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पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए प्रधानमन्त्री ने राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने पर जोर दिया और कहा कि उनकी पार्टी अपने कोष का खुलासा करने में सक्रियता दिखाएगी
International experience on funding to parties
Ø इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी ऐंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडीईए) हैंडबुक के मुताबिक करीब 60 देशों में राजनीतिक दल चंदा देने वालों का खुलासा करने को बाध्य हैं। भारत उनमें शामिल नहीं है।
Ø 45 से अधिक देशों में राजनीतिक दलों को गुप्त दान पर रोक है। भारत इस सूची में भी शामिल नहीं है।
चूंकि देश में राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का अधिकांश हिस्सा अस्पष्ट स्रोतों से आता है इसलिए अंत:कई क्षेत्रों में सुधार किया जा सकता है ताकि भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके।
Ø पहला कदम है उन खामियों को रोकना जिनकी बदौलत भ्रष्ट लोग राजनीतिक दलों के कानूनी प्रावधान का दुरुपयोग करके काले धन को सफेद करते हैं।
Ø निर्वाचन आयोग के मुताबिक 1,900 पंजीकृत दलों में से केवल 400 राजनीतिक दल ही हाल के वर्षों में चुनाव लड़े हैं। यह खुला प्रश्न है कि शेष 1,500 दल करते क्या हैं। आयोग ने इन दलों का पंजीयन खत्म करने की अनुमति मांगी है। उसने यह सुझाव भी दिया है कि राजनीतिक दलों द्वारा स्वीकार किए जाने वाले अंकेक्षण रहित चंदे की सीमा को 20,000 रुपये से घटाकर 2,000 रुपये कर दिया जाना चाहिए।
2,000 रुपये की सीमा का औचित्य तथा और एक कदम आगे बढ़ते हुए ओर क्या सुधार आवश्यक
Ø 2,000 रुपये की सीमा का भी कोई औचित्य नहीं है क्योंकि उसका भी फायदा उठाया जा सकता है।
Ø हर तरह के नकद चंदे को रोकने का प्रावधान होना चाहिए और राजनीतिक दलों के लिए केवल डिजिटल चंदे को ही मान्य कर देना चाहिए।
Ø राजनीतिक दलों के अंकेक्षण का काम भी तीसरे पक्ष के अंकेक्षकों से कराया जाना चाहिए। तथा सख्त जुर्माने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि राजनीतिक दल भ्रामक और गलत वित्तीय घोषणाएं नहीं कर सकें।
Ø राजनीतिक दलों के लिए भी बढिय़ा शुरुआत यह होगी कि वे केंद्रीय सूचना आयोग के नियम का पालन करें और खुद को सूचना के अधिकार के दायरे में लाएं।
Ø इससे जुड़ी एक बात यह भी है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय जांच ब्यूरो और लोकपाल जैसे भ्रष्टाचार विरोधी और निवारण संस्थानों को और अधिक मजबूत बनाया जाए। उनको सही अर्थ में स्वायत्तता प्रदान करने की जरूरत भी है। फिलहाल ऐसी एजेंसियां या तो नेतृत्वहीन हैं या फिर उनको सत्ताधारी दल के राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति का जरिया माना जाता है।
Ø ताकत के दुरुपयोग का एक मामला तब सामने आया जब सरकार ने राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा नियमन अधिनियम 2010 के उल्लंघन के मामले में साफ तौर पर बरी कर दिया। इसके लिए कानून में पुरानी तिथि से बदलाव किया गया। ऐसा करके राजनीतिक दलों के विदेशी चंदे को जायज बनाया गया।
Ø आपराधिक छवि वाले राजनेताओं का आना भी दिक्कत की बात बनी हुई है। इससे पता चलता है कि कानून किस कदर सीमित है।