ब्रिटेन की जनता ने निर्णय दिया है कि वह यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं बने रहना चाहती है।
क्या था तर्क :
- यूरोपीय संघ की सदस्यता के चलते सभी सदस्य देशों के श्रमिकों को पूरे यूरोप में नौकरी करने की छूट थी। यह छूट यूरोपीय संघ के गरीब देश जैसे हंगरी के भी श्रमिकों को उपलब्ध थी।
- ग्लैंड के लोगों ने पाया कि हंगरी के सस्ते श्रमिक उनके देश में अधिक संख्या में प्रवेश कर रहे थे। इसके कारण उनके वेतन दबाव में थे। इसलिए उन्होंने जनमत संग्रह में यूरोपीय यूनियन से अलग होने का निर्णय दिया है।
कैसे यह globalisation की विफलता है
- ग्लोबलाइजेशन का पहला आयाम पूंजी के स्वतंत्र पलायन का है। हर कंपनी को छूट है कि वह दूसरे देश में निवेश करे। पूंजी के इस स्वतंत्र पलायन से उद्यमियों को पूरे विश्व में लाभ कमाने के अवसर उपलब्ध हो जाते हैं।
- ग्लोबलाइजेशन का दूसरा आयाम माल के स्वतंत्र प्रवेश का है। सभी देशों द्वारा आरोपित किए जाने वाले आयात कर की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। जैसे चीन में बनी टार्च पर भारत सरकार चाहे तो भी अधिक आयात कर आरोपित नहीं कर सकती है। अपने देश में चीन में बना सस्ता माल जैसे बल्ब, टार्च, फुटबाल आदि प्रवेश कर रहे हैं।
- माल का यह स्वतंत्र पलायन अप्रत्यक्ष रूप से श्रम का ही पलायन होता है। जैसे वियतनाम के श्रमिक ने कम वेतन पर काम करके सस्ती फुटबाल का उत्पादन किया। इस फुटबाल का भारत को निर्यात हुआ। भारत में ऐसी फुटबाल की उत्पादन लागत ज्यादा आती है, क्योंकि वियतनाम की तुलना में भारत में वेतन ऊंचे हैं। फलस्वरूप भारत की फुटबाल निर्माता कंपनी बंद हो गई।
- श्रम के इस पलायन से विश्व के गरीबतम देशों के श्रमिकों को लाभ हुआ है। शेष सभी को नुकसान हुआ है।
- क्या इससे श्रमिको के वेतन में कमी हो रही है ? उदाहरण के तोर पर मान लीजिए विश्व में न्यूनतम वेतन वियतनाम में है। वियतनाम की सस्ती फुटबाल पूरे विश्व में बिकने लगीं। वियतनाम में रोजगार उत्पन्न हुए। श्रमिकों को लाभ हुआ। परंतु भारत, केन्या, ब्राजील आदि तमाम देशों में फुटबाल का उत्पादन बंद हो गया, क्योंकि वहां वेतन अधिक थे। यानी ग्लोबलाइजेशन के कारण पूरे विश्व के श्रमिकों के वेतन न्यूनतम स्तर की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ब्रिटेन के लोगों ने इस कटु सत्य का अनुभव किया।
- वेतन में गिरावट की यह प्रवृति अर्थव्यवस्था के उन्हीं क्षेत्रों पर लागू होती है, जहां दूसरे देशों से सीधी प्रतिस्पर्धा हो जैसे फुटबाल, कपड़े, स्टील आदि के उत्पादन में। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था का दूसरा हिस्सा पेटेंटीकृत उच्च तकनीकों का है, जैसे माइक्रोसाफ्ट द्वारा विंडोज साफ्टवेयर तथा सिस्को सिस्टम द्वारा राउटर के उत्पादन का। इस क्षेत्र में वेतन में गिरावट की प्रवृति पैदा नहीं होती है, क्योंकि दूसरे देशों द्वारा ये माल उत्पादित नहीं किए जाते हैं। इन क्षेत्रों में विकसित देशों द्वारा ऊंचे वेतन दिए जा रहे हैं
- भारत की स्थिति मूलरूप से विश्व के उन शेष देशों जैसी है जो ग्लोबलाइजेशन से आहत हैं, परंतु एक अंतर है। हमारे यहां साफ्टवेयर उद्योग को ग्लोबलाइजेशन से लाभ हुआ है। 10-20 वर्षो में चीन तथा फिलीपींस भी साफ्टवेयर में महारत हासिल कर लेंगे। तब वेतन में गिरावट की मूल दिशा यहां भी प्रकट हो जाएगी। फिलहाल इस क्षेत्र में हमें लाभ हो रहा है। परंतु देश की शेष जनता ग्लोबलाइजेशन से आहत है। चीन के सस्ते माल एवं नेपाल तथा बांग्लादेश से सस्ते श्रमिकों के आयात से भारतीयों को नुकसान हो रहा है