#Editorial_Hindustan
Recent context:
दूसरा हमला डेढ़ महीने के भीतर ही हो गया। पहले से ज्यादा बड़ा, ज्यादा भयानक।
- मई महीने में जब कंप्यूटरों को अपनी गिरफ्त में लेने वाले रैनसमवेयर का हमला हुआ था, तो यह लगा था कि दुनिया इससे सबक लेगी।
- बेशक यह मामला सरल नहीं है, लेकिन इसके गुनहगारों तक पहुंचने की कोशिश तो की ही जाएगी। कुछ ऐसा होगा कि फिरौती के लिए लोगों के कंप्यूटर सिस्टम का अपहरण करने वाले अगली बार ऐसी कोशिश से पहले कुछ सोचें। लेकिन जो हुआ, उसने साइबर संसार के काले तहखाने की गतिविधियों को शह ही दी।
- जिन कंपनियों के कंप्यूटर हैक हुए थे, उन्होंने चुपचाप हैक करने वालों के खातों में बिटक्वाइन की फिरौती पहुंचा दी और अपने कंप्यूटरों को मुक्त करा लिया।
Isn’t Ranso approval to these attacks:
जब आप फिरौती देने को तैयार हो जाते हैं, तो आप इस काले धंधे पर अपनी स्वीकृति की मुहर भी लगा देते हैं।सच तो यह है कि साइबर हमले का शिकार बनी कंपनियों के पास कोई और चारा भी न था।
- विकल्प दो ही थे कि या तो अपने बेशकीमती डाटा से हाथ धोएं या
- फिर 300 बिटक्वाइन के बराबर की रकम रैनसमवेयर वालों के हवाले कर दें।
What commonsense says:
किसी व्यक्ति का अपहरण होता है, तो हम पुलिस को खबर करते हैं, थाने में जाकर रपट लिखाते हैं। पुलिस अपने ढंग से सक्रिय होती है और अक्सर मामले को अंतिम परिणति तक पहुंचा भी लेती है।
Problem with cyberworld:
लेकिन कंप्यूटर सिस्टम का अपहरण हो जाए, तो सबको पता है कि थाने जाने से कोई फायदा नहीं। उत्तर प्रदेश से लेकर अमेरिका के कैलिफोर्निया तक ज्यादातर कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को पता है कि स्थानीय पुलिस इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकती। यहां तक कि साइबर अपराध शाखा भी शायद ही कुछ कर पाए।
Lack basic cyber infra
पिछले कुछ साल में हमने जो साइबर समाज बनाया है और जो ऑनलाइन दुनिया बसाई है, उसके पास अपने अपराधियों को पकड़ने की कोई व्यवस्था नहीं है। साइबर अपराधियों को पकड़ने की जरूरत भी किसे है?
- अपराध के समाजशास्त्र की एक धारणा यह है कि कोई भी अपराधी तब पकड़ा जाता है, जब उसे पकड़े जाने से किसी प्रभावशाली वर्ग का हित सधता हो, वरना हो सकता है कि उसके कृत्य को अपराध ही न माना जाए।
- जो कंपनियां पिछले साइबर हमले की सीधी शिकार रही हैं और फिरौती देकर किसी तरह परेशानी से निकली हैं, उनसे हम ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते। कुछ खास स्थितियों में ही कॉरपोरेट इस तरह के टकराव के पचडे़ में पड़ता है (ऐसे टकराव का मनोरंजन उद्योग का एक उदाहरण है, जिसका जिक्र हम बाद में करेंगे), अन्यथा कुछ ले-देकर काम चलाने के दर्शन को अपनाता है।
- इस बात को रैनसमवेयर चलाने वाले अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए फिरौती के रूप में किसी से उसके जीवन भर की कमाई नहीं मांगते, बल्कि उतनी ही रकम मांगते हैं, जो किसी मध्यम दर्जे की कंपनी के लिए भी बहुत बड़ी न हो।