- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह नये आयोग के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अब सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग (नेशनल कमीशन फॉर सोशियली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेज) गठित होगा। इस नये आयोग को संवैधानिक दर्जा भी दिया जाएगा।
- सरकार के इस नये कदम का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब पिछड़ा वर्ग सूची में किसी नयी जाति को जोड़ने या हटाने का अधिकार राज्य सरकारों के पास नहीं रहेगा। संसद की मंजूरी के बाद ही ओबीसी सूची में बदलाव हो सकेगा। केंद्र के इस कदम को इसी सामाजिक ताने-बाने की आभार-पूर्ति के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिसके दूरगामी राजनीतिक निहितार्थ भी हो सकते हैं।
- यह फैसला ऐसे मौके पर भी आया है जब आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा के जाट आंदोलनरत हैं। गुजरात के पाटीदार यानी पटेल और राजस्थान के गुर्जर भी ओबीसी में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि सरकार ने आयोग के गठन का प्रस्ताव लाकर फिलहाल इन समुदायों को आश्वस्त रहने का संकेत दिया है।
- यह तो सर्वविदित है कि राज्य सरकारें और राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति के लिए ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को समय-समय पर हवा देते रहे हैं। राज्य सरकारें तो अपने स्तर पर पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी करती रही हैं। हरियाणा में पिछली कांग्रेस सरकार ने जाट, जट सिख, त्यागी, रोड समेत छह जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण दिया।
- केंद्र में पिछली यूपीए सरकार ने भी जाटों को ओबीसी में लाने का फैसला किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार का वह फैसला रद्द कर दिया। अब भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार संविधान संशोधन के जरिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए नया आयोग गठित करना चाहती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
- बशर्ते, इसमें राजनीतिक लाभ की बजाय सामाजिक उत्थान की भावना निहित हो। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह कदम महज कुछ राज्यों के राजनीतिक समीकरणों पर और 2019 के लोकसभा चुनाव केंद्रित होने के बजाय सामाजिक समरसता का वाहक बने।