Why in news:
दिल्ली हाईकोर्ट ने दवा कंपनियों को राहत देते हुए ‘फिक्स्ड डोज कॉम्बीनेशन’ (एफडीसी) दवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाली केंद्र की अधिसूचना को खारिज कर दिया है.
Background
केंद्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिश पर इन दवाओं को प्रतिबंधित किया था। समिति ने पाया था कि इन दवाओं का साइड-इफेक्ट होता है और कई दवाएं तो अपने दावे के हिसाब से बीमारियों से लड़ने में सहायक भी नहीं होतीं
क्यों खारिज की गई अधिसूचना :
- दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार यह साबित नहीं कर पाई कि दस मार्च को 344 एडीसी (फिक्स डोज कांबिनेशन) दवाओं को प्रतिबंधित करने का उसका फैसला विधिसम्मत था
- न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि केंद्र सरकार ने निहायत ‘बेतरतीब तरीके’ से इन दवाओं को प्रतिबंधित किया है।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार ने जो निर्णय लिया, परिस्थितियों के हिसाब से वैसा करने की कोई अनिवार्यता नहीं थी।
क्या दलील थी दवा कंपनियों की :
- दवा कंपनियों की दलील थी कि सरकार ने फैसला लेते समय दवा व प्रसाधन अधिनियम की प्रक्रियाओं पर ठीक से अमल नहीं किया।
- दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड या औषधीय सलाहकार समिति से भी इस बारे में राय नहीं ली गई, बल्कि एक तकनीकी समिति गठित करके उसकी सिफारिश सरकार ने मान ली। ऐसा करना कानूनन ठीक नहीं था।
- किसी दवा को प्रतिबंधित करने से पहले निर्माता कंपनी को तीन महीने का नोटिस दिया जाना चाहिए था।
- जिस तकनीकी समिति की सिफारिश पर पाबंदी लागू की गई, वह एक गैर-स्वायत्त समिति थी, जिसेऐसी सलाह देने का वैध अधिकार नहीं था।
- इन दवाओं का सरकार ने न तो कोई क्लीनिकल परीक्षण कराया और न ही होने वाले नुकसान का कोई आंकड़ा दिया, बस सीधे-सीधे उन्हें ‘बेकार’ बता दिया।
सरकार का तर्क :
- केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि दवा कंपनियां, जिन समितियों की सलाह लेने की बात कर रही हैं, उसकी कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि दवाओं का नुकसानदेह होना ही पर्याप्त था। और पाबंदी ही इसका एकमात्र जवाब था।
- ऐसी किसी भी दवा का लाइसेंस दवा एवं औषधि महानियंत्रक से लेना जरूरी होता है, न कि किसी राज्य की ड्रग लाइसेंसिंग एजेंसी से, जैसा कि तमाम कंपनियों ने कर रखा है। फिर, कानून सरकार को यह अधिकार देता है कि वह ‘अपनी संतुष्टि’ के आधार पर कार्रवाई कर सकती है।
Q. फिक्स्ड डोज कॉम्बीनेशन’ क्या है ? उसके क्या लाभ और हानियाँ है ? (UPSC- 2013)