Background
SC ने पंजाब के टर्मिनेशन आफ एग्रीमेंट एक्ट 2004 की संवैधानिकता के बारे में प्रेसीडेंट की ओर से भेजे गये रिफरेंस का जवाब देते हुए यमुना सतलुज लिंक पर अपनी यह राय दी है। राष्ट्रपति ने 22 जुलाई 2004 को सुप्रीमकोर्ट को रिफरेंस भेज कर चार कानूनी सवालों पर राय मांगी थी।
कोर्ट ने क्या कहा
- सुप्रीमकोर्ट ने राष्ट्रपति के रिफरेंस पर दी गई राय में कहा है कि जल बंटवारा समझौता रद करने वाला पंजाब का कानून 2004 असंवैधानिक है।
- संविधान पीठ ने कहा है कि मुकदमें और समझौते में पक्षकार राज्य एकतरफा कानून पारित कर समझौता और सुप्रीमकोर्ट का फैसला रद नहीं कर सकता। पंजाब ने ऐसा करके अपनी विधायी शक्तियों का अतिक्रमण किया है।
- पंजाब का कानून वैध नहीं माना जा सकता। पंजाब राज्य इस कानून के जरिये जल बंटवारा समझौते के तहत मिले अपने कानूनी दायित्वों और जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकता।
- कोर्ट ने कहा कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि 1981 के जल बंटवारा समझौते को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच मुकदमेंबाजी चली और अंत में सुप्रीमकोर्ट ने उस समझौते के मुताबिक ही जल बंटवारे की डिक्री पारित की। जिसमें समझौते को कानूनी मंजूरी मिली।
- जब एक बार अदालत डिक्री पारित कर देती है तो उस मुकदमें में पक्षकार रहा राज्य एकतरफा उस डिक्री के प्रभाव को खतम नहीं कर सकता। इस मामले में पंजाब में उचित फोरम यानी ट्रिब्यूनल के समक्ष जाकर राहत मांगने के बजाए अपनी विधायी शक्तियों का इस्तेमाल करके कानून बना कर उस डिक्री को निष्प्रभावी किया है।
- कोर्ट ने कहा कि जल बंटवारे को लेकर पंजाब और हरियाणा का विवाद अंतर राज्यीय जल बंटवारा ट्रिब्युनल भेजा गया था और ट्रिब्युनल ने पंजाब पुनर्गठन कानून और अन्य प्रावधानों पर विचार करने के बाद अपना फैसला दिया था और पंजाब के इस 2004 के कानून से ट्रिब्युनल के फैसला भी प्रभावित होता है। कोर्ट ने कहा कि रावी और व्यास नदी के जल बंटवारे के बारे में 31 दिसंबर 1981 को हुए समझौते को एक पक्षकार विधायी शक्तियों का इस्तेमाल कर एकतरफा रद नहीं कर सकता।
- अगर कोई राज्य या पक्ष ऐसा करता है तो उसका कानून संविधान और अंतर राज्यीय जल बंटवारा कानून के प्रावधानों के खिलाफ माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि पंजाब सुप्रीमकोर्ट के 15 जनवरी 2002 और 4 जनवरी 2004 के फैसले में दिये गये दायित्वों से मुक्त नहीं सकता।
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