- इनर लाइन परमिट एक प्रतिबंधित क्षेत्र में गैर-अधिवास नागरिकों के प्रवेश को नियंत्रित करती हैं।
- मांग करने वाले लोग इसे “राज्य के स्वदेशी लोगों की संस्कृति, परंपरा, पहचान और जनसांख्यिकीय संरचना को बचाने के लिए” प्रतिबंधित करने और बाहरी लोगों और आंतरिक प्रवासियों की आमद को विनियमित करवाना चाहते हैं |
=>यह सब कहां से शुरू हुआ ?
- अंग्रेजों द्वारा इनर लाइन परमिट की शुरुवात, उनके क्षेत्रों में अतिक्रमण से जनजातीय आबादी की रक्षा की लिए की गयी थी , लेकिन बाद में संघ के एक राज्य में प्रवेश करने के लिए वाणिज्यिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय नागरिकों को वीजा देने की प्रणाली की लिए इस्तेमाल किया।
- आईएलपी की बहाली के लिए पहली मांग 1980 में मणिपुर की संसद में और उसके बाद में कई मौकों पर की गयी |
=>वर्तमान में विरोध प्रदर्शन क्यों है ?
- विरोध प्रदर्शनों के मौजूदा दौर का नेतृत्व- इनर लाइन परमिट प्रणाली पर संयुक्त समिति (JCILPS), जो की सभी घाटी सहित मणिपुर में 30 नागरिक निकायों, तथा छात्र संगठनों के नेतृत्व में किया जा रहा है |
- JCILPS कोई राजनीतिक संबद्धता नहीं है, और इसके स्वयंसेवकों में ज्यादातर छात्र और छात्र नेता हैं |
- यह मुख्य रूप से मेइती (अपर क्लास) संचालित है । मणिपुरी आदिवासियों को जो की काफी हद तक इम्फाल घाटी में केंद्रित हैं, को आंदोलन से दूर रखा गया है |
=>इस संबंध में इससे पहले पारित बिल क्या हैं ?
- ‘आगंतुक, किरायेदारों और प्रवासी श्रमिक विधेयक’ – गैर मणिपुरियो के नियमन के लिए यह अनिवार्य कारणों से “उनकी सुरक्षा और सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए” राज्य में प्रवेश करने पर सरकार के साथ खुद को पंजीकृत करने के लिए बनाया है।
- विधेयक ने राज्य में शक्तिशाली समूहों की एक लम्बे समय की मांग को पूरा किया है, लेकिन कट्टरपंथियों की मांग को पूरा करने में विफल रहा हैं |
=>क्या यह समस्या जटिल है ?
- हालांकि यह मांग, अधिक वैध तरीके से राज्य में बाहरी लोगों के बजाय- पहाड़ी घाटी बांटो तथा घाटी के घनत्व का परिणाम है।
- इस प्रकार स्थिति जटिल है, लेकिन नियंत्रण की बाहर नहीं है।
- लेकिन राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि- ‘विदेशी निवेशक संचालित विकास’ अपने लोगों को हानि न पोह्चाये |
- क्यूंकि वे अपने स्वयं के घरेलू संसाधनों से उत्पन्न वृद्धि से ही लाभ प्राप्त कर सकते हैं |
GSHindi के विचार :-
- मणिपुर के जनजातीय लोगों का ‘इनर लाइन परमिट प्रणाली’ आंदोलन के बारे में उलझन महसूस करने के लिए उनके अपने कारण है।
- मौजूदा संघर्ष स्थानीय हितों और अपनी भूमि की रक्षा की वास्तविकता से काफी दूर हट चुकी है |
- इसे महसूस करने की विफलता – आगे आदिवासी लोगों को बाहर कर सकती है और मणिपुर के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।