कश्मीर में आतंकवाद के वित्तीय स्रोत

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भारत में खासकर कश्मीर में आतंकवाद के वित्तीय स्रोतों को खंगालने में जुटी एनआइए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को एक बार फिर कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जो घाटी में उपद्रव व अशांति के पीछे हुर्रियत का हाथ होने की तरफ इशारा करते हैं।

  • एनआइए ने हुर्रियत के कई अहम ठिकानों पर छापे मारे।
  •  इस छापेमारी में उसने कई महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए। इनमें एक ऐसा कैलेंडर भी शामिल है जो घाटी में अस्थिरता पैदा करने तथा उपद्रव फैलाने का खाका पेश करता है। कैलेंडर पिछले साल का है और इस पर हुर्रियत के दूसरे धड़े तहरीक-ए-हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी के हस्ताक्षर हैं।
  • एनआइए को शक है कि बहल हुर्रियत नेताओं के लिए कूरियर का काम करता था और हुर्रियत के पाकिस्तानी मददगारों से भी उसके संपर्क हो सकते हैं।
  • कैलेंडर की बरामदगी और बहल की गिरफ्तारी, दोनों सरकार के लिए काफी मायने रखती हैं। गिलानी के हस्ताक्षर वाले इस कैलेंडर के सहारे सरकार अपने इस तर्क को और मजबूती से रख सकेगी कि घाटी में सुरक्षा बलों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन स्वाभाविक जन-रोष का परिणाम नहीं रहे हैं, बल्कि इनके पीछे सोची-समझी रणनीति होती थी।
  • खाका पहले ही बना लिया जाता था कि कब क्या करना है और सबको इसकी सूचना दी जाती थी। बहल से पूछताछ में हुर्रियत के वित्तीय स्रोतों और उनके इस्तेमाल के मदों तथा तरीकों के बारे में कुछ और खुलासा हो सकेगा। आतंकी फंडिंग की जांच के सिलसिले में एनआइए ने हफ्ता भर पहले हुर्रियत के सात कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था।
  • एक यह कि घाटी में अस्थिरता फैलाने वाली ताकतों को बेनकाब करने तथा उनके मंसूबों को ध्वस्त करने में मदद

यह उम्मीद करना शायद बेमानी होगा कि ताजा सबूतों को दिखा कर पाकिस्तान को हाफिज सईद या जमात-उद-दावा पर नकेल कसने के लिए राजी किया जा सकेगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष जरूर इन सबूतों की दोहरी उपयोगिता है। एक यह कि पाकिस्तान की जमीन से आतंकवादी गतिविधियां चलाई जा रही हैं, और तथ्यों से अवगत कराने पर भी वहां की सरकार कुछ नहीं कर रही है। क्या यह रवैया भारत के साथ-साथ विश्व शांति के लिए भी खतरा नहीं है? दूसरा यह कि कश्मीर में कुछ महीनों से लगातार जारी अशांति एक गहरी साजिश की देन है। आतंकवाद के वित्तीय स्रोतों को बंद करने का आह्वान अब हर अंतरराष्ट्रीय मंच से किया जाता है। जी-20 के हाल में हुए सम्मेलन में यह मसला प्रमुखता से उठा था। लिहाजा, उम्मीद की जानी चाहिए कि कश्मीर

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