ग्रेट बैरियर रीफ में bleaching से 'अपूर्णीय पारिस्थितिकी क्षति'

★ ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी मूंगा चट्टान है. वैज्ञनिकों को हाल में एक खोज के दौरान पता चला है कि ग्रेट बैरियर रीफ में मौजूद मूंगों का बड़ी मात्रा में क्षरण (कोरल ब्रीचिंग) हो चुका है. वैज्ञानिकों ने इसे 'पूर्ण पारिस्थितिकी क्षति' बताया है.

- ऑस्ट्रेलियन ऑर्गेनाइजेशन कोरल वाच के वैज्ञानिकों ने हालिया सर्वे में पाया कि मूंगे की चट्टानों में पाए जाने वाले समुद्री जीवों की संख्या करीब आधी हो चुकी है.

=>Coral bleaching के कारण :-
- समुद्र के अंदर का तापमान ग्लोबल वार्मिंग और अल नीनो के कारण बढ़ता जा रहा है. पिछले कुछ समय में अल नीनो प्रभाव में कमी आई है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग कम होने का नाम नहीं ले रही है. 

- अगर समुद्र के अंदर का तापमान समय रहते कम हो जाए तो कोरल ब्रीचिंग रुक जाती है लेकिन दुखद ये है कि ग्रेट बैरियर रीफ के मामले में ऐसा नहीं हो रहा है. समुद्र के कुछ हिस्सों में तापमान के कम हो जाने के बाद भी कोरल ब्रीचिंग नहीं रुकी. 

- इससे भी चिंताजनक बात ये है कि मार्शल ने रीफ के उत्तरी इलाके का अध्ययन किया जो आम तौर पर  पर्यावरण बदलाव से कम प्रभावित होने वाला इलाका माना जाता है. वैज्ञानिकों को आशंका है कि ग्रेट बैरियर रीफ शायद अपना पुराना स्वरूप कभी वापस न पा सके.

=>भारत भी प्रभावित :-
★ कोरल ब्रीचिंग एक अंतरराष्ट्रीय परिघटना है. भारत भी इससे अछूता नहीं है. लक्ष्यद्वीप में स्थित मूंगे की चट्टाने ब्रीचिंग की शिकार हो रही हैं.
★ इनकी निगरानी करने वाली संस्था नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन के अनुसार इस साल अप्रैल में समुद्र का अंदरूनी तापमान अपने अब तक के सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया. संस्था को लक्षद्वीप में पहली बार मरी हुई मछलियों के अलावा 'फुल-स्केल ब्रीचिंग' के लक्षण मिले.
 
★ प्रदूषण और अंडरवाटर फिशिंग की वजह से मूंगों की चट्टानों की अपने आप सही होने की क्षमता भी खो रही हैं. 1998 में अल नीनो के बाद भी जब इसी तरह बड़े पैमाने पर कोरल ब्रीचिंग हुई थी तो उसके बाद से इस इलाके मछली मारना लगभग बंद हो चुका था.

★ एनसीएफ ने अपने बयान में कहा, "कोरल ब्रीचिंग में सुधार न होने के कारण हमें पहले से पता है लेकिन फिशिंग से लक्षद्वीप के मूंगों को ज्यादा क्षति पहुंच रही है. इससे लक्षद्वीप समूह की जैव सुरक्षा को भी गंभीर खतरा हो सकता है."

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