तीनों सेनाओं के बीच तालमेल की जरूरत को समझते हुए सशस्त्र बलों के लिए संयुक्तता का नया सिद्धांत पेश किया गया है।
★ माना जा रहा है कि इससे क्षमता बढ़ेगी, संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल होगा और धन की बचत हो सकेगी।
क्या होगी इसके तहत रणनीति
★ पहली बार संयुक्तता का सिद्धांत 2006 में जारी किया गया था। सेनाओं में माना जा रहा है कि तब के बाद से हालात काफी बदल गए हैं, जिनके लिए संशोधन की जरूरत पड़ी।
★ इंटिग्रेटिड डिफेंस स्टाफ ने यह सिद्धांत तीनों सेनाओं के सहयोग से तैयार किया है। यह कहा गया है कि सैन्य ताकत के बीच तालमेल के लिए मूलभूत तत्व का काम करेगा।
★ मोर्चा चाहे जमीनी हो या आसमानी, जल हो गया साइबर स्पेस, सभी क्षेत्रों में ऑपरेशंस की प्लानिंग और अमल के लिए यह फ्रेमवर्क का काम करेगा। इसे जिंदगी के दूसरे पहलुओं की तरह वक्त की मांग बताया गया है।
★ इसके तहत राजनीतिक वर्ग की मंशा कैबिनेट की सिक्यॉरिटी कमिटी से होते हुए रक्षा मंत्री के जरिये चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी तक पहुंचेगी, जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख होंगे। इन निर्देशों को सैन्य उद्देश्यों में बदला जाएगा।
★ हर सेना के मिशन और रोल को देखते हुए चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी इस तरह का इंटिग्रेटिड कोर्स ऑफ एक्शन तैयार करेगी, जिससे हर सेना की यूनीक पोजिशन कायम रहे।
★ कमिटी संयुक्त उद्देश्य और संसाधनों का बंटवारा तय करेगी। चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के तहत ऑपरेशंस पर अमल के लिए जॉइंट ऑपरेशंस कमिटी है।
★ गौरतलब है कि तीनों सेनाओं के बीच तालमेल और सरकार को सैन्य मसलों पर सिंगल पॉइंट सलाह के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति की मांग होती रही है।
★ करगिल की जंग के बाद इसकी सख्त जरूरत महसूस की गई।
★ कुछ दिन पहले सेना के कमांडरों के सम्मेलन के दौरान भी जॉइंट ऑपरेशन की धारणा विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया।
★ नए सिद्धांतों के तहत कहा गया है कि हायर डिफेंस ऑर्गनाइजेशन में सुधार लगातार चलने वाली प्रक्रिया है और इससे संकट के दौरान जल्द फैसले लेने में मदद मिलेगी।