#Dainik_Bhaskar
डोकलाम विवाद का तनाव झेलने और फिलहाल उसके निपट जाने के बाद चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर निगरानी रखने के लिए उपग्रहों की मदद लेने का फैसला स्वागत योग्य है। वह इस काम का विस्तार बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार और श्रीलंका जैसे पड़ोसियों के साथ भी कर सकता है, क्योंकि वहां से भी उग्रवाद और तस्करी की समस्याएं देश में प्रवेश करती हैं।
- भारत की चीन से 3500 किलोमीटर और पाकिस्तान से 2900 किलोमीटर सीमा लगती है और यही सर्वाधिक तनाव पैदा होता रहता है
- हालांकि पाकिस्तान और चीन से होने वाले तनाव में फर्क है लेकिन उनमें नज़दीकी बढ़ने के साथ इनकी प्रकृति एक जैसी होती जा रही है।
- उपग्रह प्रक्षेपण में विशिष्टता विकसित कर चुके भारत के लिए यह काम आसान भी है और दूसरे देशों पर बढ़त देने वाला है। जब ये उपग्रह दिन-रात की तस्वीरें भेजेंगे और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बनाए जा रहे केंद्र से उनकी निगरानी होगी तो कार्रवाई के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा। तब शायद केंद्र सरकार और भारतीय सेना को भूटान से सूचना मिलने या चमोली के डीएम से संदेश मिलने का इंतजार नहीं रहेगा।
- कार्टोस्टेट उपग्रह को मिलाकर सैनिक कामों में लगे भारतीय उपग्रहों की संख्या अब 13 हो गई है।यह रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट धरती के करीब कक्षा में स्थापित किए जाते हैं और इनकी ऊंचाई 200 से 1200 किलोमीटर तक होती है। इस उपग्रह की विशेषता यह है कि इससे 0.6 मीटर की लंबाई और चौड़ाई वाले इलाके के भीतर होने वाली किसी भी गतिविधि का चित्र लिया जा सकता है।
- सीमा से मिली तस्वीरों का इस्तेमाल सुरक्षा के साथ ही साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजनयिक दबाव के लिए भी किया जा सकेगा। अगर कोई देश सैनिक घुसपैठ कर रहा है या कहीं से आतंकी आ रहे हैं तो भारत इस बात को प्रमाण के साथ रख भी सकता है।
यह दौर सेनाओं के सीधे युद्ध से हट कर प्रौद्योगिकी युद्ध का है और संभव है कि इस तरह की निगरानी की होड़ इस एशियाई भूभाग में तेज हो। इसलिए इस फैसले का स्वागत करने के साथ यह भी कहना आवश्यक है कि सीमा विवाद सिर्फ उपग्रह की निगरानी से हल नहीं होंगे। उनके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत होगी और जब वह इच्छा शक्ति पैदा होगी तो यह उपग्रह विवाद के बजाय साझी मानवता के लिए काम करेंगे।