सुप्रीम कोर्ट: अनिश्चितकाल तक इस्तेमाल करने का औजार नहीं है आफ्स्पा

- सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्स्पा) की सबसे घातक आलोचना सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के रूप में सामने आई. संदेश था- आप किसी को मारने के लिए गोली नहीं चला सकते.

- यह सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए बड़ा झटका था जो पिछले 60 वर्षों से मणिपुर में आफ्स्पा के तहत असीम शक्तियों का आनंद उठा रहे हैं. इन पर इसी कानून की आड़ में अनेक हत्याएं करने का आरोप है, जो कभी न्यायालय के सामने नहीं आए.
- सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने कहा, सशस्त्र बल "एक मक्खी को मारने के लिए लुहार के हथौड़े" का उपयोग नहीं कर सकते.

- सुप्रीम कोर्ट पिछले 20 सालों के दौरान कथित फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए 1528 लोगों के मामले की सुनवाई कर रहा था. पीठ ने मामले की सुनवाई में पाया कि जिन मामलों में सेना को कट्टरपंथी आतंकवादियों का सामना करना पड़ा था उनमें सरकार का तर्क था कि बंधे हाथ के साथ आतंकवादियों, उग्रवादियों और विद्रोहियों से लड़ाई संभव नहीं है.

- अदालत ने पाया कि यह तर्क वैध नहीं है. अदालत ने कहा, "यह मुठभेड़ या ऑपरेशन नहीं है जो जांच के दायरे में है, बल्कि यह तो बंदूक से उठता धुआं है जिसकी जांच हो रही है. 
★एक ऑपरेशन में बल के उपयोग और एक ऐसे घातक बल के उपयोग में गुणात्मक रूप से बहुत अंतर है जो एक मक्खी को मारने के लिए लुहार का हथौड़ा इस्तेमाल करने पर उतारू है. इनमें से पहला जहां आत्मरक्षा के लिए उठाया गया कदम है, वहीं दूसरा प्रतिशोध के किया गया काम है."

=>क्या परिवर्तन आ रहा है?
★सुप्रीम कोर्ट ने अपने 85 पन्नों के आदेश में कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जिसका प्रभाव मणिपुर ही नहीं, बहुत दूर तक नजर आने की संभावना है. असम, मणिपुर, मिजोरम और कश्मीर जैसे क्षेत्रों में भी इसका असर दिखेगा, जहां आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन के नाम पर इसी तरह मानव अधिकारों का उल्लंघन बड़े पैमाने पर हुआ है.

★सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस देश का प्रत्येक नागरिक "संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन जीने का अधिकार) के तहत सहित सभी मौलिक अधिकारों" के हकदार है, चाहे वह अशांत क्षेत्र में ही क्यों न रहता हो. और इसी कारण "मुठभेड़ के दौरान हुई हत्या" के प्रत्येक मामले में गहन जांच की जरूरत है.

=>अदालत की टिप्पणियां :-
1- आंतरिक गड़बड़ी से प्रभावित क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थिति वाला बर्ताव नहीं किया जा सकता. लोगों से दुश्मन की तरह बर्ताव नहीं किया जा सकता और उन्हें गोली नहीं मारी जा सकती.
2- यहां तक कि पहचाने जा चुके उग्रवादियों, आतंकवादियों और खूंखार अपराधियों के मामलों में भी सेना की नियम पुस्तिका (रूल बुक) लागू होगी, जिसमें स्पष्ट निर्देश है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है.
3- यदि सशस्त्र बल किसी व्यक्ति के खिलाफ इतना अधिक प्रयोग करते हैं कि उसकी मौत हो जाए तो इसकी एक स्वतंत्र निकाय द्वारा गहन जांच कराई जानी चाहिए.
4- सेना के अधिकारी किसी हत्या के मामले में आफ्स्पा के तहत प्रदत्त शक्तियों का दावा करने के योग्य नहीं होंगे.
5- आपराधिक मुकदमे के मामले में सेना के अधिकारियों को आपराधिक मुकदमे का सामना करना पड़ेगा.
6- अशांत घोषित क्षेत्र में भी केवल इस अनुमान पर किसी की हत्या नहीं की जा सकती कि वह दोषी है.

=>एक महत्वपूर्ण कदम :-
★इन कारणों से कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय को महत्वपूर्ण बताया है.
♂ "अदालत ने बहुत उदार तरीके इस कानून की व्याख्या की है. इसमें मानवीय रवैया अपनाया गया है, जो निश्चित रूप से अच्छा और न्याय पाने के रास्ते में एक महत्वपूर्ण कदम है. इस फैसले का असर सिर्फ मणिपुर में ही नहीं, पूरे देश में महसूस किया जाएगा, जहां भी आफ्स्पा लागू हैं."

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download