भारत में सूखे की स्थिति और उसके सामाजिक जीवन पर प्रभाव

सूखे की व पानी की स्थिति भारत में: भारत के पास राष्ट्रीय स्तर पriver flowर 91 बड़ी झीलें और तालाब हैं, जो बिजली, पीने के पानी और सिंचाई के मकसद से तैयार हैं, इसके बावजूद भी बड़े स्तर पर पानी की कमी हुई है। हमारे देश में विश्व की आबादी की 16 प्रतिशत जनसंख्या है, जबकि विश्व के कुल पानी का चार प्रतिशत ही हमारे पास है। 

मैकिन्से कन्सल्टिंग के वॉटर रिसोर्सेज ग्रुप के मुताबिक, साल 2030 तक भारत दुनिया के उन देशों में से एक होगा, जहां कृषि क्षेत्र में पानी की मांग सबसे अधिक होगी। अनुमान के मुताबिक, साल 2030 में यह 1,195 अरब क्यूबिक मीटर जल का दोहन करेगा और इसके लिए उसे अपने मौजूदा उपयोग लायक जल की मात्र को दोगुना करना होगा

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 सूखे से समाज पर प्रभाव:

  • पुरुषों का बहुविवाह प्रथा की ओर मुड़ना:  इन इलाकों में एक पुरुष की तीन पत्नियां मिल कर पानी ढूंढ़ती हैं, क्योंकि एक पत्नी की सहायता से पानी ढूंढ निकालना कठिन काम हो गया है। यहां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर महिलाएं धातु के बर्तनों की मदद से कमर की लंबाई तक खुदाई करती दिखती हैं। पर अब तेज गरमी में तो उन्हें इस तरह की तीन से चार कोशिश करने के बाद पानी मिल पा रहा है, इसलिए जितनी अधिक पत्नियां, उतना ही अधिक मजदूरी का समान बंटवारा। इससे स्थानीय सेक्स अनुपात में गड़बड़ी आई है। शोधकर्ता इन्हें वॉटर-वाइव्स का नाम दे रहे हैं
  • पत्नियां परिवार के भरण-पोषण के लिए आगे आने को मजबूर: सूखे से पीड़ित विदर्भ और मराठवाड़ा में कई बार फसल तबाह होने के कारण अब पत्नियां परिवार के भरण-पोषण के लिए आगे आने को मजबूर हैं। वे घर से निकलने पर पाबंदी, घूरती निगाहों और तानों को सहने के बाद पहली बार घर से निकल कर बाहर काम कर रही हैं। कई तो बच्चों की स्कूल की फीस देने के लिए घर-घर जाकर चूड़ियां बेच रही हैं। कई पशुओं को बेच रही हैं, जिससे दवाएं खरीद सकें।
  • महाराष्ट्र के बीड में यह संकट बाल-विवाह की शक्ल ले रहा है

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