सन्दर्भ- कावेरी जैसे विवादों के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय जल आयोग बनना चाहिए. हिंदुस्तान टाइम्स का संपादकीय
◆पड़ोसी तमिलनाडु के लिए कावेरी का पानी छोड़ने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की बार-बार अवहेलना करने के बाद आखिरकार कर्नाटक मान गया है. इससे पहले राज्य की विधानसभा ने कहा था कि पानी सिर्फ पीने के लिए छोड़ा जाएगा.
◆अतीत में जब भी बरसात कम हुई है, इन दोनों राज्यों में इस तरह के विवाद होते रहे हैं.
◆हर बार यह झगड़ा सितंबर में होता है जब तमिलनाडु में धान की फसल का समय होता है.
◆2002 में तमिलनाडु और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों ने तब प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी से अनुरोध किया था कि वे इस मुद्दे में दखल देकर इसे सुलझाएं.
◆कावेरी नदी घाटी कावेरी और इसकी पांच सहायक नदियों हेमावती, भवानी, काबिनी और अमरावती से मिलकर बनती है.
◆समस्या की जड़ यह है कि तमिलनाडु बहुत पहले से सिंचाई आधारित खेती करता रहा है और नदी के ऊपरी इलाके में स्थित कर्नाटक में यह काम बाद में शुरू हुआ.
◆ इस विवाद की जड़ें 19वीं सदी तक जाती हैं. तब मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज्य के बीच कावेरी को लेकर 1892 में एक समझौता हुआ था.
◆इसी तरह का एक समझौता 1924 में हुआ. कर्नाटक बार-बार इन समझौतों की बात करता है. उसका आरोप है कि इनमें उसके साथ भेदभाव हुआ.
★आईएएस अधिकारी रहे एस गुहन ने एक किताब लिखी है. द कावेरी डिस्प्यूट : टुवार्ड्स रिकंसिलिएशन शीर्षक से लिखी इस किताब में कई अहम सुझाव दिए गए हैं.
★ तमिलनाडु को कर्नाटक से लड़ते रहने के बजाय खुद को भी सुधारना चाहिए. जैसे कि वह अपनी सिंचाई व्यवस्था में सुधार करे, खेती का ढर्रा बदले, भूजल का संरक्षण करे और ऐसे इंतजाम भी करे कि बारिश का पानी बेकार न बह जाए.
★इस देश में यह समस्या सिर्फ कावेरी के पानी को लेकर नहीं है. उड़ीसा और छत्तीसगढ़ महानदी के पानी को लेकर झगड़ रहे हैं. दरअसल हमारे जल संकट की एक वजह हमारी गड़बड़ सिंचाई नीति भी है.
★इस देश में कई इलाके हैं जहां बारिश कम होती हैं लेकिन वहां सिंचाई की परियोजनाएं बस कागजों पर ही हैं. दूसरी समस्या यह है कि कई राज्यों में जल संसाधन निजी हाथों में दिए जा रहे हैं. इस सदी की शुरुआत में आंध्र प्रदेश ने अपना सिंचाई विकास निगम ही खत्म कर दिया.
★यह लोगों के लिए संदेश था कि अपना इंतजाम खुद करें. नतीजे में और बोरवैल खुदने लगे और भूजल स्तर गिरता चला गया जिससे किसानों की मुश्किलें बढ़ती गईं.
★साफ है कि केंद्रीय जल आयोग इस समस्या का समाधान नहीं कर पाया है. इसे खत्म करे इसकी जगह एक राष्ट्रीय जल आयोग बनाया जाना चाहिए.