#Editorial_Bhaskar
सुकमा में नक्सली हमले और जवानों की शहादत के बाद केंद्र सरकार नक्सलियों को जवाब देने के लिए सुरक्षा रणनीति को मजबूत करने में जुट गई है परंतु, क्या सिर्फ सुरक्षाबलों की कार्रवाई से ही समस्या का समाधान हो सकता है?
Ø हमलों में घायल जवानों के अनुसार नक्सलियों ने गांव के लोगों की आड़ में हमला किया, तो क्यों न उनके ही समर्थन आधार को कमजोर किया जाए।
Ø आंतरिक संघर्ष के स्थान पर आदिवासियों और गांव वालों को मुख्य धारा से जोड़ना बेहतर विकल्प हो सकता है।
अब प्रश्न यह उठता है, क्यों और कैसे? यह विकल्प ‘क्यों’ बेहतर है इसके कारण है। एक, अगर हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता चाहते हैं तो देश के विभिन्न प्रांतों में आंतरिक शांति के साथ नक्सलवाद का अंत आवश्यक है। दो, नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोयले, लौह अयस्क और बॉक्साइट से समृद्ध है किंतु, इनका अवैध और अपूर्ण उपयोग भारतीय अर्थव्यवस्था की उन्नति में बाधक है। इन क्षेत्रों में विकास के लिए निवेश बेहतर कदम होगा। तीन, भारतीय वायुसेना का सिंगारसी हवाई ठिकाना नक्सली क्षेत्र के समीप है। यह वायु ठिकाना पांच पड़ोसी देशों (जिसमें चीन भी शामिल है) कि हवाई गतिविधियों की निगरानी करता है।
अब जानते हैं ‘कैसे’?
ज्यादातर नक्सल प्रभावित इलाके आदिवासी बहुल हैं। 2011 की गणना के अनुसार इन क्षेत्रों की साक्षरता दर, प्रति व्यक्ति आय और आधारभूत सुविधाएं शेष भारत की तुलना में निचले स्तर पर है। सरकार ने इन क्षेत्रों के विकास के लिए नीतियां बनाई है परंतु कुछ ही चल रही हंै। प्रमुख कारण हैं राष्ट्रीय और राज्य सरकार के बीच कमजोर ताल-मेल और भ्रष्टाचार। आवश्यक है कि दोनों साझेदार बनकर राष्ट्रव्यापी पुनर्वास कार्यक्रम की शुरुआत करें। विकास और रोजगार पैदा करने के प्रयासों के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, भूमि सुधार, भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता, कुशल सहकारी मशीनरी आदि की उपस्थिति होनी चाहिए। इससे नक्सलियों का आधार कमजोर होगा और आदिवासियों में यह विश्वास जगेगा कि वे मुख्यधारा में श्रेष्ठतर स्थिति में होंगे।