कश्मीर में नई पैलेट गन और पावा शेल्स का होगा बेहतर तरीके से प्रयोग

पैरामिलिट्री फोर्सेज ने चोटों को कम करने के लिए पैलेट गन को बदलकर प्रयोग करने का फैसला किया है। जो पैलेट गन अब सीआरपीएफ प्रयोग करेगी वह कुछ इस तरह से होंगी। 

=>क्‍या होगा इस नई गन में


नई पैलेट गन में एक डिफलेक्‍टर यानी विक्षेपक होगा जो बंदूक के सिरे पर लगा होगा। इस डिफलेक्‍टर की वजह से शरीर के ऊपर हिस्‍से पर चोट नहीं लगेगी। आलोचना के बावजूद सीआरपीएफ पैलेट गन का प्रयोग बंद नहीं कर सकती है।
  
=>नुकसान को कम करने की कोशिश

पहले गलती का अंतर 40 प्रतिशत होता था। अब डिफलेक्‍टर्स के साथ उम्‍मीद है कि इसे दो प्रतिशत पर लाया जा सकेगा। सीआरपीएफ का कहना है कि पहले अगर कमर से नीचे निशाना लगाकर भी पैलेट गन को फायर किया जाता था तो वह अपने निशाने से भटक जाती थी और कई नाजुक अंगों को चोट पहुंचती थी।

=>पावा शेल्‍स में भी होगा बदलाव
अब सेनाओं को आदेश दिया है कि वह नुकसान को कम से कम करने की कोशिश करें। दुर्गा प्रसाद ने बताया है कि बीएसएफ से अनुरोध किया है कि वह पावा शेल्‍स यानी मिर्ची के हथगोलों में बदलाव करें और उन्‍हें और ज्‍यादा प्रभावशाली बनाएं। उन्‍होंने जानकारी दी कि वर्तमान में शेल का ढांचा ऐसा है कि मिर्ची की धुंआ निकलने से पहले ही उसके खोल को वापस से बीएसएफ पर फेंक दिया जाता है। दुर्गा प्रसाद ने बताया कि बीएसएफ से कह गया है कि वह बॉडी प्‍लास्टिक या फिर ऐसे किसी तत्‍व की बनाएं ताकि यह जमीन पर गिरते ही एक्‍सप्‍लोड हो सके।

  
=>बैन नहीं हो सकती हैं पैलेट गन

कश्‍मीर घाटी में हिंसा के बीच पैलेट गन के प्रयोग ने जमकर विवाद और हंगामा खड़ा किया। पैलेट गन की जगह दूसरे विकल्‍पों पर विचार के लिए बनाई गई कमेटी ने अगस्‍त में कहा था कि घाटी में पैलेट गन को पूरी तरह से बैन नहीं किया जा सकता है। कमेटी की ओर से कहा गया है कि सीआरपीएफ सिर्फ कुछ असाधारण घटनाओं में ही पैलेट गन का प्रयोग करेगी।

=>क्‍या है पैलेट गन

पैलेट के प्रयोग को दुनियाभर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बिना खतरे वाला आसान जरिया माना जाता है। पैलेट के अलावा आंसू गैस, वॉटर कैनन, पेपर स्‍प्रे, टीजर गैस को भी भीड़ नियंत्रण के काम के लिए प्रयोग करते हैं। पैलेट गन शिकार और पेस्‍ट कंट्रोल के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं।
  
=>पहली बार वर्ष 2010 में हुआ प्रयोग :-

जम्‍मू कश्‍मीर पुलिस और सीआरपीएफ ने पहली बार अगस्‍त 2010 में इसका प्रयोग किया था। सीआरपीएफ के पास करीब 600 पैलेट गन्‍स हैं। शुरुआत में 4/5 पैलेट टाइप का प्रयोग होता था लेकिन कश्‍मीर में वर्ष 2010 में करीब 110 लोगों की मौत इससे हुई थी।

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