हाल ही में 19 बैंकों के 65 लाख से अधिक डेबिट कार्ड की जानकारी हैक किए जाने की खबर एक बड़ी चेतावनी है। देश की वित्तीय व्यवस्था अभी इतनी दुरुस्त नहीं है कि सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध किए जा सकें और ऐसी किसी आशंका से निपटने की व्यवस्था लाई जा सके। यह hacking इसलिए भी चिंता का विषय है की एक तरफ भारत cashless transaction की तरफ बढ़ रहा है और दूसरी तरफ इस तरह के cyber अपराध | यह अपराध नागरिको के मन में संशय पैदा कर सकते है और कभी demonetisation की exercise पर ही पानी नहीं फिर जाए जो cashless society की तरफ एक कदम माना जा सकता है |
A cause of tension
- हमारी वित्तीय व्यवस्था आपस में गहन संपर्क वाली है। कई ऐसे डाटा हैं जिनमें संवेदनशील जानकारियां हैं। 60 करोड़ से अधिक डेबिट कार्ड फिलहाल चलन में हैं। इसके अलावा 2.6 करोड़ क्रेडिट कार्ड और 13 करोड़ मोबाइल वॉलेट भी प्रचलन में हैं। ये सभी आपस में जुड़े रहते हैं और इनमें से कोई या शायद सभी जोखिम में पड़ सकते हैं।
- स्मार्ट फोन धारक बैंक खाताधारी यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस का इस्तेमाल कर सकते हैं और कई वित्तीय और निजी जानकारियां स्थायी खाता संख्या और आधार से जुड़ी हैं। ये दो ऐसे डाटाबेस हैं जो हजारों सरकारी कर्मचारियों की पहुंच में हरदम रहते हैं।
- इतना ही नहीं एटीएम और प्वाइंट ऑफ सेल कार्ड रीडर जैसे उपकरण भी बहुत बड़ी संख्या में चलन में हैं। लाखों लोग ऑनलाइन बैंकिंग करते हैं जबकि उनके कनेक्शन असुरक्षित होने की आशंका बनी रहती है। इतना ही नहीं उनकी फिशिंग या सोशल हैकिंग भी हो सकती है। इसके जरिये पीडि़त व्यक्ति को किसी झांसे में लेकर उससे व्यक्तिगत जानकारी निकलवाई जाती है।
Situation in developed world:
विकसित देशों में जहां वित्तीय सुरक्षा तंत्र मजबूत है वहां भी अक्सर डाटाबेस को संकट में पड़ते देखा जा चुका है। इन देशों ने बचाव के तगड़े रास्ते तैयार किए हैं।
- डाटाबेस कुछ इस तरह तैयार किया जाता है कि अगर एक तक किसी की पहुंच हो जाए तो भी दूसरे सुरक्षित रहें।
- उन देशों ने भारत से बाहर काम करने वाले कॉल सेंटर जैसी व्यवस्था बनाई है ताकि वित्तीय साइबर अपराध और पहचान चोरी को जल्दी दर्ज किया जाए।
- वित्तीय सेवा प्रदाता और सरकारों ने स्पष्टï प्रमाणित संचार व्यवस्था विकसित की है ताकि पीडि़तों को तत्काल जानकारी देकर उनसे पिन और पासवर्ड बदलवाए जाएं।
हमारे यहां ऐसी व्यवस्थाएं नहीं हैं। मसलन डाटा सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है। पैन और आधार का डाटा कितना सुरक्षित है यह स्पष्टï नहीं है। साइबर अपराध और पहचान चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने की व्यवस्था है लेकिन उनका प्रचार नहीं हुआ है। डिजिटल इंडिया पहल पर जोर ने सरकारी सेवाओं और वित्तीय व्यवस्था को ऑनलाइन किया है जो सराहनीय है। इससे हर किसी को आसानी होती है। परंतु इससे साइबर अपराधियों को भी मदद मिलती है। मौजूदा मामले जैसे निजता भंग के मामले न केवल उपभोक्ताओं के यकीन को क्षति पहुंचाते हैं बल्कि बेहतर व्यवस्था की जरूरत भी उजागर करते हैं।