सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सबरीमाला के मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास विचारार्थ भेजा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दस साल से 50 साल तक की महिलाओं को ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में नहीं जाने देने की प्रथा पर महिलाओं के मौलिक अधिकारों के हनन का मामला बनता है।
जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि महिलाओं को अधिकारों से वंचित किया गया है। इस मामले में एक विस्तृत फैसला पांच जजों की संविधान पीठ दे सकती है। जस्टिस सी नागप्पन और आर भानुमति की इस खंडपीठ ने कहा कि एक मंदिर सार्वजनिक धार्मिक स्थल है।
आप वहां किसी महिला को आने से नहीं रोक सकते। इससे महिलाओं के अधिकार का हनन होता है। हम इस विषय की गंभीरता को समझते हैं। हरेक अधिकार को संतुलित करने की जरूरत होती है। लेकिन हर संतुलन की अपनी सीमाएं हैं।
किसी अधिकारी में संतुलन बनाने की कोशिश समस्या खड़ी करती है। हम इस मामले को सिर्फ संविधान पीठ को रेफर ही नहीं करना चाहते। बल्कि संविधान पीठ को रेफर किया तो हम विस्तृत आदेश देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को सुनिश्चित की है।