भारत और अमेरिका सैन्य साझेदारी की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ गए हैं. तीन दिन की अमेरिका यात्रा पर वाशिंगटन पहुंचे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
- सैन्य साझेदारी को बढ़ावा देने वाले इस समझौते के बाद भारत और अमेरिका एक-दूसरे के जल, थल और वायु सैनिक अड्डों को मरम्मत और आपूर्ति जैसी जरूरतों के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे. समझौते को इस इलाके के समुद्री क्षेत्र में चीन के दिनों दिन बढ़ते दखल के जवाब के तौर पर भी देखा जा रहा है.
-विशेषज्ञों ने इस समझौते को भारत-अमेरिकी सैन्य रिश्तों में मील का पत्थर बताया है.
=> समझौते में क्या क्या?
★ मनोहर पर्रिकर और एश्टन कार्टन ने एक साझा बयान में कहा कि इससे संयुक्त अभियानों के लिए रसद आपूर्ति आसान और प्रभावी बनेगी. इस समझौते के बाद दोनों देशों की नौसेनाओं को अलग-अलग अभियानों और अभ्यासों के दौरान एक-दूसरे की मदद करने और मानवीय सहायता उपलब्ध कराने में आसानी होगी.
★भारत में यह समझौता काफी संवेदनशील मुद्दा रहा है. अमेरिका ने 2002 में भारत के साथ इस समझौते का प्रस्ताव रखा था लेकिन, बात नहीं बन पाई. इस साल की शुरुआत तक भी भारत इस पर राजी नहीं था. लेकिन, इस साल अप्रैल में एश्टन कार्टर के भारत दौरे के वक्त दोनों देशों के बीच इस पर सैद्धांतिक सहमति बन गई थी. इसके बाद आगे की बातचीत और अलग-अलग मंत्रालयों के अनुमोदन के बाद सोमवार को यह समझौता हो पाया है.
=> समझौते का विरोध क्यों?
★अमेरिका का अपने सैन्य साझेदारों के साथ ऐसा समझौता आम माना जाता है. लेकिन, गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अगुआ रहे भारत के लिए इससे कई चिंताएं जुड़ी हैं.
- कांग्रेस और वाम दल इस फैसले की मुखालफत करते रहे हैं. उनका कहना है कि इससे अमेरिका को भारत में सैन्य ठिकाने बनाने का मौका मिल जाएगा.
- पड़ोसियों से रिश्ते और ज्यादा तकरार भरे होने की सम्भावना