39 साल पहले साल 1976 में जयसुख लाल हाथी की अध्यक्षता में हुई थी, जिसका उद्देश्य ‘बाढ़ का वैज्ञानिक प्रबंधन और बाढ़ जनित कष्टों के निवारण’ पर राय देना व उन्हें कम करने के उपाय सुझाना था| आयोग ने साल 1980 में अपनी रिपोर्ट दी थी,
- इसमें 207 सिफारिशें की गई थीं, जिनमें से 25 सिफारिशों को केंद्र सरकार ने 1990 के दशक के मध्य में स्वीकार कर लिया था।
- रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ से हुए नुकसान के अध्ययन के अनुसार देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा अग्रणी थे और इनमें उत्तर प्रदेश व बिहार का स्थान सबसे ऊपर था।
- तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का बाढ़ के संदर्भ में इस रिपोर्ट में बस जिक्र भर हुआ।
- आंध्र प्रदेश का छठा स्थान शायद इसलिए था कि 1977 और 1979 में रिपोर्ट तैयार करने के दौरान वहां बहुत भयंकर तूफान के कारण व्यापक क्षति हुई थी।अब हालात एकदम बदल गए हैं।
- आजकल बाढ़ महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में सुर्खियां बटोरती है और वह दक्षिण-पश्चिम मुखी हो गई है।
- पुराने समय के सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य पीछे धकेल दिए गए हैं। बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में साल 2007 के बाद इस साल बाढ़ आई है और उसकी तबाही जारी है।
बाढ़ के कारण
- अत्यधिक पानी की आमद और उसके साथ आने वाली गाद
- बाढ़ नियंत्रण के नाम पर हमने नदियों के किनारे ज्यादातर तटबंध ही बनाए हैं, जिससे नदी की पेंदी के ऊपर उठने, जल जमाव और तटबंधों के टूटने से होने वाली परेशानियों ने हालात बदतर किए हैं।
- इसके साथ-साथ निकासी के रास्तों का दिनोंदिन संकरा होना, सड़कों, रेल लाइनों के अवैज्ञानिक निर्माण और शहरी क्षेत्रों में जल-निकासी की अनदेखी ने समस्या को बढ़ाया है।
क्या किया जाए
बाढ़ के पानी की निकासी को बेहतर बनाने की जरूरत है। बदली परिस्थितियों में क्या हम एक नए बाढ़/ ड्रेनेज कमीशन की स्थापना के बारे में सोच सकते हैं, जो बाढ़ के साथ-साथ पानी की निकासी की व्यवस्था का अध्ययन कर उससे निपटने के उपाय सुझाए?