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सरकार ने भारतीय सेना के असैन्य पक्ष के प्रबंधन में बहुत बड़ा सुधार करने का फैसला किया है। नॉन ऑपरेशनल जिम्मेदारियों में तैनात 57 हजार अफसरों और सैनिकों की नए सिरे से तैनाती करके उन्हें ऑपरेशनल भूमिकाओं में लगाया जाएगा। इसके लिए:
- सेना से जुड़े कई गैर-जरूरी विभागों को बंद कर दिया जाएगा और एक ही तरह के काम में लगे विभागों को एक साथ मिला दिया जाएगा।
- सशस्त्र बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में रक्षा मंत्रालय ने लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डी. बी. शेकतकर की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमिटी गठित की थी। इसकी कई सिफारिशों को रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने मंगलवार को मंजूरी दे दी।
भारतीय सेना में सुधार की बातें समय-समय पर उठती रही हैं। बीच-बीच में कभी गोला-बारूद की कमी, कभी रक्षा संसाधनों की खरीद में गड़बड़ी, कभी पैसे के अपव्यय तो कभी जवानों के असंतुलित व्यवहार की खबरें आती रहती हैं। हालांकि ऐसी खबरों के कारणों पर जनसामान्य के दायरे में ज्यादा चर्चा नहीं हो पाती क्योंकि हमारे देश में सेना को एक पवित्र क्षेत्र का दर्जा प्राप्त रहा है, जिस पर टीका-टिप्पणी करना ठीक नहीं समझा जाता।
Organised to serve Colonial Power
- हमारी फौज का गठन ब्रिटिश शासन में उसकी जरूरतों के अनुरूप एक साम्राज्यवादी सेना के ढांचे पर किया गया था।
- इसमें अफसरों और जवानों के कुछ खास रिश्ते तय कर दिए गए थे। फौजी अफसरों को ऐसी सारी सुविधाएं दी गई थीं जो उन्हें ब्रिटेन से दूरी न महसूस होने दें, साथ में
- इस देश का शासक होने का एहसास भी कराती रहें लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद घुड़साल, डेरी फार्म, पोलो और गोल्फ के विशाल मैदान वगैरह भारतीय सेना के लिए गैरजरूरी हो चुके हैं।
- समय के साथ कई ढांचों और रिश्तों को बदल देने की जरूरत थी, पर दुर्भाग्य से यह प्रक्रिया धीमी रही। सेना में कई ऐसे विभाग अब भी कायम हैं, जिनकी अब कोई भूमिका नहीं रह गई है लेकिन उन्हें हटाने की पहलकदमी नहीं की गई, जिसके चलते उन पर नियुक्तियां होती रहीं
इस तरह एक ऐसा तबका खड़ा हो गया, जिसकी सेना के लिए कोई ठोस भूमिका नहीं है। अब यह सूचना ही चौंकाने वाली है कि 57 हजार लोग सैनिक और अधिकारी अब तक नॉन ऑपरेशनल कामों में लगे थे। इन्हें सेना पर बोझ बनाकर रखने की बजाय इनका उपयोग सैन्य संसाधन के रूप में किया जाना चाहिए। तकनीक के इस दौर वे तमाम सरंजाम हटा दिए जाने चाहिए, जो वक्त के साथ अप्रासंगिक हो गए हैं, जैसे सेना का डाक विभाग। आज हर जगह सेनाओं को टेक्नो-सैवी और पेशेवर बनाने पर जोर दिया जा रहा है। उम्मीद करें कि सुधार के इस कदम से भारतीय सेना और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त हो जाएगी